न्यायपालिका का अब व्यवस्था से मोहभंग हो गया है, इसीलिए विचार रखते हुए उसने कहा कि कैंसर सिस्टम में अपनी जड़े जमा चुका है। लेकिन व्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा अपने आप में कैंसर है। यहाँ पर कई जोकें है, जो इस कैंसर को फैलाने के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है। भष्ट्राचार, लालफीताशाही, भाई-भतीजावाद, नक्सलवाद और आंतकवाद और इसी तरह फेहरिस्त बहुत लंबी है। अब सवाल यह उठता है कि व्यवस्था में कैंसर फैलाने वाले इन परजीवियों की नाक पर नकेल कौन कसेगा। अब गेंद जनता की अदालत और न्यायपालिका के पाले में है। दोनों के पास इन परजीवियों का सफाया करने की ताकत है। एक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के द्वारा और दूसरा अपनी न्यायिक ताकतों द्वारा इन पर लगाम लगा सकता है। पर ध्यान रखने वाली बात ये है कि इन सफाये के लिए पूरी ताकत लगानी होगी, अगर व्यवस्थापिका एक भी परजीवी बच गया तो वह नपुंसक हो जायेगा और आगे अपनी तरह के परजीवियों को जन्म नहीं दे पायेगा। राष्ट्र और उसके संसाधन बेशकीमती हैं और ये सिर्फ उन लोगों के हैं जो नागरिक हैं और जो राष्ट्र और आने वाली नस्लों के लिए बेहतर कल तैयार करते है। इसके अलावा बाकी सब बोझ है।
– कैप्टन जी.एस. राठी
सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता
– कैप्टन जी.एस. राठी
सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता