हेल्थ डेस्क (यामिनी गजपति): शोधकर्ताओं के मुताबिक स्टेम सेल ट्रांसप्लाट हासिल करने के बाद अमेरिका में एक ल्यूकेमिया (खून का कैंसर) मरीज एचआईवी (HIV) से ठीक होने वाली पहली महिला और एड्स के संक्रमण से बचने वाली तीसरी शख़्स बन गयी है। बीते मंगलवार (8 फरवरी 2022) को अमेरिका में रेट्रोवायरस और ऑर्प्यूनिस्टिकी इंफेक्शन (सीआरओआई) पर एक कॉन्फ्रेंस के दौरान शोधकर्ताओं ने बताया कि एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (एआरटी) को बंद करने के बावजूद मरीज महिला में 14 महीने तक एचआईवी के संक्रमण, लक्षण और डिटेक्टेबल लेवल नहीं पाया गया।
बता दे कि स्टेम कोशिकाओं में शरीर में खासतौर से विकसित होने वाली कोशिकायें है, जिसमें रोगों और बाहरी लक्षणों से लड़ने की बेहतरीन ताकत होती है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) ने अपने बयान में कहा कि स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से एचआईवी इंफेक्शन ठीक होने का ये तीसरा मामला है। इससे पहले स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के दो लोग एचआईवी संक्रमण से मुक्त हुए थे।
पहला मामले को बर्लिन पेशेंट (Berlin Patient) कहा जाता है। जो कि एचआईवी संक्रमण से ठीक होकर 12 सालों तक जिया। स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से वो एचआईवी से पूरी तरह ठीक हो गया। साल 2020 सितंबर में उसकी मौत ल्यूकेमिया से हो गयी। दूसरा मामला लैटिन मूल के एक पुरूष मरीज का है। जिसे लंदन पेशेंट (London Patient) कहा जाता है। वो भी एचआईवी से ठीक हो गया।
स्टडी टीम ने अपने बयान में कहा कि ये तीसरा मामला बताता है कि कॉर्ड स्टेम सेल ट्रांसप्लाट को एचआईवी के इलाज के तौर पर देखा जाना चाहिये। ये रिसर्च इंटरनेशनल मैटरनल पीडियाट्रिक एडोलसेंट एड्स क्लिनिकल ट्रायल नेटवर्क (IMPAACT) P1107 ऑब्जर्वेशनल स्टडी द्वारा यूनिवर्सिटी ऑफ लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया (University of California Los Angeles) और जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की अगुवाई में की गयी थी।
IMPAACT P1107 ने अध्ययन 2015 में शुरू हुआ था। अपने रिसर्च सैंपल्स में टीम ने नतीज़े हासिल करने के लिये उन 25 लोगों को शामिल किया, जिन्हें एचआईवी था। इस रिसर्च में एक महिला को भी शामिल किया गया था, जिसका हाई मायलोइड ल्यूकेमिया डायग्नोस किया गया था और एचआईवी संक्रमण के कारण चार साल से वो एआरटी ट्रीटमेंट पर थी।
कीमोथेरेपी के बाद उसका मायलोइड ल्यूकेमिया करीब-करीब ठीक हो गया। साथ ही उसका एचआईवी संक्रमण भी काबू में था। साल 2017 में उसके एक नज़दीकी रिश्तेदार ने रज़ामंदी के साथ उसे पूरक गर्भनाल रक्त स्टेम कोशिकायें दी, जिसके उसका स्टेम सेल ट्रांसप्लांट किया गया।
शोधकर्ताओं ने कहा कि स्टेम सेल प्रत्यारोपण मिलने के बाद उसका 100 दिनों बाद एचआईवी टेस्ट किया गया, जिसमें संक्रमण और वायरस की मौजूदगी नहीं मिली। ट्रांसप्लांट के 37 महीने बाद मरीज का एआरटी ट्रीटमेंट बंद कर दिया गया।
एआरटी ट्रीटमेंट रोकने के 14 हफ़्तों बाद महिला की रक्त कोशिकाओं में एचआईवी डीएनए के ट्रेस स्तर में संक्रमण का कोई भी लक्षण और वायरस नहीं पाया गया। करीब 14 महीने बीत जाने के बाद भी मरीज में एचआईवी नहीं पाया गया।