न्यूज़ डेस्क (यथार्थ गोस्वामी): कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को धनतेरस (Dhanteras) का त्यौहार मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी, भगवान विष्णु, यक्षराज कुबेर और यमराज का पूजन किया जाता है। इसके साथ ही इस दिन भगवान धनवंतरी के पूजन का भी विशेष महात्मय है। भगवान धनवंतरी आयुर्वेद के अधिपति देवता है। इनकी आराधना से समस्त व्याधियों का नाश (Destruction of all diseases) होता है। भगवान धनवन्तरी विष्णु के अंशावतार है। इन्हें पीतल धातु अत्यन्त प्रिय है। स्थापित मान्यता है कि इस दिन जिस वस्तु को खरीदा जाता है। उससे लाभ होता है। जैन धर्म में इसे धन्य तेरस या ध्यान तेरस कहा जाता है। इसी दिन तीर्थंकर भगवान महावीर (Tirthankara lord mahaveer) ध्यानावस्था में गये थे। जिसके तीन दिन बाद यानि कि दीवाली वाले दिन उन्हें कैवल्य की प्राप्ति हुई थी।
धनतेरस पूजन मुहूर्त एवं तिथि
धनतेरस तिथि प्रारंभ- 12 नवंबर 09:30 बजे से
धनतेरस तिथि की समाप्ति-13 नवंबर गोधूलि बेला में 05:59 मिनट तक
धनतेरस पूजन का समय- 05:28 मिनट से लेकर 05:59 के बीच
प्रदोष काल – सांय: 05:25 से रात्रि 08:06 बजे तक
वृषभ काल – सांय: 05:33 से रात्रि 07:29 बजे तक
धनतेरस पूजन सामग्री
लक्ष्मी-गणेश की छवि वाले चांदी के सिक्के, पूजा के लिए 5 ताम्बुल, 21 कमलगट्टे चढ़ाने के लिए, भोग लगाने के लिए पीली और सफेद मिठाई, दोष रहित पान के पत्ते, लौंग, कपूर, रोली, अक्षत, पुष्प, गंध, माला, शरीफा फल, श्रीफल, गंगा जल, गंगा जल, धूप, चंदन, हल्दी, शहद, दूर्वा इत्यादि।
धनतेरस पूजन विधि
गोधूलि बेला में काष्ठ आसन पर पीतांबरी बिछाकर भगवान धनवंतरी, मां लक्ष्मी और यक्षराज कुबेर की छवि या प्रतिमा स्थापित करे। इसके बाद पूजन स्थल को गंगाजल से पवित्र करें। नवग्रह, दिग्पालों, ग्राम देवता, कुलदेवता और इष्ट का आवाह्न करते हुए पूजन शुरू करें। गोत्र का मन में स्मरण कर दीप करें। चंदन से तिलक करें। तत्पश्चात् 21 या 108 बार “ॐ ह्रीं कुबेराय नमः” का जाप करें। धनवंतरी स्तोत्र का वाचन करें। भगवान धनवंतरी को पीले रंग की मिठाई और यक्षराज कुबेर को सफेद मिठाई का भोग लगाये। मां लक्ष्मी और गणेश का पूजन करें। मां लक्ष्मी को सम्पूर्ण श्रृंगार और कमलगट्टे अर्पित करें। दूर्वा चढ़ाते हुए गजानन को प्रसन्न करें। पूजन के अन्त सभी से किसी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा मांगकर पूजा को समापन की ओर ले जाये। दक्षिण दिशा में भगवान यम का स्मरण करते हुए दीये को जलाये।
भगवान यम को दीप जलाने की कथा
एक बार जिज्ञासु दूत ने यमराज से पूछा कि अकाल मृत्यु (Premature death) से बचने की कोई युक्ति है तो बताये। इस पर यमराज ने कहा कि धनतेरस की गोधूलि बेला में यदि कोई प्राणी मेरे नाम का स्मरण करते हुए दीप प्रजल्लवित करता है तो उसे अकाल मृत्यु की त्रास नहीं सताती। इसी मान्यता का अनुसरण करते हुए लोग इस दिन दक्षिण दिशा में दीया जलाते है। जिससे प्रसन्न हो मृत्युदेव उन्हें अकाल मृत्यु के कोप से बचाते है।