History: जानिये वीर अहीरों के शौर्य और पराक्रम का इतिहास

न्यूज डेस्क: भारत के लिखित इतिहास (Written history of india) में ब्रिटिशर्स के समय से ही भारत में मार्शल नस्लों की वीरता, पराक्रम और शौर्य को देखते हुए नेटिव इन्फैट्रियों का गठन किया गया। जिसमें रजवाड़ों और रियासतों के सेनापतियों की विशेष भूमिका रही। इसी क्रम में अंग्रेजों ने जातीयगत विशेषताओं, शारीरिक सौष्ठव और आक्रामकता को देखते हुए कई रेजीमेटों का गठन किया। जहां इन इन्फैट्री यूनिटों प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अपने पराक्रम के जौहर दिखाये। इन्हीं में शामिल थे वीर अहीर। जिन्होनें कई अन्तर्राष्ट्रीय मोर्चों पर अपनी वीरता के झंड़े गाड़े। कुछ राजनीतिक कारणों से वीर अहीरों का इतिहास दरकिनार कर दिया गया। गौरतलब है कि बीती 10 शताब्दियों के दौरान अहीरों ने कई रणभूमियों को अपने रक्त से स्नान करवाकर बलिदान की परम पुनीत प्रतिष्ठा कायम की। आज उसी इतिहास को सिलसिलेवार ढंग इस आर्टिकल के माध्यम से पेश किया जा रहा है।

  • साल 1030- सैय्यद इब्राहिम बारा हजरी ने धुंधगढ़ के राजा तेजपाल पर हमला किया। उन्होंने तिजारा में अपने भाई राव तेजपाल अहीर के यहां शरण ली, जिन्होंने रात में सैय्यद इब्राहिम बारा हज़ारी (Syed Ibrahim Bara Hazari) से युद्ध किया। सालार मसूद भाग गया। बारा हज़ारी और सालार मसूद के तीन भाई मारे गए।
  • साल 1192- तराइन की लड़ाई, राव राजा चंद्रभानु सिंह और उनकी सेना ने मौहम्मद गौरी के खिलाफ पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया।
  • साल 1398- तैमूर लंग राव का आक्रामण, दुर्जनशाल अहीर तैमूर-ए-लंग से लड़ने के लिए गठित की गई सर्व-खाप सेना के छः सेनापतियों में से एक थे। मेरठ गेट के पास उन्हें वीरगति को प्राप्त हुई।
  • साल 1526- पानीपत की पहली लड़ाई, राव रूड़ा सिंह ने विद्रोह किया और पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोधी के खिलाफ रणभूमि में उतरे।
  • साल 1555- राव रणमल सिंह नूनीवाल (मान सिंह के नेतृत्व में), अपने 10000 लोगों के साथ काबुल में अफ़गानों के ख़िलाफ़ लड़े और काबुल का मोर्चा फतह किया।
  • साल 1679- खंडेला का युद्ध, मुगल फौज अपने तोपखाने के साथ खंडेला पर चढ़ाई की। स्थानीय अहीरों और गूजरों ने मुगल पंक्तियों को तोड़ दिया और हजारों गायों की भी रक्षा की।
  • साल 1714- राव मियाराम सिंह ने अपने पिता राव शाहबाज़ सिंह की हत्या का बदला लिया। उसने आगरा में मुगल दरबार में हाथी सिंह की हत्या करके ऐसा किया। मुगल दरबार में किसी को भी हथियार ले जाने की अनुमति नहीं थी। उन्होंने आगरा के भरे दरबार में द्वारपालों के हथियार छीनकर हाथी सिंह को ललकारा और मार डाला।

  • साल 1739- राव बालकिशन सिंह ने करनाल के युद्ध में नादिर शाह के खिलाफ 5000 शूरवीर यादवों की अगुवाई की। अन्य सभी सहबद्ध सेनाएँ भाग गईं लेकिन बालकिशन और उनके लोग आखिर तक डटे रहे। नादिर शाह उनकी बहादुरी से इतना प्रभावित हुआ कि, खुद उनके सम्मान में करनाल में नहर किनारे छत्र बनवाया।
  • साल 1743- राव गुजरमल सिंह ने नवाब फर्रुखजंग को हंसी के पास युद्ध में हराया।
  • साल 1750- राजा टोडरमल ने बड़गूजर की सहायता से एक भोज के दौरान रेवाड़ी के राजा को विश्वासघात से मार डाला बाद में रेवाड़ी के सरदारों ने टोडरमल को हराया और गधों से नीमराणा का महल जुतवा दिया। साथ ही सूरजमल की सहायता से बड़गूजर को घासेड़ा के किले में घेर लिया। ये मोर्चा तीन महीने तक जमा रहा आखिर में बड़गूजर सरदार मारा गया।
  • साल 1781- रेवाड़ी के सेनापति राव मित्रसैन सिंह सांतोरिया ने अपने 6000 सैनिकों को जयपुर और शेखावाटी की संयुक्त सेना के खिलाफ जीत दिलाई। उस दौरान दुश्मनों का संख्या बल 20000 – 25000 था।
  • साल 1780- राव मित्रसेन ने गौ हत्या के आरोप में दिल्ली के ढोर कसाइयां मुस्लिम गांव में नरसंहार किया। नतीज़न उन्हें एक मुगल टुकड़ी का सामना करना पड़ा, जिसे उन्होंने परास्त किया।
  • साल 1785- राव मित्रसेन ने दो मराठा हमलों को परास्त किया।
  • साल 1840- राव गोपाल देव ने झज्जर के नवाब अब्दुर्रहमान को परास्त किया।साल
  • साल 1857- मेरठ विद्रोह व नसीबपुर युद्ध, राव रामलाल सिंह और राव गोपाल किशन सिंह ने 1857 के मेरठ विद्रोह का नेतृत्व किया और 600 कैदियों को मुक्त कर दिया। साथ ही लाल किले पर कब्जा करके दिल्ली पर जीत हासिल की। राव राजा तुला सिंह ने अपने राज्य को युद्ध के लिए संगठित किया। लगभग 5000 सैनिकों के साथ नसीबपुर का युद्ध लड़ा। बाद में तात्या टोपे के साथ मिलकर संघर्ष किया। भारत की पश्चिमी सीमाओं से अंग्रेजों पर हमला करने के मकसद से भारतीय सैनिकों (जो 1857 के बाद भारत छोड़कर भाग गए) को इकट्ठा करने के लिए अफ़ग़ानिस्तान, ईराक, ईरान गये उन्होंने रूस के ज़ार के साथ भी संपर्क स्थापित किया और अंग्रेजों के खिलाफ मदद मांगी।
  • साल 1914-18 प्रथम विश्व युद्ध, अहीरवाल से 16000 अहीरों ने WW1 में भाग लिया।
  • साल 1939-45 WW2, अहीरवाल से 38000 अहीरों ने दूसरे विश्व युद्ध ने हिस्सा लिया। राव उमराव सिंह को विक्टोरिया क्रॉस से नवाजा गया।
  • साल 1942-1947 अहीर टुकड़ियों ने सिंगापुर में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया और अहीरवाल के हजारों लोग आजाद हिंद फौज में शामिल हुए। साथ ही काफी अहीरों ने भर्तियां करवाने का काम संभाला। कुछ साल पहले गणतंत्र दिवस परेड में शामिल कर इन्हें सम्मानित किया गया।
  • साल 1947- मेजर सोमनाथ शर्मा की अगुवाई में अहीर कंपनी ने बड़गाम का मोर्चा जीता।
  • साल 1962-120 अहीरों ने 3000 चीनी सैनिकों के विरुद्ध अल्प संसाधनों से युद्ध लड़ा और 1300 चीनी सैनिकों को मार डाला। इसके साथ ही रेजांगला में अहीर धाम की नींव पड़ी। 13 कुमाऊं रेजीमेंट की अहीर चार्ली कंपनी (Ahir Charlie Company) पर आज भी फिल्में और वेबसीरीज़ बन रही है।
  • साल 1965- अहिरवाल के अहीरों ने हाजीपीर की लड़ाई जीती। भारतीय सेना ने उनके सम्मान में एक पहाड़ी का नाम यादव हिल रखा।
  • साल 1967- कर्नल राय सिंह यादव ‘Tiger of Nathu La’ ने चीन को हराया और सिक्किम को चीन से सुरक्षित रखा।

  • साल 1971- कमोडोर राव बाबरू भान यादव ने ऑप्रेशन ट्राइडेंट का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया जिसमें उन्होंने पूरे कराची बंदरगाह को तबाह कर दिया। इस जीत की याद में नौसेना दिवस मनाया जाता है।
  • साल 1999– परमवीर योगेंद्र सिंह यादव ने कारगिल युद्ध में अहीर रण कौशल दिखाया। जिसके कारण अंततः भारत को विजय मिली। 19 साल की आयु में 19 गोलियां, कई फ्रैक्चर और कट के बावजूद वो रणभूमि में टिके रहे। 
  • साल 2016- कर्नल कपिल यादव कमांडिंग ऑफिसर 9 पैरा कमांड़ों रेजीमेंट को सर्जिकल स्ट्राइक के लिए युद्ध सेवा मैडल प्राप्त किया।

साभार – यादव योद्धा द ग्रेट यादव वॉरियर्स

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