इस साल गणतंत्र दिवस समारोह कई मायनों में अलग रहा। ये पहली बार है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समारोह में पगड़ी या ‘साफा’ (Safa) नहीं पहना। इसके बजाय उन्होंने एक टोपी (Hat) पहन रखी थी, जो उत्तराखंड के पारंपरिक पोशाक का हिस्सा है। इस टोपी पर ब्रह्म-कमल (brahma-Kamal) का प्रतीक भी था, जिसे उत्तराखंड में देव-फूल का दर्जा देता है। यानि वो फूल जो देवताओं को समर्पित होता है। पीएम मोदी ने जब केदारनाथ (Kedarnath) में पूजा-अर्चना की थी तो उसी ब्रह्म कमल का इस्तेमाल किया गया था।
इसके अलावा पीएम मोदी ने एक ‘गमछा’ भी पहना था, जो मणिपुर की पारंपरिक पोशाक का हिस्सा है। हालांकि इस टोपी और ‘गमछा’ को लेकर देश भर में बहस छिड़ गयी। इन दोनों को अगले महीने उत्तराखंड और मणिपुर में होने वाले विधानसभा चुनावों (Assembly Elections) से जोड़कर देखा जा रहा है।
कहा ये भी जा रहा है कि पीएम मोदी ने एक तरह से उत्तराखंड की पारंपरिक टोपी पहनकर देश के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत (CDS General Bipin Rawat) को श्रद्धांजलि दी है। जनरल रावत भी उत्तराखंड के ही थे और जब भी वो उत्तराखंड जाते थे तो इस टोपी को पहनकर विभिन्न कार्यक्रमों में शिरकत करते नजर आते थे।
हालांकि हमें लगता है कि इस टोपी और ‘गमछा’ के पीछे एक और अहम पहलू है, जिसके बारे में शायद किसी ने नहीं सोचा था। 2015 से 2022 तक प्रधानमंत्री मोदी की सभी तस्वीरों को एक साथ देखें तो आपको पता चलेगा कि प्रधानमंत्री हर साल अपनी वेशभूषा, पगड़ी और ‘गमछा’ के साथ प्रयोग करते रहे हैं। साल 2021 में उन्होंने गुजरात का मशहूर ‘हलारी पग’ पहना था। इससे पहले वो अलग-अलग रंगों की पगड़ी या ‘साफा’ पहन चुके हैं।
इसके पीछे एक खास सोच है और वो है भारतीय संस्कृति को जिंदा रखने का विचार, जिसे पहले मुगलों ने खत्म करने की कोशिश की और फिर 200 साल तक अंग्रेजों ने इसे नुकसान पहुंचाया। 2019 में किये गये एक सर्वे में हर पांच में से तीन भारतीयों ने कहा कि वो भारत में पारंपरिक पगड़ी पहनने की मुकाबले पश्चिमी देशों में पहनी जाने वाली टोपी पसंद करते हैं। हालाँकि ये टोपियाँ भारत की देन नहीं हैं।
टोपियाँ ब्रिटेन से आती हैं और टोपियाँ टोपियों का आधुनिक संस्करण मानी जाती हैं, जो पश्चिमी देशों में पहनी जाती थीं। लेकिन मौजूदा दौर में भारत में पगड़ी और पारंपरिक टोपी पहनने का चलन नहीं है। लेकिन धीरे-धीरे ये पगड़ी अपनी पहचान खोने लगी।
एक जमाने में भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग रंग और आकार की पगड़ी पहनी जाती थी। लेकिन अंग्रेजों ने इन पगड़ियों को पिछड़ेपन की निशानी बताते हुए भारत के लोगों को टोपी पहनने के लिये प्रेरित किया। हालांकि जब नेताजी सुभाष चंद्र ने आजाद हिंद फौज (Azad Hind Fauj) की स्थापना की तो उन्होंने टोपी नहीं पहनी थी। बल्कि उन्होंने खाकी रंग की टोपी पहनी थी जो कि बिल्कुल उत्तराखंड की पारंपरिक टोपी की तरह दिखती है।
कहने का तात्पर्य ये है कि अंग्रेजों ने भारत के संसाधनों को नहीं लूटा, उन्होंने हमारी संस्कृति को भी कमजोर किया। और स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ये नारा काफी मशहूर हुआ कि भारत की पगड़ी को अंग्रेजों की टोपी से लड़ना है।
साल 1907 में अंग्रेजों के खिलाफ ‘पगड़ी संभाल जट्टा, जट्टा पगड़ी संभाल’ नाम से एक आंदोलन भी चला, जिसमें शहीद भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह भी शामिल थे। गणतंत्र दिवस समारोह (Republic Day Celebration) भारत की पहचान, संस्कृति और चरित्र को दर्शाता है। तो ये उत्सव भारत के बारे में होना चाहिये। पीएम पिछले आठ साल से अलग-अलग राज्यों की पगड़ी, टोपी और गमछा पहनकर ऐसा ही करते आ रहे हैं। जिसे देखकर साफ लगता है कि वो सांस्कृतिक पहनावे के जरिये भारतीय गणतंत्र को प्राचीन गणराज्य परम्परा की ओर ले जाना चाहते है।