न्यूज़ डेस्क (यथार्थ गोस्वामी): कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन समस्त उत्तर भारत में अन्न कूट/गोवर्धन पूजा (Goverdhan Puja) की जाती है। ये दिन प्रकृति और गौ-पूजन को समर्पित है। वैदिक परम्परा में वरुण, इंद्र, अग्नि, यम, और नवग्रह आदि के पूजन का स्थापित विधान है। मानवीय जीवन में प्रकृति, पर्वत, नदी और गौ के महत्त्तव को भगवान श्री कृष्ण ने इस त्यौहार के माध्यम से रेखांकित किया। गोवर्धन पूजन एक तरह से प्रकृति, पर्वत, नदी और गौ को सम्मान और धन्यवाद देने का तरीका है।
साथ ही इस दिन भगवान श्री कृष्ण के गिरिराज स्वरूप का पूजन किया जाता है। वैसे तो इस त्यौहार का सम्पूर्ण उत्तर भारत में मनाया जाता है, लेकिन ब्रजमंडल (मथुरा, वृंदावन, नंदगाँव, गोकुल, और बरसाना) में इस विशेष रूप से मनाया जाता है। जिसके लिए गिरिराज गोवर्धन (Giriraj Govardhan) को भोग लगाने के लिए 56 भोग का प्रसाद तैयार किया जाता है। इस अवसर पर मंदिरों में अन्न कूट के भंडारे का आयोजन किया जाता है। अन्न कूट का शाब्दिक अर्थ है कई प्रकार के अन्न के मिश्रण तैयार किया गया भोग। इस दिन भगवान कृष्ण को बाजरे की खिचड़ी, पूड़ी, मिष्ठान और कई मेल की सब़्जियों को भोग लगाने का विधान है। भोग लगाने के बाद इस प्रसाद को भंडारे के द्वारा लोगों में बांट दिया जाता है।
गोवर्धन पूजन की तिथि और मुहूर्त
गोवर्धन पूजन की तिथि – 15 नवंबर 2020
गोवर्धन पूजन का सायंकालीन मुहूर्त – दोपहर बाद 15:17 बजे से सायं 17:24 बजे तक
प्रतिपदा प्रारंभ – 10:36 (15 नवंबर 2020) से
प्रतिपदा समाप्त – 07:05 बजे (16 नवंबर 2020) तक
गोवर्धन पूजन की विधि और नियम
- गोवर्धन पूजा के दिन गोबर से गोवर्धन (गिरिराज महाराज) की छवि बनाकर उसे पुष्पों से सुसज़्जित करें। गोवर्धन पूजन सुबह या शाम के समय की जाती है। पूजा के समय गोवर्धन पर नैवेद्य, जल, धूप, दीप, फल, गंध आदि अर्पित करे।
- इस अवसर गाय-बैल (गौधन) और खेती-किसानी काम में आने वाले पशुओं की पूजा भी की जाती है। गाय और बैलों की पूजा के साथ उनका श्रृंगार करें और उन्हें स्नान कराकर फूलों की माला पहनाएं और दीप से उनकी आरती करें। आरती करने के बाद उन्हें मिठाई का भोग लगाएं।
- गोवर्धन जी की छवि गोबर से पुरुष रूप में बनायी जाती है। नाभि वाले स्थान पर मिट्टी का दीपक प्रजल्लवित करें। दीपक में दूध, दही, गंगाजल, शहद, और बताशे चढ़ाये।
- पूजा के उपरांत गोवर्धन जी की सात परिक्रमाएं लगाते हुए उनके जयकारे लगाये। परिक्रमा के समय हाथ में लोटे से जल गिराते हुए और जौ बोते हुए परिक्रमा पूर्ण करे।
गोवर्धन पूजन का मंत्र
गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक
विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव
गोवर्धन की कथा
द्वापर युग में ब्रज में इंद्र पूजन की तैयारियां की जा रही थी। इतने में ही वहां पर भगवान कृष्ण अपने ग्वाल मित्रों संग पहुँचकर लोगों से होने वाली पूजा के बारे में पूछते है। पूजन की भागदौड़ में लगे लोग उन्हें बताते है कि समस्त ब्रजवासी इंद्र पूजन के तैयारियों में लगे हुए है। इन्द्र की ही कृपा से वर्षा होती है। जिससे नदियां पानी से भरी रहती है और खेती किसानी का काम सुचारू रूप से चलता है। इसलिए ये पूजा उन्हें धन्यवाद देने के लिए की जाती है। ये सुनकर भगवान कृष्ण वहां मौजूद सभी लोगों से कहते है कि इंद्र प्रकृति के नियमों से बंधे हुए है। इसलिए वर्षा करना उनका काम है। वे वर्षा करके मात्र अपने दायित्वों का निर्वाह कर रहे है। ऐसे में गोवर्धन पर्वत हमारी गायों को भोजन और जल उपलब्ध करवाते है। इसलिए गोवर्धन की पूजा करें ना कि इंद्र की। भगवान कृष्ण की बातों से सभी लोग सहमत हो जाते है और गोवर्धन की पूजा करने लगते है। जैसे ही ये बात इन्द्र को अपने दूतों के माध्यम से पता लगती है तो इन्द्र कुपित हो उठता है। प्रलयकालीन मेघों को भेजकर समस्त ब्रजमंडल को पानी में डुबोने का आदेश जारी कर देता है। अनवरत होनी वाली भारी वर्षा देखकर समस्त ब्रजवासी भयभीत हो उठते है। भगवान श्री कृष्ण अपनी आनंदमयी आद्या शक्ति श्री राधारानी (Anandamayi Adya Shakti Shri Radharani) का मानस स्मरण करते हुए कनिष्का उंगली से गोवर्धन पर्वत को उठाकर धारण कर लेते है। सभी गोकुलवासी गोवर्धन पर्वत की छांव में इन्द्र प्रकोप से बच जाते है। इस तरह पूरे सात दिन और सात रातों तक इन्द्र के द्वारा भेजे प्रलयकालीन मेघ अपने पूरी शक्ति गोवर्धन पर झोंक देते है। थक हारकर इन्द्र की शक्ति क्षीण होने लगती है। तब वह भगवान श्री कृष्ण की शरणगति में आकर अपने अंहकार के लिए क्षमायाचना करता है। जिसके बाद से श्री गोवर्धन पूजा की परम्परा स्थापित हो गयी। इसी के साथ 56 भोग का विधान भी जुड़ा हुआ है। भगवान कृष्ण को मैय्या यशोदा एक दिन में 8 बार खाना खिलाती थी। सात दिनों तक चली भीषण वर्षा के बाद उन्हें सातों दिन का खाना एक बार में बनाकर तैयार कर दिया। जिसके बाद 8X7=56 भोग की परम्परा चल निकली।
गोवर्धन जी की आरती
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
॥ श्री गोवर्धन महाराज…॥
तोपे पान चढ़े, तोपे फूल चढ़े,
तोपे चढ़े दूध की धार।
॥ श्री गोवर्धन महाराज…॥
तेरे गले में कंठा साज रेहेओ,
ठोड़ी पे हीरा लाल।
॥ श्री गोवर्धन महाराज…॥
तेरे कानन कुंडल चमक रहेओ,
तेरी झांकी बनी विशाल।
॥ श्री गोवर्धन महाराज…॥
तेरी सात कोस की परिकम्मा,
चकलेश्वर है विश्राम।
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
गिरिराज धारण प्रभु तेरी शरण।