नई दिल्ली (समरजीत अधिकारी): किसानों और व्यापारियों को विश्वास में लिये बगैर बीते बृहस्पतिवार को केन्द्र सरकार ने लोकसभा में दो (Agriculture & Farmers Bill 2020) बिल पास करवा लिये। जिसके विरोध में कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। कहीं ना कहीं एनडीए की सहयोगी शिरोमणि अकाली दल को ये आंशका है कि इस बिल का समर्थन करने से उनका वोट बैंक खिसक सकता है। बिल के मसौदे से किसानों में खासा नाराज़गी है। किसानों के मुताबिक विवादित बिल कानून की शक्ल अख़्तियार करते ही कई नयी परेशानियां भारतीय कृषकों के लिए खड़ी कर सकते है। प्रस्तावित बिल के मसौदे की रूपरेखा में अनुबंधित कृषि (Contract Farming) में होने वाले संभावित विवादों के समाधान के लिए एसडीएम को विधायी ताकतें (Legislative power to SDM) सौंपी गयी है जिसमें समाधान ना होने के हालातों में जिलाधिकारी को अंतिम अपीलीय अधिकारी बनाया गया है। इससे किसानों में काफी गुस्सा है। हाल ही में हरियाणा और पंजाब में इसका असर देखा जा चुका है।
मोटे तौर पर तीनों बिलों में सरकारी दावों को देखते हुए किसान इन मुद्दों को लेकर काफी आक्रामक है।
- समझौता और कृषि सेवा कानून के तहत सरकार दावा कर रही है कि कॉन्ट्रैक्ट खेती के प्रावधान लागू होने से किसानों की आमदनी बढ़ोत्तरी होगी। बेहतर कृषि तकनीक हासिल करने के साथ कृषि प्रसंस्करण इकाइयों, रिटेलर्स, बड़े होलसेलर्स कारोबारियों, निर्यातकों तक किसानों की सीधी पहुँच होगी। जब बड़ी राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियां किसानों से कॉन्ट्रैक्ट कर उन्हें भुगतान करेगी, तो फसलों का सही दाम मिल सकेगा। दूसरी ओर इस सरकारी दावे पर किसान ये कह रहे है कि इस कवायद से किसानों का शोषण होगा। ये पाश्चात्य कृषि का ढांचा है इससे किसानों सिर्फ मजदूर बनाकर रह जायेगा। कंपनियां किसानों के उत्पाद को अपने मानकों के अनुरूप ना होने का दावा करते हुए उनकी फसल खरीदने से इंकार कर सकती है। इस कृषि मॉडल (Agricultural model) को अपनाकर मंडी में बैठे व्यापारियों और आढ़तियों की रोजी-रोटी को खतरा है।
- कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार-संवर्धन एवं सुविधा कानून के अन्तर्गत केन्द्र सरकार एक देश, एक कृषि मार्केट बनाने की पहल कर रही है। जिसमें किसान अपनी सुविधा और मर्जी से कृषि उत्पाद कहीं भी बेच सकेगें। बिक्री विकल्प ज्यादा होने से किसानों को कम लागत में ज्यादा मुनाफा मिलने की संभावना बनेगी। पैन कार्ड धारक किसान किसी भी सुपरमार्केट चैन या फिर मंडी के बाहर सीधे तौर पर अपनी फसलों को बेच सकता है। इसके लिए कृषि उपज मंडी समिति प्रावधान को हटा लिया जायेगा साथ ही इस कृषि उत्पाद की बिक्री से होने वाली आय पर किसानों को किसी तरह का टैक्स भी नहीं देना होगा। बिल के मसौदे की इस शर्त पर किसान का पक्ष है कि जब कृषि उत्पाद की बिक्री मंडी से इतर कहीं ओर होगी तो सरकारें इसे किस तरह मॉनिटर और रेग्यूलेट करेगीं? इसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने की भी कोई व्यवस्था नहीं है जबकि कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कड़े कानूनी प्रावधान होने चाहिए। अगर किसानों का अपनी फसल बेचने के दौरान कंपनी और सुपर मार्केट चैन से कोई विवाद हो जाये तो इसके लिए कोर्ट का विकल्प भी नहीं खुला है। डीएम और एसडीएम ही इसकी सुनवाई कर सकते है देश भर में सरकारी अधिकारियों के काम करने की शैली जगज़ाहिर है। डीएम और एसडीएम बड़ी कंपनियों से हुए विवाद के मामले में कृषकों के मामले की निष्पक्ष सुनवाई करेगें इसमें बड़ा संदेह है।
- एशेंसियल कमोडिटी एक्ट में संशोधन (Amendment to the Essential Commodities Act) करके सरकार कृषि में हुए बंपर उत्पादन से होने वाले नुकसान से किसानों को बचाने का दम भर रही है। कई बार सरप्लस फसल होने से कोल्ड स्टोरेज और प्रोसेसिंग की सुविधा ना मिलने के कारण किसानों की फसलें खराब हो जाया करती थी। इसलिए सरकार ने दलहन, तिलहन, अनाज, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तु कानून के दायरे से बाहर कर दिया है। कुल मिलाकर अब व्यापारी इसे तयशुदा सीमा से ज्यादा स्टोर कर पायेगें। जिससे किसानों को लगता है कि इस फायदा उठाकर बड़े व्यापारी और सुपर मार्केट चैन किसानों की फसलों के बेहद मामूली दाम देगें। पर्याप्त पूंजी और संसाधनों के बल पर ये लोग फसलों को स्टोर करके बाद में बेतहाशा दाम बढ़ाकर ग्राहकों से लूटबाज़ारी करेगें। किसानों के मुताबिक केन्द्र सरकार पिछले दरवाज़े का इस्तेमाल कर कृषि क्षेत्र में निजीकरण और कॉर्पोरेट लूट को बढ़ावा देना चाहती है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार के कृषि विधेयक के जवाब में देशभर के किसानों में भारी रोष फैला हुआ है। कई किसान यूनियनों ने मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (संरक्षण एवं सशक्तिकरण बिल) और आवश्यक वस्तु संशोधन बिल का पुरजोर विरोध करने के लिए पंजाब के किसान संगठनों ने 25 सितम्बर को राज्यव्यापी बंद का आवाह्न किया है। आज पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के आवास के सामने जिला मानसा अक्कांवली गांव निवासी 55 वर्षीय किसान प्रीतम सिंह ने विरोध प्रदर्शन के दौरान ज़हर खा लिया। फतेहगढ़ साहिब से कांग्रेस विधायक कुलजीत नागर ने भी विरोध जाहिर करते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। हरसिमरत कौर बादल ने मंत्रिमण्ड़ल से इस्तीफा देते हुए कहा कि शिरोमणि अकाली दल किसी कीमत पर किसान विरोधी निर्णयों में केन्द्र सरकार की सहयोगी नहीं बन सकती है। ऐसे में ये प्रबल संभावना बनती है कि आने वाले दिनों में एनडीए के कई घटक दल मतान्तर होने पर हरसिमरत कौर बादल की तरह कड़ा फैसला ले सकते है।