नई दिल्ली (निकुंजा राव): दिल्ली विधानसभा चुनावों (Delhi Assembly Elections) से पहले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) राजधानी में बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाओं का हवाला देते हुए खुद अपनी पीठ थपथपा रहे थे। मोहल्ला क्लीनिक (Mohalla Clinic) और दिल्ली सरकार के सरकारी अस्पतालों में अच्छी व्यवस्था का झांसा देते हुए, वो एक बार फिर से दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। मौजूदा कोरोना (Corona) संकट ने उनके सभी दावों की पोल खोलकर रख दी। राजधानी वासियों ने देखा, किस कदर आम जनता को इलाज के लिए दर बदर ठोकरें खानी पड़ रही है। जब दिल्ली सरकार (Delhi Government) को कुछ सूझा तो अंधाधुंध योजनायें और नीतियां लागू करनी शुरू कर दी। इसके बावजूद भी दिल्ली सरकार के हिस्से में नाकामी ही आई। हार मानकर सीएम केजरीवाल को घुटने टेकते हुए गृहमंत्रालय और अमित शाह की मदद मांगनी पड़ी। अब भी दिल्ली सरकार अपने अधिकार क्षेत्र में भारी खामियां छोड़ती जा रही है। जिसके नतीज़े काफी गंभीर साबित हो सकते है।
जिस तरह से दिल्ली सरकार ने अपने संसाधन और जनता का पैसा वायरस इंफेक्शन को रोकने में खर्च कर रही है। उस पर पानी फिरता दिख रहा है,क्योंकि केजरीवाल सरकार का ज़्यादा ध्यान सिर्फ इलाज़ और अस्पतालों पर लगा हुआ है। रोकथाम और जागरूकता फैलाने में दिल्ली सरकार का रिपोर्ट कार्ड निल्ल बट्टे सन्नाटा दिख रहा है। ज़्यादातर अधिकारी आँख मूंदे काम कर रहे है। ताजा मामला पश्चिमी दिल्ली के उत्तरनगर (Uttam Nagar) विधानसभा से जुड़ा हुआ है। उत्तर नगर ईस्ट मेट्रो स्टेशन के पास फल-सब़्जियों के रेहड़ियां बिना किसी सोशल डिस्टेसिंग के, एक के साथ एक खड़ी नज़र आयी। इस दौरान तकरीबन सभी फल-सब़्जी वाले बिना किसी फेसमास्क के सामान बेचते देखे गये। किसी के पास भी सेनिटाइज़र नहीं था।
इन हालातों में इंफेक्शन काफी तेजी से फैलता है। इलाके में तकरीबन रोज ही ऐसी तस्वीर देखने को मिलती है। कायदे से दिल्ली सरकार के अधिकारियों को ऐसी जगहों पर सोशल डिस्टेसिंग और कोरोना गाइडलाइंस का सख्ती से पालन करवाना चाहिए था। लेकिन दूर-दूर तक ऐसा होता नहीं दिख रहा। जबकि वायरस इंफेक्शन का सिलसिला ऐसे ही हालात से आगे बढ़ता है। अगर दिल्ली सरकार कारगर ढंग से इसी स्तर पर सख़्ती दिखाये तो संक्रमण के मामलों में काफी कमी आ सकती है। जहाँ ये रेहड़ी पटरी वाले खड़े होकर सोशल डिस्टेसिंग की धज्जियां उड़ा रहे है, वो पश्चिमी दिल्ली की मुख्य सड़क है, यहाँ से दिल्ली सरकार के कई अधिकारी और विधायक गुजरते होगें, लेकिन कभी किसी ने सोशल डिस्टेसिंग और कोरोना गाइडलाइंस का सख़्ती से पालन करवाने की ज़हमत तक नहीं उठायी।
अगर रोकथाम के नज़रिये से देखे तो, यहाँ पर दिल्ली सरकार काफी कुछ काम कर सकती है। महज़ एक किलोमीटर की दूरी पर उत्तम नगर से आम आदमी पार्टी के विधायक नरेश बाल्यान का कार्यालय है। रोजाना कम से कम दो से चार बार उनका इस सड़क पर चक्कर लगता ही होगा। लेकिन उन्होनें कभी इस मसले पर कोई ठोक कदम उठाने की मशक्कत नहीं की। इलाके का थाना भी चंद कदमों की दूरी पर ही है, लेकिन एसएचओ साहब को इन सबसे कोई मतलब नहीं है। सोशल डिस्टेसिंग के साथ-साथ ये मामला अतिक्रमण से भी जुड़ा है। करीब-करीब आधी सड़क पर रेहड़ी-पटरी वालों का कब़्जा है। ऐसे में ट्रैफिक के लिए कम ही रास्ता बचता है।
सरसरी तौर पर मामला बेहद छोटा दिखता है, लेकिन इसके साथ काफी संजीदगी जुड़ी हुई है। वायरस इंफेक्शन फैलने के लिए छोटी सी गलती ही गंभीर नतीज़े पैदा कर सकती है। लेकिन मौजूदा मामला अपने आप में बड़ी लापरवाही है। भले ही दिल्ली सरकार कितने भी अस्पताल बना ले, वेंटीलेटर खरीद ले और कितने ही आसमानी वादें कर ले। लेकिन ज़मीनी कार्रवाईयां खोखली ही नज़र आ रही है। दिल्ली सरकार का मौजूदा रवैया ऐसा है कि, वायरस की रोकथाम के लिए हम कुछ नहीं करेंगे, लेकिन इंफेक्शन हो जाने पर दिल्ली की जनता को इधर से उधर जरूर भटकायेगें। और इसकी शुरूआत सड़कों से हो चुकी है।