Yes Bank की पूरी कहानी इधर है गुरु!

तो शुरू करते है आम पैटर्न पर इंट्रो से….

नई दिल्ली: येस बैंक (Yes Bank) फिर से सुर्खियों में है. इस बैंक के शुरू हुए अभी 16-17 साल ही हुए हैं लेकिन यह लगातार सुर्खियों में रहा है…कभी अच्छे कारणों से तो कभी बुरे कारणों से.

राणा कपूर (Rana Kapoor) और अशोक कपूर (Ashok Kapoor) दोनों ने मिलकर 2003 में येस बैंक शुरू किया था. बैंक को सबसे पहली बार चर्चा मिली कि यह बचत खाता पर सबसे अधिक ब्याज देता है. इससे येस बैंक को खुदरा बैंकिंग में दबदबा बनाने में मदद मिली. बाद मे येस बैंक ने कॉरपोरेट बैंकिंग (Corporate Banking) में इसी तरह का आक्रामक अभियान शुरू किया और देखते-देखते भारत का चौथा सबसे बड़ा निजी बैंक (4th largest private bank) बन गया. इसकी एक अन्य विशेषता रही कि तकनीक और प्रौद्योगिकी को अपनाने के मामले में यह हमेशा बैंकिंग क्षेत्र का अगुआ रहा. UPI लेन-देन में येस बैंक की सबसे अधिक हिस्सेदारी रही है…करीब चालीस प्रतिशत.

बैंक 2003 में शुरू हुआ और सही तरीकों से आगे बढ़ने लगा. 2008 का मुंबई आतंकी हमला (Mumbai terrorist attack) इस बैंक के लिये भी झटका साबित हुआ. उस हमले में अशोक कपूर भी मारे गये और यहीं से गोरखधंधे की शुरुआत हो गयी. अशोक कपूर के मरने के बाद बैंक पर नियंत्रण को लेकर उनकी पत्नी और भाई राणा कपूर में खींचतान शुरू हुई. मामला उच्चतम न्यायालय तक गया और अंततः राणा कपूर को बैंक पर नियंत्रण मिल गया. राणा कपूर के नेतृत्व में येस बैंक ने हर उस उद्यमी और कंपनी को कर्ज देना शुरू कर दिया, जिन्हें अन्य बैंक खराब क्रेडिट के कारण मना कर चुके थे. राणा कपूर इस तरह के कर्जों को बैलेंस शीट से छुपाते रहे और कुछ अज्ञात कारणों से यह गोरखधंधा RBI को भी नहीं दिखा, या फिर अज्ञात कारणों से RBI ने इसे देखकर भी अनदेखा किया.

रिज़र्व बैंक की नींद खुली सितंबर 2018 में, मने दस साल की लंबी नींद के बाद. RBI ने राणा कपूर को बैंक का प्रबंधन छोड़ने को कहा और हिस्सेदारी भी बेचने को कहा. यहाँ से प्रत्यक्ष बुरे अध्याय की शुरुआत हुई. RBI के कड़े रवैये के कारण राणा कपूर को हटना पड़ा. इस बीच भेदिया कारोबार को लेकर सेबी (SEBI) ने भी येस बैंक पर डंडा चला दिया. रेटिंग एजेंसियां (rating agencies) येस बैंक की रेटिंग घटाने लग गयी. एक अन्य मामले को लेकर RBI ने येस बैंक पर एक करोड़ रुपये का जुर्माना लगा दिया.

RBI ने येस बैंक की तमाम गड़बड़ियों और इनमें शीर्ष प्रबंधन की भूमिका को देखते हुए बोर्ड में तब्दीली लाने को कहा. नया प्रबंधन सामने आया. नये प्रबंधन को एक समयसीमा के दायरे में नये निवेशक खोजने या अन्य साधनों से पूँजी जुटाने का काम दिया गया. नया प्रबंधन कभी कहता रहा कि हांगकांग (Hongkong) के फलाना निवेशक (investor) से बात चल रही है, कभी कहने लगा कि कनाडा (Canada) का फलाना निवेशक पैसे लगाने को तैयार हो गया है. हालाँकि ऐसा कुछ भी नहीं हो पाने और समयसीमा बीत जाने के बाद RBI और केंद्र सरकार ने बैंक को अपने हाथों में ले लिया. इसके बाद ही बैंक के खाते से निकासी की अधिकतम सीमा तय की गयी. आज ही RBI गवर्नर ने कहा भी है कि अधिकतम 30 दिन में स्थायी समाधान निकाल लिया जायेगा.

इतनी पूरी कहानी पढ़कर आप भी सोचेंगे कि आगे क्या होगा, यह नहीं बताकर मैं ‘अभी तक क्या हुआ’ क्यों बताने लग गया हूँ? यह प्रासंगिक है इसीलिए बता रहा हूँ. फेसबुक (Facebook) और व्हाट्सएप्प (WhatsApp) से पीएचडी (PHD) के युग में स्वाभाविक है कि हर विषयों के विशेषज्ञ कुकुरमुत्ते की तरह उग आये हैं. अब इतना बड़ा बैंक भरभरा गया है, इसे लेकर विशेषज्ञों की फ़ौज भी इतने ही बड़े स्तर पर पैदा हुए हैं. कुछ विशेषज्ञ क्रोनोलॉजी (Chronology) समझा रहे हैं, कि नोटबंदी करके जनता का पैसा बैंकों में जमा कर लिया, फिर उद्योगपति मित्रों को वह पैसा बाँट दिया, और अब बैंक कंगाल हो गया है, अब सबका पैसा डूब जाएगा. नोटबंदी (Demonetization) हुई नवंबर 2016 में, येस बैंक में गोरखधंधा शुरू हुआ 2008 में. अब यह पहली कक्षा के बालकों के लायक सवाल है कि पहले 2016 आया कि 2008? यदि आपको इसका जवाब पता है तो आपको बधाई, क्योंकि आप फेसबुक और व्हाट्सएप्प से पीएचडी हुए तमाम विशेषज्ञों से अधिक समझदार…अधिक पढ़े-लिखे हैं.

अब इस कहानी में एक और कहानी बता देता हूँ. एक बैंक हुआ करता था, ग्लोबल ट्रस्ट बैंक (Global Trust Bank). हालाँकि यह उस युग की बात है जब फेसबुक नहीं था, व्हाट्सएप्प नहीं था, जिओ वाला सस्ता डेटा नहीं था. ये सब नहीं थे, इसी कारण सस्ते विशेषज्ञ भी तब कम थे. तो ग्लोबल ट्रस्ट बैंक भी अपने समय का येस बैंक था, दक्षिण भारत में तो यह SBI पर भी भारी था. केतन पारेख से शेयर घोटाले में संलिप्त होने के कारण इसके बुरे दिन शुरू हुए थे. जैसे अभी RBI ने येस बैंक को अपने हाथों में लिया है, इसी तरह ग्लोबल ट्रस्ट बैंक को भी लिया गया था. ग्लोबल ट्रस्ट बैंक का बाद में ओरिएण्टल बैंक ऑफ कॉमर्स में विलय हो गया (Oriental Bank of Commerce). ग्लोबल ट्रस्ट बैंक के खाताधारक अभी भी हैं, उनके पैसे भी हैं, बस अब वे ओरिएण्टल बैंक के खाताधारक हैं.

येस बैंक के खाताधारकों को परेशानियाँ हो रही हैं, मैं खुद येस बैंक का उपभोक्ता हूँ. आज ही मुझे पैसे निकालने थे, घर का किराया देना था, किसी भी एटीएम से नहीं निकला. ऑनलाइन भी कुछ नहीं हो पा रहा है. जानकारियां जुटाये तो मालूम हुआ कि यह आज भर की दिक्कत है, कल से चीजें सामान्य होने लगेंगी. चूँकि अभी ही छुट्टियाँ मनाकर शहर लौटा हूँ तो निश्चित ही बटुए में नकदी बिलकुल नहीं है, लेकिन फिर भी काम चल गया. यह भी जानता हूँ कि हर किसी के साथ परिस्थितियां मेरी तरह नहीं होंगी, कइयों के सामने भीषण जटिल हालात भी होंगे, और उनका काम किसी भी तरीके से नहीं चला होगा. हालाँकि अभी यह व्यवधान नहीं डाला जाता तो जोखिम बढ़ता ही, हालात बिगड़ते ही. हाँ, सब सामान्य बना रह सकता था यदि RBI अभी भी 2008 से लेकर 2018 वाली नींद में रहता, यदि अभी भी रायसीना हिल्स के निर्देश पर RBI सब देखकर आँखें मूंदे रहता.

मैंने तय किया था कि होली तक कुछ भी लिखना नहीं है, सिर्फ बिटिया के साथ समय व्यतीत करना है. अभी आज लिखना पड़ा है कि कुछ मित्र जो मेरी तरह येस बैंक के खाताधारक हैं, लगातार पूछे जा रहे थे. कुछ योगदान सस्ते पीएचडी वाले विद्वानों का भी है. आप लोग बस इतना करिये कि इस तरीके से पीएचडी हुए विद्वान कहीं भी क्रोनोलॉजी समझाते दिखें, उनसे बस पहली कक्षा के गणित वाला सवाल पूछ लीजियेगा. अधिक मन हो तो उन दस सालों में RBI के गवर्नर रहे लोगों और रायसीना हिल्स में बैठे रहे लोगों का भी हिसाब मांग लीजियेगा. येस बैंक में कितने ‘आम आदमी’ खाता हैं, यह भी पूछियेगा?

#साभार: सुभाष सिंह सुमन

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