Corona Crisis: पढ़िये कोरोना वॉर्ड के डॉक्टरों और हेल्थ वर्करों के जज़्बात

न्यूज डेस्क: कोरोना संकट (Corona Crisis) के दौरान देश के हालात संभालने की जिम्मेदारी बड़े पैमाने पर डॉक्टरों, पैरामेडिकल स्टॉफ और हेल्थ वर्करों पर टिकी रही। जहां कहीं लोगों की जान मेडिकल लापरवाही के कारण गयी। वहीं दूसरी ओर मेडिकल व्यवसाय से जुड़े कुछ लोगों ने दिन-रात एक कर दिये ताकि मरीज की जान बचायी जा सके। मरीज का दर्द, छटपटाहट, चीखना-चिल्लाना, तीमारदारों के आंसू और लाशों का ढ़ेर ये मंजर किसी भी इंसान को अन्दर तक तोड़ने के लिये काफी है। ऐसे में हम इस आर्टिकल के जरिये कोरोना महामारी के दौरान सेवा में लगे डॉक्टरों, पैरामेडिकल स्टॉफ और हेल्थ वर्करों के कुछ किस्से सामने लेकर आये है ताकि आम जनता जान सके कि महामारी के दौरान अस्पताल की दीवारों के भीतर वो कैसा महसूस कर रहे थे।

सुबह के 4 बजे 1 मई

दिल्ली के एक प्राइवेट हॉस्पिटल के बाहर डॉ आरिफ शोएब अपनी कार मे बैठते है और रोते हैं। एक मिनट पहले उन्होंने एक पेशेंट को खोया है। 40 साल की एक महिला जिन्हें उनका 15 साल का बेटा लाया था। ऑक्सीजन की भारी कमी के साथउसी रात एक दूसरे पेशेंट ने वैन में कैनुला डालने से पहले ही आखिरी सांस ली थी। डॉ आरिफ शोएब ने मीडिया से कहा कि “मैं भागना चाहता हूं, पिछले 10 दिनों को मैं मिटाना चाहता हूं। इस किस्म के ट्रामा के लिये किसी ने हमें तैयार नहीं किया। एक हेल्थ वर्कर के तौर पर हमने कई मौतें देखी है, पर ये कुछ और हैं”

दिल्ली के LNJP hospital में नर्सिंग ऑफिसर” रेणु शर्मा” अपने भतीजे और भाभी को कोविड से खोने के 4 दिन बाद ही काम पर लौटी हैं। जब भी किसी नौजवान को वे ऑक्सीजन के लिए तेजी से सांसे भरता देखती है तो उनकी हार्ट बीट्स बढ़ जाती है, उन्हें अपना 36 साल का भतीजा याद आ जाता है। रेणु शर्मा ने कहा कि, पिछले एक महीने ने हेल्थ सिस्टम की दरारों को खोल दिया है। लोग यहां से वहाँ बेड के लिये भाग रहे है, ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए भाग रहे है। परिवार सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन, दवाई यहाँ तक कि शमशान घाट तक जाने के लिए मदद मांग रहे है । हेल्थ केयर वर्कर्स पर प्रेशर बढ़ गया है।

कोविड वार्ड में

कोविड आईंसीयू में जब एक कुलीग एडमिट हो गया है, ओडिसा में अपने माता पिता कोविड से इन्फेक्टेड हो गया। उनको यहां से मॉनिटरिंग करना है। 50 पेशेंट के ऑक्सीजन से लेकर दूसरी चीज़ों को देखना काली चरण दास न्यूरो एनसथेटिक्स (Neurosthetics) सुबह तक जगे मिले, जब उन्होनें ये कहा।

उन्होनें आगे कहा कि “पिछले साल बहुत कम लोगों को खास तौर से कम उम्र के लोगो को वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत थी, इस साल 30 से 40 साल के लोग जा रहे हैं। हर रात मैं उन लोगो के बारे में सोचता हूँ जिन्हें बचा नही पाया। इमेजिंन करिये आईंसीयू में एडमिट मेरा कुलीग मुझे मेसेज करता हैं

मैं सांस नही ले पा रहा हूँ

मैं किन हालातों में रहा हूंगा।

हम हिल गये हैं, टूट गए है। मैं अजनबी लोगों को आई सी यू की डेथ के बारे में बताने लग गया हूँ। साथ ही उन्हें डाँट लगाकर मास्क पहनने के लिये कहता हूँ

हेल्थ वर्कर की ड्यूटी ऑवर में वो हिस्से नही होते हैं, जिसमें उन्हें एक खास तरीके से ppe किट पहनना और उतारना होता है। ये ड्यूटी शिफ्ट बहुत अहम हिस्सा है, जो उन्हें और उनके कुलीग्स को इंफेक्शन से बचाये रखता है।

मेरे अंडर 32 पेशेंट है। सब के सब ऑक्सीजन सपोर्ट पर इन लोगों के घर वाले दुख से लड़ रहे है। मेरे पास “ग्रीफ काउंसलिंग” के लिए वक़्त नही है। रेणु शर्मा कहती है कि, मैनें LNJP hospital में अपने 4 कुलीग्स को पिछले एक हफ्ते के दौरान खोया है, जिनमें 3 नर्सिंग स्टाफ और एक लेब टेक्नीशियन शामिल है।

“पिछले हफ्ते एक पेशेंट का ऑक्सीजन सेचुरेशन (Oxygen saturation) अचानक से डीप होने लगा, 56 हो गया, हमने प्रोनिंग की, उसे बाई पेप मशीन पर रखा। उसका सेचुरेशन 88 -89 हो गया। 2बजे मेरी ड्यूटी खत्म हुई, 3.45 मुझे कॉल आयी वो नही रही” रेणु शर्मा पेशेंट के बारे में सोचते सोचते सुबह तक रोती रही। कई बार अपने भतीजे के लिये भी वो ड्यूटी के दौरान रोती मिली।

कैंसर इंस्टीट्यूट की हेड प्रज्ञा शुक्ला नॉन कोविड हॉस्पिटल की ड्यूटी पर इंफेक्शन खत्म होने के बाद लौटी है, इंफेक्शन उनके बेटे को उनसे लगा था। वो कहती है कि उन्होंने अब काउंट करना छोड़ दिया है। उनके कितने जानने वाले लोगो को वायरस ने लील लिया है।

वो कहती है कि, जब ये महामारी चली जायेगी तब हम पोस्ट कोविड इफेक्ट से जूझेगें। फोन की रिंग टोंस से मैं डरने लगी हूं। पिछले दिनों में कितने लोगों ने दवाइयों,बेड,ऑक्सीजन के लिए मुझे फोन किया। मैं असहाय महसूस करती हूं। एक किस्म का फेलियर, अब मैंने अनजान नंबर से फोन उठाना छोड़ दिया है। मैं मदद ना कर पाने की गिल्ट को और नही सहन कर सकती।

सांता शिवराजन सीनियर नर्सिंग ऑफिसर RML हॉस्पिटल और नर्सिंग यूनियन के अध्यक्ष बतलाते है। अस्पतास में कुल 1200 नर्सेस है। जिसमें से 400 कांट्रेक्ट है और तकरीबन 700 काम कर रही है। 100 के आसपास ऐसी नर्सें है जो गर्भवती, शुगर की पेशेंट और बच्चों को दूध पिलाकर लालन-पालन कर रही है। ऐसे में इन्हें इन्फेक्टेड कोविड वार्ड में ड्यूटी नहीं करवायी जा सकती। उन्होनें आगे कहा कि, 4 मई का हिन्दू अखबार बतलाता है कि 10 नर्सों का पहला बैच मनिपाल के कस्तूरबा हॉस्पिटल से दिल्ली के लिए निकला है। जिससे भारी राहत मिलने की उम्मीद है।

दिल्ली के प्राइवेट हॉस्पिटल का एक मेल नर्सिंग स्टाफ ने अपना नाम बताये बगैर कहा कि, मुझे दो बार ऑक्सीजन प्लांट पर ऑक्सीजन लेने के लिए लाइन में लगने को कहा गया है। ये मेरी ड्यूटी नहीं है, पर मैं छह घंटे वहां रहा हूँ। चूंकि हॉस्पिटल ऑक्सीजन की सप्लाई की कमी से जूझ रहा था तो हम दो लोगों को यहां भेजा गया।

24 साल के कॉन्ट्रैक्ट पर रखे गये उस नौजवान का काम बॉडी को मोर्चरी में ले जाने का है, वो बतलाता है पहली बार जब मैं वहां गया तो लगा जैसे मेला है, इतनी सारी डेड बॉडी। उसने कहा कि, मैं लौटा और रात को रोया,मेरे माता पिता मुझसे जॉब छोड़ने को कहते है, पर मेरे परिवार में मेरे सिवा कमाने वाला और कोई नही है।

महाराजा अग्रसेन हॉस्पिटल के इमरजेंसी नर्सिंग इंचार्ज 37 साल के विल्सन कहते है कि, हर बेड पर लगभग 2 पेशेंट दावेदार है, कुछ व्हील चेयर पर भी हैं। हम सब डरते है अगर हम बीमार हुए तो हमें बेड नही मिलेगा। एक एक्स कुलीग को जो अब एक प्राइवेट हॉस्पिटल में है। उन्हें अपने माता पिता के लिए कोई बेड नहीं मिला। आखिरकर वो यहां एडमिट हुए, उन्होंने इतने साल इस फील्ड में काम किया तो भी उन्हें इतना झेलना करना पड़ा। ये हम सबको निराश करता है।

दस दिन के बाद उसके पिता गुजर गए और उसके दो दिन बाद उनकी मां।

अपने माँ बाप को दो दिन में खोना !

इससे ज्यादा दर्द और क्या होगा ?

दीन दयाल उपाध्याय में 39 साल के नर्सिंग ऑफिसर नवीन कहते है कि, रोज जब मैं हॉस्पिटल पहुंचता हूँ कितने लोगों को बाहर किसी बेड के इंतज़ार में देखता हूँ और अंदर 100 से ज्यादा लोगों को। हाल ही में 32 साल के एक जिम इंस्ट्रक्टर को जब एडमिट किया गया और उसकी हालत खराब होते देख मैं निराश हो गया। उसके भाई को ppe किट पहनाकर तैयार कर ऊपर वार्ड में लाया गया। जब सभी लोग प्रयास कर रहे थे। हम काफी देर तक किसी कोने में खामोश बैठे रहे, बस हम रो नही रहे थे, 32 साल की कोई उम्र होती है जाने की, उसकी शादी भी नहीं हुई थी।

28 साल के शिवराजन जो RML में है। वो कहते है कि, मैंने कभी इस तरह इतने पेशेंट को नही देखा, डेंगू के सबसे बुरे दौर में भी। हम रोज एक अनजान पेशेंट के लिए दुखी होते है। हमारी एसोसिएशन बार बार कहती है कि स्टाफ के बीमार होने पर हमारे लिए बेड रिजर्व का प्रावधान होना चाहिए। काश एडमिनिस्ट्रेशन को अहसास हो कि हमे मेन्टल कॉउंसलिंग की जरूरत है।

“मेजर साधना” मैक्स की क्रिटिकल केयर में एनसथेटिक्स है। आर्मी के बाद उन्होंने यहां जॉइन किया है।

उन्होनें कहा कि “ये शायद सबसे मुश्किल असाइनमेंट है क्योंकि ये खत्म होता नहीं दिखता”

उन्होनें आगे कहा कि, 20 से 45 साल के लोग इस बार सबसे ज्यादा इफेक्टेड है। खास तौर से वो जो वैक्सीनेटेड नहीं है। पोस्ट कोविड केयर भी एक जरूरी हिस्सा है।

मेजर साधना 62 साल के अपने एक पेशेंट को याद करती है। जिसकी मौत पोस्ट कोविड कॉम्पलिकेशन (Covid Complication) के कारण हुई। वो राजस्थान से थे। एक बेहद कंज़रबेटिव फैमिली से। जिन्होंने अपनी बेटियों को पढ़ाने के लिए बहुत विरोध का सामना किया।

मेजर साधना ने कहा कि, जब वो नही रहे तो मेरी आँखों में आंसू आ गये। ये वायरस अज़ीब है। एक पल आप ठीक मालूम होते हो, दूसरे ही पल…

मेजर साधना काम के बाद होटल जायेगी। उनकी 9 साल की बिटिया हैदराबाद में उनके सास ससुर के पास है,उनके पति जो भी खुद एक डॉक्टर है वो जालंधर पोस्टेड है।

मेजर साधना ने कहा कि, मैंने उन्हें दो महीने से नहीं देखा, शायद अगस्त तक सामने से नही मिल पाऊंगी। पर फिर किसी को तो जॉब करनी है।

मूल लेखक- सौम्या लखानी

आर्टिकल अनुवादक – अनुराग आर्य

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