नई दिल्ली (यर्थाथ गोस्वामी): कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान (Devotthan Ekadashi), देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। ये दीपावली के त्यौहार के बाद आती है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु क्षीरसागर में निद्रावस्था में चले जाते है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी (Ekadashi of Kartik Shukla Paksha) को भगवान श्री हरि पुन: जागृत हो जाते है। इस कारण इसे देवोत्थान एकादशी नाम दिया गया है। इस तरह भगवान के चार महीने शयनकाल के कारण विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन जैसे मांगलिक कार्य निषिद्ध माने गये है। इस दिन तुलसी-शालिग्राम विवाह (Tulsi-Shaligram Vivah) करवाकर मांगलिक कार्यक्रमों का आरम्भ हो जाता है।
इस लिहाज़ से लोग अपने घरों में होने वाले विवाह को स्थानीय पंचांग के अनुसार सम्पन्न करवाते है। कोरोना काल में कई पाबंदियों के बीच शादी के विशेष मुहूर्त खास महत्त्तव रखते है। ऐसे में उत्तर भारत में लोग वैवाहिक कार्यों के लिए विक्रमी पंचांग का अनुसरण करते है। जिसके अन्तर्गत काशी पंचांग और मिथिला पंचांग आते है। काशी पंचांग के अनुसार नवंबर महीने में 25 और 30 के लग्न-विवाह का अच्छा मुहूर्त है। दिसंबर महीने की 10 तारीख को भी शुभ विवाह संयोग बन रहे है। वहीं दिसम्बर महीने में शादी के 10 शुभ लग्न 1,2,6, 7, 8, 9,10, 11, 13, और 14 को बन रहे है।
अबूझ मुहूर्त में 25 नवंबर देवोत्थान एकादशी विवाह की दृष्टि से काफी अच्छा है। इस दिन बिना की ज्योतिषीय गणना (Astrological calculation) के जातक अपना विवाह सम्पन्न करवा सकते है। मिथिला पंचांग के अनुसार नवंबर महीने में लग्न-विवाह का कोई संयोग नहीं बन रहा है। इसके अनुसार दिसंबर महीने में 2, 6,7, 10, 11 और 14 तारीख को विवाह संस्कार सम्पन्न करवाया जा सकता है।
नोटः- स्थानीय मान्यताओं के अनुसार जातक अपने क्षेत्र में चलने वाले पंचांगों के अनुसरण करते है। ऐसे तिथियों में भिन्नता आना स्वाभाविक है। पंचांग के गणना तिथि, वार, नक्षत्र, करण और योग पर निर्भर करती है। कई जगह सौर, भौम और नक्षत्र की गतियों पर आधारित ज्योतिषीय गणना के पंचांगों का प्रयोग किया जाता है। ऐसे में स्थानीय अर्चक और ज्योतिष से सलाह करके विवाह की तिथि निर्धारित करें।