पश्चिम यूरोप में कई दशकों बाद भीषण बाढ़ (European floods) देखी गयी। इसी क्रम में पश्चिमी यूरोप में कम से कम 120 लोग मारे गये। सैकड़ों बेहिसाब लोगों पर इसने अपना असर डाला। पश्चिमी और दक्षिणी जर्मनी में मूसलाधार बारिश के कारण आयी विनाशकारी बाढ़ से 100 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गयी। पुलिस और स्थानीय अधिकारियों के मुताबिक इस त्रासदी में हजारों लोग लापता हैं।
बाढ़ के कारण बेल्जियम में कम से कम 20 लोगों की मौत हो गयी। नीदरलैंड, लक्जमबर्ग और स्विट्जरलैंड में भी इसका असर देखा गया। बाढ़ कई कारणों से आती हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण वातावरण गर्म होने ज़्यादा बारिश होने की संभावनायें बढ़ जाती है।
वैज्ञानिकों ने राजनेताओं की निंदा की है कि, वे अपने नागरिकों को उत्तरी यूरोप में बाढ़ और गुंबदनुमा अमेरिकी गर्मी के कहर से बचाने में पूरी तरह नाकाम रहे। मौसम वैज्ञानिक और पर्यावरणविद् (Meteorologist And Environmentalist) सालों से भविष्यवाणी कर रहे हैं कि इंसानी गतिविधियों के कारण जलवायु लगातार बढ़ेगा जिससे बारिश और गर्मी के कहर में और भी इज़ाफा होगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि लंदन, एडिनबर्ग और अन्य जगहों पर पिछले हफ्ते अचानक आयी बाढ़ अतीत की मुकाबले काफी असामान्य थी, लेकिन भविष्य में ये और ज़्यादा पैमाने पर आयेगी। जिसके कारण ये आम से लगने लग जायेगी। वैज्ञानिक ने लंबे समय से भविष्यवाणी कर रहे है कि जलवायु परिवर्तन से मौसम और बिगड़ेगा। हीटवेव, सूखा और बाढ़ के हालात लगातार बने रह सकते है।
इंजन से निकलने वाले धुएँ, जंगलों के जलने और अन्य औद्योगिक गतिविधियों (Industrial Activities) से निकला कार्बन उत्सर्जन (Carbon Emission) धरती को गर्म कर रहा है। जैसे-जैसे वातावरण गर्म होता है, इसमें ज़्यादा नमी बनती है जिससे ज़्यादा बारिश होती है। औद्योगिक युग शुरू होने के बाद से दुनिया पहले ही लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा गर्म हो चुकी है और जब तक उत्सर्जन में भारी कटौती नहीं होगी तब तक तापमान बढ़ता रहेगा।
वैज्ञानिकों का कहना है कि सरकारों को CO2 उत्सर्जन में कटौती करनी चाहिये जो मौसमी घटनाओं को बढ़ावा दे रहे हैं। इसके साथ ही मानवजाति को और अधिक चरम मौसम के लिये तैयार रहना होगा। दुनिया के इतिहास में रिकॉर्ड किये गये सात सबसे गर्म साल 2014 के बाद से आये हैं।
मानवीय गतिविधियों द्वारा हुए कार्बन उत्सर्जन ने पिछले महीने कनाडा और उत्तरी अमेरिका में घातक 'हीट डोम' की संभावनाओं में कम से कम 150 गुना का इज़ाफा कर दिया। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन ने पिछले साल साइबेरिया में लंबे समय तक लू चलने की संभावना को 600 गुना ज़्यादा बढ़ा दिया था।
बाढ़ को जेट स्ट्रीम के विघटन (Jet Stream Disruption) से जोड़ा जा सकता है, एक सिद्धांत के मुताबिक आर्कटिक में बर्फ के नुकसान ने जेट स्ट्रीम को और अधिक अनिश्चित बना दिया है। हालांकि इस मामले पर अभी तक वैज्ञानिक सहमति नहीं है, लेकिन विशेषज्ञ इसे लेकर ज़्यादा चिंतित हैं।
वैश्विक तापमान (Global Temperature) से ज़्यादा पानी वाष्पित हो जाता है, जिससे वार्षिक वर्षा और हिमपात की मात्रा में बढ़ोत्तरी होती है। साथ ही एक गर्म वातावरण का मतलब है कि ये ज़्यादा नमी सोख सकता है जिससे वर्षा की तीव्रता भी बढ़ जाती है। पौधों को धीरे-धीरे पानी देने के बजाय, ये तेज बारिश की तीव्र संभावनाओं को जन्म देती है, जैसा कि हम अभी उत्तरी यूरोप में देख रहे हैं।