मुद्रास्फीति और आर्थिक मंदी (Inflation And Economic Recession) तेजी से आपकी ओर बढ़ रही है और इससे पहले कि आपकी मासिक आमदनी आधी हो जाये और खर्च दोगुना हो जाये, ऐसे में आपको सतर्क रहने की जरूरत है। भारत में थोक मूल्य सूचकांक (WPI– Wholesale Price Index) बीते 30 सालों में सबसे ज़्यादा दर्ज किया जा रहा है। इस समय दुनिया में भारत ही नहीं अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी (Britain and Germany) जैसे बड़े देशों में महंगाई अपने चरम पर है। दुनिया के हर बड़े देश की करेंसी गिर रही है और दुनिया भर के स्टॉक क्रैश (Stock Crash) हो रहे हैं।
ये सभी लक्षण आर्थिक मंदी के हैं। और अगर आर्थिक मंदी आती है तो आपकी नौकरी (Job) से लेकर कारोबार तक सब कुछ खतरे में पड़ जायेगा। आपने देखा होगा कि पिछले कुछ महीनों में आपके घर का बजट जरूर बढ़ा होगा। अब आप रोजमर्रा की जरूरतों पर ज्यादा पैसा खर्च करेंगे। इस स्थिति को मुद्रास्फीति कहा जाता है, जब आपके खर्च बढ़ गये हैं लेकिन आय में ज्यादा बदलाव नहीं आया है।
फरवरी से अप्रैल के बीच सब्जियों के दाम 23 फीसदी से ज्यादा बढ़े। जनवरी के बाद आटे की कीमतों में भी भारी उछाल आया है।
दुनिया भर में महंगाई ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गयी है। इस समय सबसे ज्यादा महंगाई 24 साल के उच्चतम स्तर पर तुर्की (Turkey) में है। अमेरिका में ये 41 साल में सबसे ज्यादा है। ब्रिटेन में ये 40 साल की ऊंचाई पर, जर्मनी में मंहगाई बीते 50 सालों के रिकॉर्ड स्तर पर है।
जब पूरी दुनिया में इस तरह से महंगाई बढ़ती है तो कारोबार करना महंगा हो जाता है और इसका सीधा असर दुनिया की विभिन्न मुद्राओं पर पड़ता है। दुनिया के हर बड़े देश की करेंसी गिर रही है।
दूसरी ओर अगर बैंक ब्याज दरों में कटौती करते हैं तो लोगों के पास ज्यादा पैसा बचेगा और ऐसे में वे ज्यादा सामान खरीदेंगे। मांग बढ़ेगी जबकि आपूर्ति पहले की तरह ही रहेगी, जिससे मांग और आपूर्ति के बीच बड़े अंतर के साथ मुद्रास्फीति में और इज़ाफा होगा।
ईएमआई बढ़ने पर लोगों के पास शेयर (Share) बाजार में निवेश करने के लिये कम पैसे बचते हैं। जब लोग शेयर बाजार में कम निवेश करते हैं तो इससे उन निवेशकों (Investors) का विश्वास भी कम हो जाता है, जो बाद में अपना पैसा निकालना शुरू कर देते हैं। जब निवेश कम होने लगता है तो बाजार चरमरा जाता है, जो इस समय पूरी दुनिया में हो रहा है। ये इस बात का संकेत है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था (Global Economy) लगातार संकट की ओर बढ़ रही है।
जब किसी देश के शेयर बाजार में 20 फीसदी की गिरावट आती है तो वो बेयर टेरिटरी में चला जाता है। इसका मतलब है कि निवेशक डरे हुए हैं और घबराहट में पीछे हटने लगते हैं। शेयर बाजार के बेयर जोन में जाने का मतलब है कि आर्थिक मंदी आने वाली है। पिछले 77 सालों में सिर्फ 14 बार अमेरिकी शेयर बाजार (American Stock Market) ने बेयर जोन में प्रवेश किया है।
साल 2022 पूरी दुनिया के लिये रिकवरी का साल था, लेकिन अब ये मंदी का साल बनता जा रहा है। इसके पीछे दो बड़े कारण हैं – यूक्रेन और रूस (Ukraine and Russia) के बीच शुरू हुआ युद्ध, जिसने अनाज, कच्चे तेल और अन्य चीजों के आयात को बुरी तरह प्रभावित किया है और चीन अभी भी जीरो कोविड नीति (Zero Covid Policy) पर कायम है, जिसने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला (Global Supply Chain) को बाधित किया है। विश्लेषकों को डर है कि मंदी आ रही है।
जब मंदी आती है तो आर्थिक विकास रूक जाता है। लोग अपने निवेश से पैसा निकालने लगते हैं। वेतन बढ़ना बंद हो जाता है। नई नौकरियां और नये व्यवसाय मरने लगते हैं। बैंक लोन महंगा हो जाता है। घाटे की वजह से छोटी कंपनियां बंद होने को मजबूर होने लगती हैं और बेरोजगारी (Unemployment) बढ़ने लगती है। मंदी सिर्फ एक देश को प्रभावित नहीं करती है, बल्कि सभी देशों को प्रभावित करती है। साल 2008 की आर्थिक मंदी की वज़ह से दुनिया भर में 1.5 करोड़ लोगों ने अपनी नौकरी खो दी। फिलहाल इन हालातों को लेकर दुनिया भर के अर्थशास्त्री और निवेश विशेषज्ञों (Economists And Investment Experts) के बीच चिंता का माहौल देखा जा रहा है।