न्यूज डेस्क (यथार्थ गोस्वामी): सनातनीय पंचांग परम्परा में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान, देवउठनी (Dev Uthani Ekadashi) या प्रबोधिनी एकादशी आदि नामों से जाना जाता है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु शयन करते है। जिसके कारण इस दौरान समस्त मांगलिक और शुभ कार्यों का मुर्हूत (Manglik and auspicious Muhurat) नहीं बन पाता है। दीवाली के ठीक बाद आने वाली इस एकादशी के दिन क्षीरसागर में शयन से निवृत हो जाते है। उनके चार माह के बाद जागने के साथ ही गृह प्रवेश, विवाह और तुलसी विवाह जैसे पावन कार्यक्रमों का ज्योतिषीय संयोग बनता है। इस दिन के साथ ही चार्तुमास का भी अन्त हो जाता है।
इस साल पुरूषोत्तम मास पड़ने के कारण दो अतिरिक्त एकादशियों के संयोग बने। जिसकी वजह से देवोत्थान एकादशी 25 नवंबर को मनाई जाएगी। इन दिन विशेष तौर पर शालिग्राम-तुलसी विवाह (Shaligram-Tulsi Vivah) का आयोजन स्मार्त और वैष्णव भक्त करते है। तुलसी भगवान विष्णु का अत्यन्त प्रिय है। स्थापित हिन्दू मान्यताओं के अनुसार जिन सम्पतियों को कन्या रत्न की प्राप्ति नहीं होती है, उन्हें शालिग्राम-तुलसी विवाह करवाकर कन्यादान का महापुण्य अवश्य प्राप्त करना चाहिए।
देवोत्थान एकादशी का शुभ मुहूर्त
नवंबर 25, 2020
एकादशी तिथि का आरम्भ- 02:42 बजे
नवंबर 26, 2020
एकादशी व्रत पाराण मुर्हूत- 01:11:37 से 03:17:52 अपराह्न
एकादशी तिथि की समाप्ति- 05:10 गोधूलि बेला
प्रबोधिनी एकादशी की कथा
एक बार क्षीर शैय्यशयी भगवान नारायण से माँ लक्ष्मी जी ने कहा- “हे जगतनाथ! लोक कल्याण हेतु दिन-रात लगातार जागते है और निद्रावस्था में कई अनन्त वर्षों तक शयन करते है। जिसकी वजह से समस्त स्थावर-जंगम जीव काल का ग्रास बन जाते है। उनका नाश हो जाता है। इस प्रारब्ध की पूर्ति के लिए आप निद्रा हेतु नियम बना लीजिए। ऐसा होने पर मुझे भी कुछ विश्राम करने का समय मिल जायेगा।
माँ लक्ष्मी का ये निवेदन सुनकर भगवान विष्णु मुस्कुराए और उन्हें आश्वासन देते हुए बोले- सृष्टि का भरण-पोषण करने वाली देवी आपके ये वचन उपयुक्त है। निद्रा से जागृत अवस्था में आने पर सभी देवों और विशेषतौर से आपको कष्ट होता है। जिसके कारण आपको विश्राम करने का पर्याप्त समय नहीं मिल पाता है। अतएव मैं आपको आश्वस्त करता हूँ। मैं प्रत्येक वर्ष चार्तुमास विश्राम करूंगा। उस समय आपको और समस्त देवगणों को विश्राम हेतु अवकाश की प्राप्ति होगी। वर्षा ऋतु में चार्तुमास शयन अल्पनिद्रा कहलायेगा और सृष्टि का अन्त करने वाले प्रलय काल के दौरान मेरा निन्द्रा का महानिद्रा के नाम से जाना जायेगा। मेरी अल्पनिद्रा का प्रण समस्त साधकों और उपासकों के लिए कल्याणकारी और मंगलमय होगा। मेरी अल्पनिद्रा के दौरान जो भी भक्त मेरे शयन भाव को आधार बनाते हुए सेवा करेगें और मेरे जागृत होने पर उल्लास और आनंद से परिपूर्ण उत्सव मनायेगें। मैं उनके घर तुम्हारे साथ यहां चिरकाल तक निवास करूंगा। जिसके बाद से उपासक धूमधाम के साथ भगवान को जागृत करने का उत्सव मनाने लगे।
देवउठनी एकादशी का पूजन विधान
- प्रात: काल बह्म मुहूर्त में उठकर शौच-स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर शुभ्रावस्त्र धारण करे। देवउठनी एकादशी के व्रत का मानस संकल्प ले।
- विष्णु सहस्रनाम, सुभाषित स्त्रोत पाठ, पद्मपुराण, भगवत कथा आदि का पाठ करें। घर के आंगन में माँ तुलसी के सामने भगवान विष्ण के चरण कमलों की आकृति बनाये।
- धूप-दीप-गंध-पुष्प आदि से पूजास्थल को सुसज्जित करें। एकादशी तिथि प्रारम्भ होने के साथ भगवान की छवि या प्रतिमा के सामने घंटी बजाकर और शंखनाद कर उन्हें जागृत करें। साथ ही ये वाक्य दोहरायें- उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास।
- तुलसी-शालिग्राम विवाह का आयोजन करें। यदि आयोजन ना करे रहे हो तो, यथा शक्ति इस कार्यक्रम में दान-पुण्य कर अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करें।
- सांध्य बेला में पूजा स्थल, घर और माँ तुलसी के पास दीया जलाये। भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी समेत देवी-देवताओं का पूजन करें।