न्यूज डेस्क (शाश्वत अहीर): केंद्र सरकार ने आज (28 सितम्बर 2022) पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और उसके सहयोगियों पर तत्काल प्रभाव से पांच साल के लिये बैन लगा दिया, जांच में सामने आया है कि संगठन लंबे समय से देश विरोधी गतिविधियों में शामिल रहा है। बैन की ये कवायद ऐसे वक्त में सामने आ रही है जब देशभर में फैले पीएफआई के कई ठिकानों पर NIA समेत कई एजेंसियों ने कार्रवाई करते हुए गिरफ्तारियां की है।
पीएफआई और इसके सहयोगी संगठन से जुड़े 170 लोगों को हिरासत में लिया गया या गिरफ्तार किया गया है। बता दे कि 22 सितंबर को एनआईए की अगुवाई कई जांच एजेंसियों ने देशभर में आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करने के आरोप में 15 राज्यों में पीएफआई के 106 नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया। एनआईए पीएफआई से जुड़े 19 मामलों की जांच कर रही है।
फिलहाल पीएफआई पर लगे बैन के लिये जारी अधिसूचना में कहा गया कि- “पीएफआई और उसके सहयोगी खुले तौर पर सामाजिक-आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक संगठन के तौर पर काम करते हैं, लेकिन वो लोकतंत्र की अवधारणा को कमजोर करने की दिशा में काम कर रहे है, समाज के एक खास वर्ग को कट्टरपंथी बनाने के लिये ये गुप्त एजेंडें पर काम कर रहे है।
अधिसूचना में आगे कहा गया कि पीएफआई और उसके सहयोगी गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त हैं, जो देश की अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा के लिये नुकसानदेह हैं और देश की सार्वजनिक शांति और सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने और आतंकवाद का समर्थन देने की कुव्वत रखते हैं। पीएफआई के कुछ संस्थापक सदस्य स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI- Students Islamic Movement of India) के नेता हैं और पीएफआई के कई सदस्य जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB- Jamaat-ul-Mujahideen Bangladesh) के साथ करीबी संबंध रखते हैं, ये दोनों प्रतिबंधित संगठन हैं।
इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (ISIS- Islamic State of Iraq and Syria) जैसे वैश्विक आतंकवादी गुटों के साथ PFI के संबंध की बात भी सामने आयी है। केंद्र सरकार की अधिसूचना में कहा गया है कि पीएफआई और उसके सहयोगी देश में असुरक्षा की भावना को बढ़ावा देकर खास समुदाय में कट्टरपंथ को बढ़ाने के लिये गुप-चुप तरीके से काम कर रहा है। इस बात से साफ हो जाता है कि कुछ पीएफआई कैडर अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों में शामिल हो गये हैं।
साल 2006 में केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक (Tamil Nadu and Karnataka) के तीन समान विचारधारा वाले कट्टरपंथी संगठनों के नेताओं ने एक साथ बैठकर मुस्लिम समुदाय (Muslim Community) को उनके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पिछड़ेपन से सशक्त बनाने के लिये अखिल भारतीय संगठन बनाने की जरूरत पर चर्चा की।
केरल के मलप्पुरम (Malappuram) जिले के मंजेरी (Manjeri) में हुई बैठक में सामने आये फैसले की बुनियाद पर केरल में राष्ट्रीय विकास मोर्चा (एनडीएफ), तमिलनाडु में मनिथा नीती पासराय और कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी के नेता कुछ महीने बाद बेंगलुरु में इकट्ठे हुए और ऐलान किया कि तीनों संगठनों के मिलाने से पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) वजूद में आया।
पीएफआई का वजूद स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) पर बैन के बाद सामने आया था। साल 2006 में अपनी पैदाइश के बाद पीएफआई ने जल्द ही देश के उत्तर, पश्चिम और पूर्व और उत्तरपूर्वी हिस्सों के अन्य राज्यों में अपने पैर फैलाये। इसके साथ कई सामाजिक संगठनों को मिलाने के बाद संगठन काफी तेजी से फैला।
पीएफआई के पास अब कई सहयोगी संगठन हैं, जिनमें इसकी राजनीतिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI- Social Democratic Party of India), छात्र विंग कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, नेशनल वीमेन फ्रंट, एनजीओ रिहैब इंडिया फाउंडेशन और एम्पावर इंडिया फाउंडेशन नाम का थिंक टैंक शामिल है।
साल 2009 में इसका विस्तार तब हुआ जब सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) ने राजनीतिक संगठन बनाया, जो कि मुसलमानों, दलितों और हाशिये पर जी रहे समुदायों के राजनीतिक मुद्दों को उठाने के मकसद से बना।
अपनी स्थापना के बाद से, पीएफआई पर प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) की शाखा होने का आरोप लगाया गया है। एनआईए के सूत्रों के अनुसार, पीएफआई के कई सदस्य पहले स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया और इंडियन मुजाहिदीन (Indian Mujahideen) जैसे प्रतिबंधित संगठनों से जुड़े थे।
पीएफआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष अब्दुल रहमान (Abdul Rahman) सिमी के पूर्व राष्ट्रीय सचिव थे, जबकि पीएफआई के राज्य सचिव अब्दुल हमीद (Abdul Hameed) सिमी के पूर्व राज्य सचिव थे। पीएफआई की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य प्रो पी कोया भी सिमी के सदस्य थे और ये जमात-ए-इस्लामी (Jamaat-e-Islami) के संपर्क में थे।
खासतौर से राशिद शेख शकील अब्दुल रहमान के बहुत करीबी थे, जो सिमी के पूर्व सदस्यों के सभा स्थल कमरुद्दीन मस्जिद के ट्रस्टी हैं। जून 2022 में पुणे बम धमाके (Pune Bomb Blasts) पीएफआई कैडर राशिद शेख द्वारा किया गया था, जो सिमी के पूर्व सदस्य थे।
पीएफआई नेता कथित तौर पर पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं के साथ मिलकर देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने की साजिश रच रहे थे। उन्हें खाड़ी और मध्य पूर्वी देशों से भी फंडिंग मिल रही थी। PFI कैडर अब्दुल रऊफ ISIS कैडर मोहम्मद शेलजी का करीबी सहयोगी है। दोनों ने एक साथ मिलकर हिजरा किया था।
अब्दुल रऊफ ने सीरिया और खुरासान (Syria and Khorasan) में ISIS की भर्तियों के लिये फंडिंग के साथ-साथ रसद भी मुहैया करवायी थी। एक अन्य कैडर अबू ताहिर (Abu Tahir) जो पीएफआई के मुखपत्र थेजस डेली के साथ काम कर रहा था, हिजरा के नाम पर सीरिया गया और फिर कभी वापस नहीं लौटा। बाद में उसने सोशल मीडिया पर अपने ISIS में शामिल होने की बात पोस्ट की।
PFI इस्लामिक सेवा संघ के संस्थापक अब्दुल नसर मदनी (Abdul Nasr Madani) का पूरा समर्थन कर रहा है, वो साल 2008 के बेंगलुरु सीरियल ब्लास्ट मामले में जेल में बंद है। मदनी की रिहाई के लिये PFI सोशल मीडिया अकाउंट और चैनल चला रहा है।