नई दिल्ली (यथार्थ गोस्वामी): दुर्गा पूजा (Durga Puja) के सातवें दिन माँ के स्वरूप को कालरात्रि (kaalratri) रूप में पूजा जाता है। माँ दुर्गा का ये रौद्र रूप है। बुरी शक्तियां माँ के इस रूप से सदैव भयभीत रहती है। माँ का शरीर गहन श्यामवर्ण का है और उनके केश सदैव खुले रहते है। माँ के गले में वैद्युतीय ऊर्जा से परिपूर्ण माला है। गधे के वाहन पर सवार माँ का दाहिना हाथ वरमुद्रा में और दांयी तरफ नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा और नीचे वाले हाथ में खड्ग है। भले ही माँ का रूप अत्यंत भंयकर है परन्तु उपासकों के लिए माँ सदैव ममतामयी और दया बरसाने वाली है।
माँ की अनन्त कृपा से साधकों को सभी सिद्धियां स्वत: प्राप्त होने लगती है। ग्रह बाधा सहित अग्नि, जल, जंतु, शत्रु, रात्रि, दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, पिशाच और यक्षिणी से संबंधित सभी बाधायें समाप्त हो जाती है। माँ को भद्रकाली, काली, महाकाली, भैरवी, मृत्यु, रुद्राणी, चामुंडा, दुर्गा, चंडी, रौद्री और धुमोरना आदि नामों से भी जाना जाता है।
माँ दुर्गा के सातवें स्वरूप कालरात्रि की पूजा विधि
काठ की चौकी को गंगाजल शुद्ध करके उस पर वस्त्रासन बिछाकर माता की तस्वीर और श्रीविग्रह को स्थापित करें। माँ की पूजा का मानस संकल्प लेते हुए माँ के इन मंत्रों का जाप करें। ॐ कालरात्र्यै नम:।‘ और‘ॐ फट् शत्रून साघय घातय ॐ।’ तदोपरान्त पूजा स्थल की शुद्धि गंगा जल या गोमूत्र से करें। ग्राम देवता, कुलदेवता, नवग्रह, नक्षत्रों और दिग्पालों का आवाह्न करें। एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥ वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥ मन्त्र का जाप करते हुए पूजा आरम्भ करें। तांबे या मिट्टी के घड़े में स्वच्छ जल भरकर उस पर नारियल स्थापित करें। इसके बाद माँ के बीज़ मंत्र क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:। का मानस जाप करें। दीपक-धूप-गंध-गुग्गल जलाकर लाल फूल, नारियल या बेसन के लड्डू, केले, लाल चुनरी माँ को चढ़ा दें। मां कालरात्रि को पुष्प में रातरानी अत्यंत प्रिय है अतएव रातरानी माँ अवश्य ही अर्पित करें। इसके बाद मां कालरात्रि को गुड़ और नारियल से बने पकवान या गुड़ की बनी रेवड़ी का भोग लगाये। लाल तिकोना झंडा मां को अर्पित करें और पूजा विधि-विधान सम्पन्न होने के बाद अपनी घर की छत पर लगा दें। जीवन की कठिनाइयों को कम या समाप्त करने के लिए सात या सौ नींबूओं की माला माँ कालरात्रि को अर्पित करे। साथ ही अर्गला स्तोत्रम, सिद्धकुंजिका स्तोत्र, काली चालीसा और काली पुराण का विशेष रूप से पाठ करें। अगर उपासकों या साधकों को शत्रुबाधा सता रही हो तो इस मंत्र का जाप 108 बार करे ॐ ऐं सर्वाप्रशमनं त्रैलोक्यस्या अखिलेश्वरी। एवमेव त्वथा कार्यस्मद् वैरिविनाशनम् नमो सें ऐं ॐ।। माँ दुस्वप्नों को समाप्त कर उसका शुभफल देने वाली है। इसके लिए प्रात: इस मंत्र की एक माला का जाप करे ‘ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं दुर्गति नाशिन्यै महामायायै स्वाहा।’ इसके बाद कन्याओं को यथासंभव दान-पुण्य करे।
माँ कालरात्रि का स्रोत पाठ
हीं कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं हीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी। कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥
माँ कालरात्रि का ध्यान करने के लिए जाप मंत्र
करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥
दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम॥
महामेघ प्रभां श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥
माँ कालरात्रि कवच
ऊँ क्लीं मे हृदयं पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
ललाटे सततं पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥
रसनां पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशंकरभामिनी॥
वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि।
तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।