डेंगू की राहत
डाक्टर बता रहे हैं कि कोरोना के जिन मरीजों को डेंगू (Dengue) भी हो गया है, उनकी जान बचने की संभावनाएं बलवती हैं। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि कोरोना का संक्रमण खून के थक्के बनाता है वहीं डेंगू का वायरस प्लेटलेट्स कम करता है जिससे खून पतला होने लगता है। खून पतला होने के कारण थक्के जमते नहीं हैं और आक्सीजन की समस्या पैदा नहीं होती है। ऐसे मरीजों को वेंटीलेटर की जरुरत नहीं पड़ती।
डेंगू राहत दे रहा है। कमाल है जी। चिकित्सा व्यवस्था (Medical system) से राहत न मिले, तो मर्ज ही राहत बन जाता है। दर्द ही दवा बन जाता है। तमाम शायरों ने ऐसी बातें लिखी हैं, ये सबके सब लगता है कि डेंगू और कोरोना का शिकार एक साथ ही हुए होंगे।
हल ऐसे भी आते हैं जी।
कानून व्यवस्था की समस्याओं के भी कुछ हल मुझे दिखायी पड़ रहे हैं। किसी मकान में हत्या के इरादे से हत्यारे घुसे और उसी मकान में चोरी की नीयत चोर घुसे। चोरों ने हत्यारों को पकड़ कर पीटा और मकान मालिक की जान बच गयी है।
बहुत संभव है कि कोई काबिल बंदा स्टार्ट अप खोल ले, जिसका काम यह हो कि एक समस्या को दूसरी समस्या से हल करने की तरकीबें खोजी जायें। डेंगू कोरोना को निपटा देगा। डेंगू से निपटना आसान है, तो कोरोना से निपटने का रास्ता क्या-पूरी जनसंख्य़ा को ऐसे इंजेक्शन लगा दो कि, डेंगू फैल जाये और पूरे इलाके में इस तरह के मच्छर फैला दो कि सबको डेंगू हो जाये। डेंगू के मच्छर ब्लैक में मिलने लग जायेंगे। जिस डेंगू के मच्छर को हुर्र-हुर्र करके भगाया जाता है उसका स्वागत हर गली मुहल्ले में किया जायेगा। और डेंगू मच्छर पालन योजना भी चल सकती है, पर सरकारी डेंगू मच्छर पालन योजना के सहारे नहीं बैठा जा सकता। बहुत संभव है कि कागजों पर पचास लाख डेंगू मच्छर दिखा दिये जायें और सच में दो डेंगू मच्छर भी ना निकलें। निजी क्षेत्र में डेंगू मच्छऱ पालन योजनाओं को चलाना होगा। तब ही कोरोना से निपटने में कामयाबी मिलेगी।
डेंगू राहत बनकर आ गया है, और क्या चाहिए। कोरोना का टीका कब मिलेगा, किसी को ना पता, पर डेंगू मच्छर अब दिल्ली में इफरात में मिल सकते हैं। हर हफ्ते दो घंटे बस -डेंगू मच्छरों का पालन करें और अपने मुहल्ले को कोरोना के खतरे से मुक्त रखें।
डेंगू से बहुत उम्मीदें हो गयी हैं, बहुतों को। दरअसल डेंगू मच्छर अब उम्मीद पूरी कर सकते हैं, बाकियों से क्या उम्मीद करें।
कोरोना की वैक्सीन को लेकर जैसी चर्चाएं चल रही हैं, उनसे लगता है कि कोरोना की वैक्सीन से इलाज कम होगा, और राजनीति ज्यादा होगी। या बहुत संभव है कि इलाज की नौबत ही आ पाये सिर्फ राजनीति होकर रह जाये।
उन्होने पूछा-बतायें वैक्सीन कब आयेगी।
उन्होने जवाब दिया-वैक्सीन कब आयेगी, यह सिर्फ वैज्ञानिक जानते हैं।
वह कह सकते हैं कि हमारे जमाने में वैज्ञानिक सिर्फ एक हफ्ते में वैक्सीन तैयार कर देते हैं।
इसका जवाब हो सकता है कि एक हफ्ते में नहीं एक दिन में वैक्सीन तैयार करते थे, क्योंकि सब काम कागज ही पर होता था, जमीन पर नहीं।
सबसे पहले अल्पसंख्यकों को मिलनी चाहिए, वैक्सीन, फिर आदिवासियों को और अमीरों को वैक्सीन भारत में मिलनी ही नहीं चाहिए, इन्हे अमेरिका जाकर वैक्सीन लेनी चाहिए-इस किस्म की मांग वहां से उठ सकती है। वैक्सीन में सैक्युलरता (Vaccine Secularity) ना आयी, तो काहे की वैक्सीन। वैक्सीन आये या नहीं, सैक्युलरता जरुर आनी चाहिए और जैसी भी है, बनी रहनी चाहिए।
वैक्सीन ना आयी है पर बवाल आ गये हैं, इससे पता लगता है कि हम विकट लोकतांत्रिक देश हैं, हर हल पर सवाल खड़े कर सकते हैं हर सवाल पर बवाल खड़े कर सकते हैं।
पर वास्तव में जमीन पर समस्या का हल कैसे आयेगा जी।
आयेगा जी बिलकुल आयेगा, डेंगू का मच्छर ही असल में कोरोना का हल लेकर आयेगा।
घर में डेंगू मच्छर पालें, हल घर में ही मिलेगा।
साभार – आलोक पुराणिक