एक्सीडेंटल Vs मेन्टल…
Protest अथवा विरोध:-डिक्शनरी में इसका मतलब है….”A strong complaint or disagreement”
किसानों को अन्नदाता कहने वाली सरकार अपने ही किसानों से इतना डर गयी हैं कि वह किसानों को रोकने के लिए राजमार्गों को खुदवा रहे हैं! 70 सालों का गड्ढा भरने का दावा करने वाली प्रधानमंत्री मोदी अपने ही हाईवेज पर बड़े बड़े गड्ढे खुदवा रहे हैं!
केन्द्र सरकार इससे पहले भी बड़े बड़े कारनामे कर चुकी हैं!
अक्टूबर 2017 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (National Green Tribunal) को आगे करके इन्होंने जंतर मंतर और उसके आसपास इलाकों में विरोध-प्रदर्शन से सम्बंधित सभी रैलियों पर पाबन्दी लगवा दी थी!
जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी जगहों पर लगी पाबंदियों को हटा दिया और दिल्ली पुलिस को इस सम्बन्ध में दिशा-निर्देश जारी करने को कहा!
दिल्ली पुलिस इनसे भी दो कदम आगे निकली! उसने सितबंर 2018 में एक निर्देश जारी किया! जिसके अनुसार, 1000 लोग जंतर मंतर, 2000 लोग पार्लियामेंट स्ट्रीट और मात्र 100 लोग बोट क्लब पर प्रदर्शन कर सकते हैं!
यदि प्रदर्शनकारियों की संख्या में वृद्धि की आशंका है तो विरोध-प्रदर्शन रामलीला मैदान में शिफ्ट करना होगा!
इसके साथ साथ सुप्रीम कोर्ट ने एक और बैन हटाया! वह था- रामलीला मैदान की बुकिंग का चार्ज!
केन्द्र सरकार ने कहा कि रामलीला मैदान में प्रदर्शन करने के लिए प्रदर्शनकारियों को 50 हजार रूपये की बुकिंग अमाउंट देनी होगी!
चूंकि रामलीला मैदान उत्तरी दिल्ली नगर निगम में पड़ता है, तो उन्होंने 2017 में आये NGT के आदेश के बाद इस पर प्रतिदिन 50000 रूपये वसूलने शुरू कर दिए! बैन हटते हटते निगम ने इससे 21 लाख रूपये कमा भी लिए! बतौर एडवांस 10 लाख लिए वो अलग!
केन्द्र सरकार मानती हैं कि पाबंदियां लगा देने से कोई प्रदर्शन नहीं होगा और जनता के बीच ये सन्देश जायेगा कि लोग खुश हैं और कोई प्रदर्शन नहीं हो रहा!
लेकिन ये भारत है! आजादी के पहले से ही विरोध-प्रदर्शन हमारी राजनीति का हिस्सा रहा है! 1857 के सिपाही विद्रोह से लेकर महात्मा गाँधी के सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा और असहयोग आंदोलन तक ….और भगत सिंह के असेम्बली बमकांड से लेकर जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति तक…. समूचा इतिहास विरोध-प्रदर्शनों से अटा पड़ा है!
इन प्रदर्शनों में शामिल अधिकांश लोग उन वर्गों से आते हैं जो सरकार की नीतियों से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं! ऐसे सारे प्रभाव अमूमन प्रतिकूल ही होते हैं! जैसे- महंगाई, बेरोजगारी, अराजकता ….या कोई विशेष मांग इत्यादि! इस विरोध-प्रदर्शन से राजनीतिक खेमा बहुत थर्राता है। क्यूंकि इनका प्रतिनिधित्व सिविल सोसाइटी (Civil society) के ऐसे गणमान्य लोग करते हैं, जिन पर तंत्र सीधे हाथ नहीं डाल सकता! इसलिए तंत्र इनपर बंदिशें लगाता है! …. न रहेगी बांस और न बजेगी बांसुरी!
सर्द रातों में जिनके नेता निर्भीक होकर राजघाट पर रतजगा किया करते थे उन्हें रामराज्य में कौन सा भय सता रहा है?
किसान ही तो हैं!
आने दो!
साभार – कपिल देव