स्पोर्ट्स डेस्क (नई दिल्ली): बीते सोमवार को यानी परसों एक जबरदस्त घटना घटी। फुटबॉल के सुपरस्टार क्रिस्टियानो रोनाल्डो (Cristiano Ronaldo) ने यूरो चैम्पियनशिप (Euro Championship) के एक मैच के बाद हुई प्रेस कांफ्रेंस में अपने सामने रखीं कोकाकोला की दोनों बोतलें एक तरफ हटा दीं। उसके बाद उन्होंने वहीं रखी पानी की बोतल को उठाकर पत्रकारों को दिखाते हुए कहा – “आगुवा!” यानी पानी! दस सेकेंडों में उन्होंने जता दिया कि सॉफ्ट ड्रिंक्स को लेकर उनका क्या नजरिया है।
रोनाल्डो की इस एक भंगिमा ने ये किया कि कोका-कोला (Coca-Cola) के शेयर गिरना शुरू हो गये। इस घटना का ऐसा जबरदस्त प्रभाव पड़ा कि कुछ ही घंटों के भीतर कम्पनी को चार बिलियन डॉलर यानि करीब 300 अरब रुपयों का नुकसान हो गया। ये गिरावट अब भी जारी है।
खिलाड़ी में रीढ़ की हड्डी साबुत बची हो तो वो अकेला भी दुनिया के सबसे मजबूत दुर्गों में सेंध लगा सकता है।
मुझे उम्मीद है लोग अभी पुलेला गोपीचंद को नहीं भूले होंगे।
सत्तर और अस्सी के दशकों में विश्व के नम्बर एक खिलाड़ी बन गये प्रकाश पादुकोण के रिटायर होने के बाद देश को सैयद मोदी से बहुत उम्मीदें थीं पर 1988 में लखनऊ में उनकी हत्या हो गयी। इस त्रासद घटना के कोई दस सालों तक भारतीय बैडमिंटन के दिन कोई विशेष उल्लेखनीय नहीं रहे। फिर आन्ध्र प्रदेश के नलगोंडा में जन्मा एक बेहद प्रतिभाशाली खिलाड़ी इस खालीपन में किसी सनसनी की तरह उभर रहा था। पुलेला गोपीचंद नाम के एक खिलाड़ी की शैली में कई विशेषज्ञों को प्रकाश पादुकोण की झलक दिखाई देती थी, लेकिन 1995 में पुणे में चल रही एक प्रतियोगिता में डबल्स के एक मैच के दौरान गोपीचन्द के घुटने में घातक चोट लगी और उनका करिअर करीब-करीब समाप्त हो गया।
एक सामान्य खिलाड़ी और एक बडे़ खिलाड़ी में क्या फर्क होता है, ये अगले एक साल में गोपीचंद ने कर दिखाया। चोट से उबरकर उन्होंने न केवल विश्व बैडमिंटन में अपनी रैंकिंग में उल्लेखनीय सुधार किया बल्कि 2001 में चीन के चेन हांग को हराकर ऑल इंग्लैंड चैम्पियनशिप जीत ली। इसके कुछ माह पहले वे वर्ल्ड नंबर वन को परास्त कर चुके थे।
जैसा कि बाज़ार के इस युग में होना था, तमाम मल्टीनेशनल कंपनियों (Multinational Companies) ने ऑल इंग्लैंड चैम्पियनशिप जीतने के बाद गोपीचंद को नोटिस किया। कोकाकोला ने विज्ञापन के लिए उनसे संपर्क किया और बहुत बड़ी रकम देने का प्रस्ताव किया लेकिन उस समय तक अपने माता-पिता के साथ किराये के घर में रह रहे पुलेला गोपीचंद ने साफ-साफ मना कर दिया। आमतौर पर बहुत शांत रहने वाले इस खिलाड़ी ने इस बात को कोई तूल नहीं दी, न ही किसी तरह की पब्लिसिटी (Publicity) की। मीडिया तक को इस बात का पता दूसरे स्त्रोतों से लगा।
एक इंटरव्यू में उनसे इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने कहा, “चूंकि मैं खुद सॉफ्ट ड्रिंक नहीं पीता, मैं नहीं चाहूंगा कि कोई दूसरा बच्चा मेरी वजह से ऐसा करे। मैं कोई चिकित्सक नहीं हूं, लेकिन मुझे पता है कि सॉफ्ट ड्रिंक्स स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं और मैंने अपने मैनेजर को इस बारे में साफ-साफ कह रखा है कि मैं किसी भी ऐसे प्रॉडक्ट के साथ नहीं जुड़ूंगा, चाहे वो सॉफ्ट ड्रिंक हो या सिगरेट या शराब.”
पैसे को लेकर भी उनका दृष्टिकोण बिल्कुल स्पष्ट था: "मेरे लिये ज़्यादा महत्व उसूलों का है और मैं किसी भी कीमत पर अपने उसूलों को पैसे के तराज़ू पर नहीं तोल सकता."
क्रिस्टियानो रोनाल्डो (Cristiano Ronaldo) के कारनामे ने मुझे न केवल पुलेला गोपीचंद की बल्कि पी. टी. उषा (PT Usha) पर लिखी वीरेन डंगवाल की कविता की भी याद दिलाया। ये सारे नाम आने वाले वक्तों में जरूरी रोशनी का काम करेंगे। इन सब को सलाम कीजिए।
काली तरुण हिरनी
अपनी लम्बी चपल टांगों पर
उड़ती है मेरे ग़रीब देश की बेटी
आंखों की चमक में जीवित है अभी
भूख को पहचानने वाली
विनम्रता
इसीलिए चेहरे पर नहीं है
सुनील गावस्कर की-सी छटा
मत बैठना पी टी ऊषा
इनाम में मिली उस मारुति कार पर
मन में भी इतराते हुए
बल्कि हवाई जहाज में जाओ
तो पैर भी रख लेना गद्दी पर
खाते हुए मुँह से चपचप की आवाज़ होती है ?
कोई ग़म नहीं
वे जो मानते हैं बेआवाज़ जबड़े को सभ्यता दुनिया के सबसे खतरनाक खाऊ लोग हैं।