इस बार दिल्ली विधानसभा चुनावों में नई दिल्ली विधानसभा सीट हॉट सीट बनती नज़र आ रही है। बीते दिन नामाकंन कराने के लिए केजरीवाल से समर्थन में जिस तरह से कार्यकर्ताओं का हुजूम सड़कों पर उतरा उससे इस सीट के नतीज़ों की एक झलक मिल जाती है। जनता दरबार में अपनी बात रखने के लिए केजरीवाल के पास बहुत से मुद्दे है। इस मामले में वो कांग्रेस और भाजपा से बढ़त बनाये हुए है। कहीं ना कहीं दोनों पार्टियां केजरीवाल के विजयरथ को रोकने की पूरी कोशिश करेगी।
इसी मुहिम के तहत आज ट्विटर पर एक खास़ हैशटेग ट्रेंड करता दिखा 1857 DOBARA। गौरतलब है कि जिस नई दिल्ली सीट से केजरीवाल विधानसभा के चुनावी मैदान में उतरने जा रहे है, वहाँ उनकी राहों में रोड़े डालने के लिए कई डम्मी प्रत्याशियों को उतारा गया है। ये उम्मीदवार केवल वोट कट्टूआ के तौर पर मैदान में उतर रहे है। जिनका काम केवल केजरीवाल के मतों के प्रतिशत को गिराना है।
1857 DOBARA में एक खास तरह का पैटर्न देखने को मिल रहा है। अगर इन ट्विट पर गौर किया जाये तो सबसे पहली बात जो निकलकर आती है, वो इन प्रत्याशियों को सीट जहाँ से ये चुनावी मैदान में उतर रहे है। ये सभी प्रत्याशी नई दिल्ली सीट से चुनावी मैदान में उतर रहे है। जिस से केजरीवाल मैदान में उतरे है। दूसरी बात ये सभी प्रत्याशी Integrated Hashtag का इस्तेमाल कर रहे है, जो है 1857 DOBARA। ऐसे सवाल उठना लाज़िमी है कि एक ही साथ, एक ही सीट पर इतने प्रत्याशियों का एकाएक सामने आना किसी चुनावी रणनीति का हिस्सा तो नहीं ?
ट्रैंड़ी न्यूज़ की फैक्ट चेकिंग टीम ने जब गहराई में उतरकर इसकी जांच-पड़ताल की तो कुछ और दिलचस्प बातें सामने आयी। 1857 DOBARA में जितने भी प्रत्याशियों के ट्विट थे, सबके ग्राफिक्स तकरीबन एक से थे। सब पर दिया गया मोबाइल नंबर भी एक ही था। ग्राफिक्स में इस्तेमाल किये गये शब्द भी एक जैसे थे। सभी प्रत्याशी भी सामान्य पृष्ठभूमि से जुड़े हुए लग रहे है। जिन हैण्ड़िल से इन्हें ट्विट और रि-ट्विट किया गया, उन नामों से पता लगता है, ये सभी फर्जी अकाउन्टस थे। एक अहम् बात और भाजपा ने इस विधानसभा सीट से केजरीवाल के सामने भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष सुनील यादव को और कांग्रेस ने रोमेश सभरवाल को उतारा है। ये दोनों ही उम्मीदवार केजरीवाल के सामने बेहद कमज़ोर है। ये बात कांग्रेस और भाजपा अच्छे से जानती है।
जिस तरह के हालत नई दिल्ली विधानसभा सीट पर बनते दिख रहे है। उससे काफी गंभीर सवाल उभर रहे है जैसे कि- क्या भाजपा और कांग्रेस ने चुनाव लड़ने से पहले ही केजरीवाल से हार मान ली ? अगर ऐसा नहीं है तो कमजोर उम्मीदवार खड़ा करने की क्या जरूरत थी ? एकाएक नई दिल्ली विधानसभा सीट से प्रत्याशियों की बाढ़ कैसे आ गयी ? जिनके बीच एक खास तरह का पैटर्न है। क्या ये सब भाजपा करवा रही है ? इन डमी कौन फाइनेंस कर रहा है ? केजरीवाल के वोट काटने से किस पार्टी को सबसे ज़्यादा फायदा मिलेगा ? इस साज़िश के पीछे किसका हाथ है ?