न्यूज डेस्क (शौर्य यादव): वाराणसी की एक कोर्ट काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद परिसर (Vishwanath-Gyanvapi Masjid Complex) के भीतर श्रृंगार गौरी मंदिर (Shringar Gauri Mandir) में दैनिक पूजा की अनुमति मांगने वाली पांच हिंदू महिलाओं की याचिका को चुनौती देने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद (Anjuman Intejamiya Mosque) की दलीलों पर सुनवाई आज फिर से शुरू करेगी।
30 मई को जिला न्यायाधीश एके विश्वेश (District Judge AK Vishvesh) ने मामले को 4 जुलाई को आगे की सुनवाई के लिये आगे बढ़ाया था। इसके बाद मुस्लिम पक्ष (Muslim side) ने अदालत से याचिका खारिज करने की गुज़ारिश की थी, यह कहते हुए कि “व्यक्तिगत क्षमता” में दायर महिलाओं का मुकदमा सभी हिंदुओं और हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिये प्रार्थना उनके ऊपर पर लागू नहीं हो सकता। ”
इसे “गलत नियम” कहा जाता है, जिसके तहत मुकदमा दायर किया गया था, को हरी झंडी दिखाते हुए ये भी दावा किया कि याचिकाकर्ताओं ने मस्जिद में नमाज अदा करने के मुस्लिम अधिकार पर 1936 के फैसले का जिक्र नहीं किया। आज की सुनवाई का फोकस इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) के 1942 के फैसले पर होने की उम्मीद है, जो कि मस्जिद और उसके आसपास की ज़मीन के मालिकाना हक़ से जुड़ी हुई है।
मुकदमे में दोनों पक्ष अपने दावों का समर्थन करने के लिये दीन मोहम्मद (Deen Mohammed) और अन्य बनाम राज्य सचिव के फैसले पर भरोसा करते हैं। ये तीन “हनफ़ी या सुन्नी मुसलमानों” द्वारा वाराणसी जिला न्यायालय (Varanasi District Court) के 1937 के फैसले के खिलाफ एक अपील थी जिसमें अदालत से ये ऐलान करने की मांग की गयी थी कि मस्जिद के अलावा मस्जिद के आसपास का इलाका भी वक्फ की संपत्ति है, जबकि हिंदू पक्ष एक ऐतिहासिक दावे का समर्थन करने के लिये सत्तारूढ़ होने का हवाला देता है, जो ज्ञानवापी मस्जिद के स्वामित्व पर सवाल उठाता है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने दीवानी न्यायाधीश के साथ रज़ामंदी ज़ाहिर की कि मस्जिद ही वक्फ की संपत्ति है, लेकिन कहा कि मस्जिद के आसपास का इलाका जहां रमजान (Ramadan) के आखिरी शुक्रवार की नमाज के दौरान नमाजी (वफादार) बैठकर नमाज़ अता करते है, उसे वक्फ संपत्ति के तौर पर उस पर दावा नहीं किया जा सकता है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 20 मई को हिंदू भक्तों द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद पर सिविल जज (सीनियर डिवीजन) से वाराणसी के जिला जज को दायर दीवानी मुकदमे को मामले की जटिलताओं और संवेदनशीलता का हवाला देते हुए ट्रांसफर कर दिया और कहा कि ये वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी (Senior Judicial Officer) के लिए बेहतर है और वो ही इसे संभालें तो बेहतर होगा।
शीर्ष अदालत ने जिला न्यायाधीश को निर्देश दिया कि वो मस्जिद समिति (Mosque Committee) द्वारा दायर की गयी याचिका पर सीपीसी के आदेश 7 नियम 11 के तहत पहले फैसला करे, जिसमें कहा गया है कि दीवानी वाद संसद के एक कानून द्वारा वर्जित है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि 17 मई के अपने पहले के अंतरिम आदेश में उस इलाके की सुरक्षा का निर्देश दिया गया है, जहां “शिवलिंग” पाया गया है और मुसलमानों को मस्जिद परिसर में “नमाज” करने की इजाजत दी गयी, जब तक कि मामले की स्थिरता तय नहीं हो जाती है। जिला न्यायाधीश ने सुनवाई आठ हफ़्ते बाद पीड़ित पक्षों को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की मंजूरी दे दी।