हालातों से हारो या उन्हें हाराओ

आज हम मानव विकास के उस चरण में पहुँच गये है, जहाँ इंसान लगातार तनाव और दबाव से लगातार जूझ रहा है। हालातों के सामने घुटने टेक आत्मसमर्पण कर रहा है। किसी तरह के परिस्थतियां हमेशा दो पक्ष लेकर पैदा होती है। हममें से ज़्यादातर लोग उसका एक ही पक्ष को देख पाते है। दूसरी ओर बहुत कम संख्या में वो लोग होते है, जो हालातों के दूसरे छिपे पहलूओं पर गौर करते हुए उसे अपने लिए अवसर में बदल लेते है।

बदकिस्मती से दुनिया में उन लोगों की तादाद बहुत ज़्यादा है, जो अक्सर हालातों के सामने हथियार डाल देते है। और यहीं वज़ह नशाखोरी और आत्महत्या जैसी वारदातों का ग्राफ लगातार ऊपर की ओर बढ़ रहा है। तो कुल जमा ये है कि विपरीत परिस्थितियों में खुद हार कर बैठ जाओं या फिर हालातों से ठेंगा दिखाते हुए उसे धूल चटाओ। यानि कि सारा खेल आपकी सोच का है। आप किस तरह से समस्यायों से दो-चार होते है।

बातें आप लोगों को ज़्यादा दार्शनिक लग रही होगी, चलिये दो छोटी-छोटी कहानियों से इसे समझ जाये। विनय ने अपनी ज़िन्दगी भर की जमापूंजी इकट्ठा करके प्लॉट खरीदा और अच्छा खासा मकान बनवाया। गृह प्रवेश करने के कुछ दिनों बाद उसे और उसके परिवार को पता चलता है कि, उनके नये नवेले घर से जहरीले सांप निकल रहे है। ये देख विनय काफी परेशान हो गया। वो खुद को ठगा सा महसूस करने लगा। पूरे जीवन की जमापूंजी गलत जगह निवेश करके उसे काफी तनाव महसूस हो रहा था।

आखिरकर विनय को आश्विनी नाम का एक शख़्स मिलता है। घर से जहरीले सांप निकलने की बात छिपाते हुए विनय, आश्विनी को अपना मकान औने-पौने दामों पर बेच देता है। इस सौदे में हुए घाटे की कुढ़न से विनय अक्सर बीमार रहने लगा। दूसरी तरफ जब आश्विनी उस घर में आता है तो सांपों का निकलना लगातार जारी रहता है। ये देखकर आश्विनी परेशान नहीं होता है, बल्कि उसे खुशी होती है कि उसने विनय से ये मकान खरीद कर मुनाफे का सौदा किया है। आश्विनी सांपों से ज़हर निकालकर एक दवा कंपनी को बेचने लगता है। आप लोग खुद सोचिये क्या विनय की तरह आश्विनी को भी हालात के सामने झुक जाना चाहिए था ? आश्विनी की सोच ने ना सिर्फ विपरीत हालातों को हराया बल्कि तरक्की के लिए एक नयी राह भी खोली।

जगदीशपुर के श्याम करण जमींदार से निनकू ने कुछ पैसे उधार लिये होते है। निनकू दिन भर मजदूरी करके शाम को थोड़ा बहुत राशन इंतज़ाम कर पाता। किसी तरह रूखा-सूखा खाकर दोनों ज़िन्दगी काट रहे थे। कभी-कभी तो चूल्हा ठंडा ही पड़ा रहता था। तारा बेहद सुंदर और गुणवान थी। जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ती जा रही थी, निनकू का कलेजा ये सोच-सोचकर सूखता जा रहा था कि, तारा की शादी कैसे हो। आये दिन ऐसे हालात बन गये कि श्याम करण जमींदार के शोहदे रोज़ाना निनकू के घर आकर पैसों के लिए तगादा करने लगे।

श्याम करण जमींदार निनकू के सामने प्रस्ताव रखता है कि अगर तारा की शादी उससे हो जाये तो, वो सारा कर्ज माफ कर देगा। लेकिन तारा के यौवन के सामने श्याम करण जमींदार की झुर्रियों का कोई मेल नहीं था। निनकू ने जमींदार की ये मांग नकार दी। बात बढ़ते-बढ़ते पंच परमेश्वर के द्वार तक पहुँचती है। पंच दोनों की बात पर गौर करते है। श्याम करण का फंसा हुआ पैसा और निनकू की मुस्फलिस्सी के बीच फैसला लटका जाता है। दोनों ही अपनी-अपनी जगह पर ठीक होते है। ऐसे में फैसला कैसे हो। इस पर कुछ समझदार लोग मिलकर एक तरीका निकालते है। फैसला लिया जाता है कि एक थैले में दो पत्थर डाले जायेगें। एक काला और दूसरा सफेद तारा बिना देखे थैले से पत्थर निकालने होगें। अगर काला पत्थर निकलेगा तो तारा को जमींदार से शादी करनी होगी, साथ ही निनकू का कर्जा माफ हो जायेगा।

अगर सफेद पत्थर निकलता है तो तारा को श्याम करण जमींदार से शादी नहीं करनी होगी और कर्ज भी माफ कर दिया जायेगा। अगर तारा पत्थर निकालने से मना करती है तो उसके पिता को जेल भेज दिया जायेगा। इस बात पर सभी लोग राजी हो जाते है। निनकू और तारा को भी मजबूरन रज़ामंद होना पड़ता है। इसी बीच ज़मीदार बड़ी चालाकी से लोगों से नज़रे बचाता हुआ थैले में दो काले पत्थर डाल देता है। श्याम करण जमींदार की ये हरकत तारा देख लेती है। अब आप लोग सोचिये वो क्या कर सकती है। वो पत्थर उठाने से मना कर सकती है। वो लोगों को ज़मीदार में सच्चाई बता सकती है। या फिर वो चुपचाप काला पत्थर उठा ले। नहीं वो इनमें से कुछ नहीं करती है। उसके दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा होता है। वो फुर्ती से साथ थैले में हाथ डालती है। और तुरन्त काला पत्थर निकालकर फिसलने का नाटक करती है। पत्थर को छटका देती है। ये सब इतना जल्दी होता है कि लोगों को पता ही नहीं चलता कि, आखिर उसने पत्थर कौन से निकाला था।

ऐसे में हंस कर कहती है कि “मैं भी कितनी फूहड़ हूँ, एक पत्थर तक ढंग से नहीं उठा पायी। पंच परमेश्वर से विनती है कि थैला खुलवा देखा जाये कि उसमें कौन सा पत्थर है। जिस रंग का पत्थर होगा, उससे दूसरे रंग का पत्थर मैनें उठाया होगा” थैला खुलवाकर देख जाता है। उसमें काला पत्थर निकलता है। इस तरह अपनी सूझबूझ उसने अपने पिता का कर्ज माफ़ करवा दिया और बूढ़े ज़मीदार से शादी करने से बच गयी।

ठीक इसी तरह के हालात हमारे जीवन में आते है। ये हम पर है उन विपरीत हालातों से हम हारते है या उन्हें हाराते है।

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