नई दिल्ली (दिगान्त बरूआ): स्वदेशी रक्षा उत्पाद के क्षेत्र में अग्रणी संस्थान डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) ने घरेलू तकनीक से बने स्क्रैमजेट प्रोपल्शन सिस्टम के जरिए हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डेमन्स्ट्रेटर व्हीकल (Hypersonic Technology Demonstrator Vehicle-HDTV) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। परीक्षण का काम बालासोर, ओडिशा स्थित डॉ. अब्दुल कलाम द्वीप के एकीकृत परीक्षण रेंज (Integrated Test Range of Dr. Abdul Kalam Island, Balasore, Odisha) से किया गया। इसे मेक इन इंडिया अभियान के तहत भारत की बड़ी कामयाबी से जोड़कर देखा जा रहा है। इस परीक्षण के साथ ही भारत उन चुनिन्दा देशों की फेहरिस्त में शामिल हो गया है, जिनके पास ये तकनीक है। इस तकनीक के इस्तेमाल से कम लागत में सैटेलाइट छोड़ना और हाइपर क्रूज मिसाइल (Hyper cruise missile) बनाना बेहद आसान हो जायेगा। अमेरिका, रूस, और चीन के बाद भारत चौथा ऐसा देश है, जिसके पास ये तकनीक है।
चीन से मिल रही चुनौतियों के बीच ये कामयाब परीक्षण कहीं ना कहीं बीजिंग के हुक्मरानों पर बड़ा मनोवैज्ञानिक दबाव बनायेगा। इस अभूतपूर्व कामयाबी औपचारिक घोषणा करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ट्विट कर लिखा कि- डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) ने स्वदेशी तकनीक से विकसित स्क्रैमजेट प्रोपल्शन सिस्टम (Indian Scramjet Propulsion System) का आज हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डेमन्स्ट्रेटर व्हीकल (Hypersonic Technology Demonstrator Vehicle) के माध्यम से सफलतापूर्वक परीक्षण किया। एक बड़ी कामयाबी के लिए डीआरडीओ बधाई का पात्र है। आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने की दिशा में ये काफी अहम कदम साबित होगा।
आगे उन्होनें लिखा कि- स्वदेशी रूप से विकसित स्क्रैमजेट प्रोपल्शन प्रणाली का इस्तेमाल कर जिस तरीके से हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डेमोंट्रेटर वाहन का कामयाब ढंग से परीक्षण किया गया। उससे प्रक्षेपास्त्र तकनीक (Missile technology) से जुड़ी दूसरी अहम् तकनीकों के अगले चरण को विकसित करने में खासा मदद मिलेगी। इस कामयाबी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत विजन को आगे बढ़ाया। मैंने स्वयं परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों से बात की और उन्हें इस महान उपलब्धि के लिए बधाई दी। भारत को उन पर गर्व है।
इस तकनीक की मदद से भारत अपनी मिसाइलों और राकेट्स को बेहद कम समय में 6 मैक (6 Mach) की रफ्तार दे पायेगा। तकरीबन 20 सैकेंड के अन्दर मिसाइलों और राकेट्स 32.5 किलोमीटर की ऊंचाई पर आसानी से पहुँच सकेगें। आने वाले वक्त में डीआरडीओ इस तकनीक को और भी उन्नत करेगा।