DMK सरकार को सुप्रीम कोर्ट से मिला बड़ा झटका, तमिलनाडु में RSS के मार्च को मिली मंजूरी

न्यूज डेस्क (विश्वरूप प्रियदर्शी): सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ DMK सरकार की याचिका खारिज कर दी, जिसमें RSS को तमिलनाडु में जुलूस निकालने की मंजूरी दी गयी थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI- Popular Front of India) पर प्रतिबंध के बाद कानून और व्यवस्था के हालातों को काबू करने के लिये सूबे में पंजीकृत कई मामलों में आरएसएस के सदस्य पीड़ित थे ना कि अपराधी।

जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और पंकज मिथल (Justices V Ramasubramaniam and Pankaj Mithal) की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट ने न सिर्फ कानून के प्रासंगिक प्रावधानों की सही व्याख्या की, बल्कि संवेदनशील इलाकों में मार्च की मंजूरी देते हुए जरूरी शर्तें भी लगायी। 27 मार्च को SC ने राज्य की एक याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसमें RSS ने आग्रह किया था कि उसके मौलिक अधिकारों पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है।

मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि- जैसा कि प्रतिवादी पक्ष के सभी वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने उचित रूप से तर्क दिया, उच्च न्यायालय के सामने राज्य की ओर से उठाई गयी मुख्य आपत्ति ये थी कि किसी अन्य संगठन पर प्रतिबंध लगाने के आदेश के बाद कानून और व्यवस्था की समस्याएं कुछ जगहों पर सामने आईं और जिसकी वज़ह से कई मामले दर्ज किये गये। उन मामलों से जुड़े सभी पक्षों को असल में विशेष अनुमति याचिका(ओं) के आधार के ज्ञापन में पेश किया गया है। हम इस संवेदनशीलता के कारण में राज्य द्वारा की ओर से किये पेश गये चार्ट को निकालना नहीं चाहते हैं …,”।

कोर्ट ने आगे कहा कि- “लेकिन राज्य सरकार की ओर से प्रदान किये गये चार्ट से पता चलता है कि प्रतिवादी संगठन के सदस्य उन कई मामलों में पीड़ित थे और वो अपराधी नहीं थे। इसलिये हमारे लिए ये मुमकिन नहीं है कि हम आयोग द्वारा पारित आदेश में गलती करें।”

राज्य ने तर्क दिया कि आरएसएस को खास रास्तों पर मार्च निकालने की मंजूरी दी जानी चाहिए, लेकिन इसे सार्वजनिक व्यवस्था और शांति बनाये रखने के लिये दूसरे रास्तों से इसे निकालना चाहिये। सरकार राज्य भर में आरएसएस के रूट मार्च और जनसभाओं की मंजूरी देने के पूरी तरह से खिलाफ नहीं थी, लेकिन खुफिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि ये हर गली या मोहल्ले में आयोजित नहीं किये जा सकते।

हालांकि आरएसएस ने राज्य की दलील का कड़ा विरोध किया और कहा कि शांतिपूर्वक इकट्ठा होने का अधिकार उसका मौलिक अधिकार है जिसे बहुत मजबूत आधार की बुनियाद के बिना कम नहीं किया जा सकता है।

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