9 मई 2023 की गूंज पूरे पाकिस्तान (Pakistan) में लंबे समय तक महसूस किये जाने की पुख़्ता संभावना है। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) की युवा शाखा के संदिग्ध कार्यकर्ताओं और कुछ अन्य अज्ञात बदमाशों ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए रावलपिंडी (Rawalpindi) में पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय पर हमला किया था। साथ ही फैसलाबाद में सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) और लाहौर में कोर कमांडर के घर को जला दिया।
पीटीआई (PTI- Pakistan Tehreek-e-Insaf) के सैकड़ों कार्यकर्ताओं समेत दूसरे और तीसरे पायदान के नेताओं को हिरासत में लिया गया है और उन पर पार्टी से अपने रिश्तों तोड़ने के लिये दबाव डाला गया। ऐसा लगता है कि कम से कम भड़काने वालों और सैन्य प्रतिष्ठानों के खिलाफ आगजनी और पत्थरबाज़ी की हरकत करने वाले अपराधियों को सैन्य अदालतों की ओर से मुकदमे और सजा का सामना करना पड़ सकता है।
इन घटनाक्रमों का भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये क्या मायने हैं, अगर कोई हैं जो किसी भी मामले में पाकिस्तान में जमीनी हालातों को प्रभावित करने की बहुत कम या कोई क्षमता नहीं रखते हैं? 24 साल पहले लाहौर में मीनार-ए-पाकिस्तान (Minar-e-Pakistan) में लिखित रूप में पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) के साफ दावे के बावजूद, क्या पाकिस्तान में व्यापक अराजकता और सामाजिक अशांति पैदा करने वाले आर्थिक और राजनीतिक मंदी की संभावना का भारत में चुपचाप स्वागत किया जाना चाहिए? स्थिर और शांतिपूर्ण पाकिस्तान भारत के हित में है?
इन उठाये गये वाजिब सवालों में पाकिस्तान के परमाणु जखीरे की सुरक्षा का सवाल है। क्या कॉर्प्स कमांडर (Corps Commander) के घर पर दंगाइयों की ओर से की गयी हरकतें पाकिस्तान के परमाणु हथियारों और सामग्री वाले किसी भी प्रतिष्ठान में दोहराया जा सकता है?
नागरिकों की गुस्साई भीड़ के अलावा पाकिस्तान में एक्टिव कई आतंकवादी संगठन जैसे कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP- Tehreek-e-Taliban Pakistan) जो कि अफगानिस्तान में सत्ता में अफगान तालिबान की वापसी से फिर से सक्रिय हो गया है, क्या ऐसे हालातों को बदल सकता है? अराजकता और अस्थिरता उनके फायदे के लिये और परमाणु हथियारों या उन्हें बनाने के कच्चे माल को अपने कब़्जे में ले सकता है? ये जगज़ाहिर है कि
अंतर्राष्ट्रीय जिहादी जमातों और उनके नेताओं ने सामूहिक विनाश के हथियार हासिल करने में अपनी दिलचस्पी साफतौर पर दिखायी है, उनके मुताबिक ऐसा करना उनका धार्मिक दायित्व है।
सालों से पाकिस्तान ने इस तरह की आशंकाओं को बढ़ा-चढ़ाकर खारिज कर दिया है, ये कहते हुए कि उसके पास मजबूत और समर्पित परमाणु कमान और नियंत्रण प्रणाली है, जिसमें परमाणु कमांड अथॉरिटी (NCA), स्ट्रैटेजिक प्लान्स डिवीजन (SPD) और स्ट्रेटेजिक फोर्स कमांड्स (SFCs) जैसे संस्थान शामिल हैं। तीन सेवाओं में से जो कि देश के परमाणु हथियारों को गलत हाथों में पड़ने से रोकने के लिये कारगर है। एसपीडी पाकिस्तान के परमाणु सुरक्षा ढांचे की आधारशिला है। कोर कमांडर के समकक्ष रैंक के अधिकारी की अगुवाई में इसे पाकिस्तान की रणनीतिक संपत्ति के दैनिक प्रबंधन का काम सौंपा जाता है। इसके तहत चार डायरेक्टोरेट मिलकर काम करते है ताकि पाकिस्तान के परमाणु हथियार पाकिस्तानी सेना की कमान में रहें, ये निदेशालय है:
(ए) ऑप्रेशंस और प्लानिंग
(बी) कमान, कन्ट्रोल, कम्युनिकेशन, कंप्यूटर, इंटेलीजेंस, इंफॉर्मेशन और सर्विलांस (सी4आई2एसआर)
(सी) स्ट्रैटजिक वेपन डेवलपमेंट
(डी) आर्म्स कंट्रोल और डिस्आर्म्समेंट
इनके पास सभी रणनीतिक ठिकानों को सुरक्षित रखने के लिये बड़ी जिम्मेदारी है।
पाकिस्तानी सेना को हमेशा अनुशासित संस्था होने पर गर्व रहा है, जो कि सभी हालातों में अपने प्रमुख के पीछे खड़ी रहती है। हालांकि इमरान खान और लगातार दो सेना प्रमुखों के बीच लंबे समय से चली आ रही कलह ने अब तक अकल्पनीय तरीके से सेना के नेतृत्व स्तर पर दरार की असल संभावना को सबके सामने ला दिया है। शुरुआत में ये सोच थी कि पूर्व प्रधान मंत्री के लिये समर्थन बड़े पैमाने पर सेना के मध्य और निचले रैंकों समेत सेवानिवृत्त सेवा कर्मियों के परिवारों के बीच मौजूद था। पूर्व लाहौर कोर कमांडर से जुड़ी वारदात ने साफ कर दिया कि हालात बहुत ज्यादा अच्छे नहीं है। कोर कमांडर को अपने घर से भागना पड़ा, जबकि उनके घर के साथ तोड़फोड़ हो रही थी। ऐसे में वो अपनी ड्यूटी से समझौता कर भागे यानि कि उन्हें भी अनुशासनात्मक कार्यवाही का सामना पड़ेगा। ये प्रकरण बताता है कि कमान सिस्टम में पीटीआई और उसके नेता के लिये सहानुभूति उच्च स्तर पर मौजूद हो सकती है।
इस पृष्ठभूमि के खिलाफ एक ऐसे परिदृश्य की कल्पना करना पूरी तरह से दूर की कौड़ी नहीं हो सकता है जिसमें एसपीडी नेतृत्व या उसका गुट किसी भी वज़ह से सेना या सरकार के विरोध में राजनीतिक शख्सियतों के लिये सहानुभूति पैदा करता है। जैसा कि द इकोनॉमिस्ट ने हाल ही में अमेरिका के अपने कर्ज में चूक की संभावना के संदर्भ में लिखा था, एक ऐसी घटना जो कि अतीत में अकल्पनीय थी, अब बहुत कल्पनाशील हो गयी है।
पीटीआई के खिलाफ कार्रवाई इमरान खान को राजनीतिक रूप से हाशिये पर रखने के बीच सेना के प्रयासों के तेज होने की संभावना, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज जैसी मुख्यधारा की पार्टियों की गिरती लोकप्रियता से बड़ी खालीपन पैदा करेगी जो कि पाकिस्तान के कट्टरपंथी संगठन अच्छे से भर सकते है। कई चरमपंथी संगठन इस इबारत की तस्वीर में मज़हबी रंग भरने के लिये बेताब खड़े दिखायी दे रहे है। दिलचस्प है कि 9 मई की घटनाओं के तुरन्त बाद सेना के साथ एकजुटता दिखाने के लिये तहरीक-ए-लब्बैक (Tehreek-e-Labbaik) पाकिस्तान जैसे धार्मिक चरमपंथी संगठनों की ओर से कई रैलियों की घोषणा की गयी, जिन्हें आईएसआई की ओर से माउंट करने के लिये संरक्षण दिया गया था। पूर्व प्रधान मंत्री नवाज़ शरीफ़ का सरकार पर दबाव और अहले सुन्नत वल जमात (ASWJ- Ahle Sunnat Wal Jamaat) जैसे सांप्रदायिक संगठन जिसे सैन्य-खुफिया प्रतिष्ठान का दबा छिपा समर्थन हासिल है, इसी बात की तस्दीक करते है।
राजनीतिक और रणनीतिक मकसद को हासिल करने के लिए धर्म का हथियार के तौर पर इस्तेमाल, नागरिक मामलों में सेना की ओर से लगातार दखल, कश्मीर के प्रति जुनून और भारत को लेकर स्थायी दुश्मनी की मुद्रा अब पाकिस्तान को बेहद परेशान करने लगी है। दकियानूसी ताकतों का उभार पाकिस्तान को और ज्यादा तर्कहीन, अधिक क्रूर और काऱी ज्यादा अप्रत्याशित बना सकता है। इसलिये भारत को किसी भी तरह की जीत या बढ़त पर ध्यान लगाने के बजाय सावधानी से आगे बढ़ाना होगा, यहीं हालातों को अपनाने के लिये ज्यादा उचित नीति हो सकती है।