Shri Guru Tegh Bahadur’s 400th Prakash Purab: जानिये 9 वीं पातशाही श्री गुरु तेग बहादुर के सर्वोच्च बलिदान के बारे में

न्यूज डेस्क (शौर्य यादव): आज (1 मई) को 9 वीं पातशाही श्री गुरु तेग बहादुर (Shri Guru Tegh Bahadur) का 400 वां प्रकाशपर्व (जयंती) है। गुरू महाराज अपने सर्वोच्च बलिदान के साथ साथ अत्याचार और अन्याय के खिलाफ ना झुकने के लिये जाने जाते है।

कौन थे 9 वीं पातशाही श्री गुरु तेग बहादुर?

श्री गुरु तेग बहादुर छठे गुरु, श्री गुरु हरगोबिंद के सबसे छोटे पुत्र थे। गुरु हरगोबिंद की एक बेटी बीबी विरो और पाँच पुत्र थे बाबा गुरदित्ता, सूरज मल, अनी राय, अटल राय, और त्याग मल। त्याग मल का का जन्म 1 अप्रैल 1621 की शुरूआती घंटों में हुआ था। गुरू महाराज का नाम त्याग मल से तेग बहादुर (तलवार की ताकत) इसलिये रखा गया, उनमें अद्भुत रणकौशल और शौर्यपूर्ण युद्धवीरता भरी हुई थी। ये नाम स्वयं श्री गुरु हरगोबिंद ने उन्हें दिया। जब उन्होंने मुगलों के खिलाफ लड़ाई में अपनी प्रशस्त रणवीरता दिखाई थी ।

उस समय अमृतसर सिख आस्था का केंद्रबिंदु था। सिख गुरुओं की गद्दी के रूप में, अमृतसर का जुड़ाव सिख धर्म के मतांवलियों के कारण ये सिख धर्म की राजधानी के रूप में विकसित हुआ। प्रशासनिक तौर पर श्री गुरु तेग बहादुर में अमृतसर सिख राज्य की राजधानी ही था। श्री गुरु तेग बहादुर का लालन-पालन सिख संस्कृति (Sikh Culture) के अनुरूप हुआ। जहां माला और भाला नियम का पालन किया गया अर्थात् निरंकार की आराधना के लिये जप और मानवता की रक्षा के लिये अदम्य शौर्य का विकास। उन्हें तीरंदाजी और घुड़सवारी में पांरगत किया गया। गुरू महाराज ने वेदों, उपनिषदों और पुराणों का अध्ययन कर आध्यात्मिक का मर्म जाना। जिसके चलते वो लंबे समय तक एकांत और मंत्रोच्चारण करने का प्राथमिकता देते थे। गुरू महाराज का विवाह 3 फरवरी 1633 को माता गुजरी से हुआ। सांसरिक होते हुए थे, वो भौतिकता से पूरी तरह विरक्त थे।

श्री गुरु तेग बहादुर ने अपना जीवन हिन्दूओं की रक्षा के लिए बलिदान कर दिया। उनका किया सर्वोच्च बलिदान आज भी इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज है। जो कि अंनत कालों तक मानवता को पथ प्रदर्शक बना रहेगा। इसलिये इसी अनन्य बलिदान की याद में 24 नवंबर को शहीदी दिवस मनाया जाता है। साल 1675 में दिल्ली में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर उन्हें इस्लाम धर्म कबूल करने के लिये विवश किया जाता रहा, लेकिन गुरू महाराज ने माना कर दिया। गुरू जी अपने निर्णय पर मजबूती से डटे रहे। उनके चेहरे पर प्रतिस्फुटित दैवीय तेज (Erupting divine Aura) से औरंगजेब बुरी तरह तिलमिला गया। उसने गुरू महाराज को यातनायें देने का फरमान जारी कर दिया। जुल्म और सितम के सिलसिले के दौरान गुरू महाराज ने भौतिक शरीर का त्याग कर दिया और अनंत निरंकार दिव्य ज्योति में लीन हो गये।

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के नोएल किंग के मुताबिक “श्री गुरु तेग बहादुर की शहादत दुनिया में मानवाधिकारों के लिए पहली शहादत थी।” औरंगज़ेब भारत को इस्लामिक मुल्क में बदलना चाहता था, इसलिए उसने हिंदुओं को इस्लाम में परिवर्तित होने के लिए मजबूर किया। पंडित कृपा राम की अगुवाई में 500 कश्मीरी पंडितों का एक प्रतिनिधिमंडल आनंदपुर साहिब जी में गुरु तेग बहादुर की शरण में गुहार लेकर आया। इस पर गुरू महाराज के बेटे और 10 पातशाही श्री गुरु गोबिंद सिंह ने उन्हें शरणागतों की रक्षा करने की बात कही। जिस पर गुरू महाराज सहर्ष तैयार हो गये और दिल्ली की यात्रा के लिये निकल पड़े। श्री गुरू महाराज ने धर्म, मानवीय मूल्यों, आदर्शों और सिद्धांतों की रक्षा के लिये अपना जीवन बलिदान कर दिया। चांदनी चौक में गुरुद्वारा सीस गंज साहिब आज भी उनके द्वारा प्रशस्त मानवीय मूल्यों, अदम्य वीरता, भक्ति, और ज्ञान का मूर्त स्वरूप बना हुआ है। श्री गुरू महाराज का प्रकाश पूरब के अवसर पर उनकी शिक्षाओं, ज्ञान, वीरता और शौर्य को पूरा देश नमन कर रहा है। हिन्दुस्तान और हिन्दू के प्रति उनके जुड़ाव उन्हें हिन्द की चादर भी कहा जाता है।

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