Holashtak: लग चुका है होलाष्टक, तुरन्त बचे इन कामों को करने से

होलाष्टक (Holashtak) का मतलब है, होला + अष्टक अर्थात् होली से पहले के आठ दिन जो होते है वो होलाष्टक कहलाते है। सामान्य रुप से देखा जाये तो होली एक दिन का त्यौहार न होकर पूरे नौ दिनों का त्यौहार है। होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य करने की मनाही होती है। ये फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी को लगता है, होलाष्टक फिर आठ दिनों तक रहता है और सभी शुभ मांगलिक कार्य रोक दिये जाते है, ये दुलहंडी (Dulhandi) पर रंग खेलकर खत्म होता है।

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी (Falgun Shukla Ashtami) पर 2 डंडे स्थापित किये जाते हैं। जिनमें एक को होलिका तथा दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है। इससे पूर्व इस स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है, फिर हर दिन इसमे गोबर के उपले, लकड़ी, घास और जलने में सहायक चीजे डालकर इसे बड़ा किया जाता है।

होलाष्टक से जुड़ी पहली कथा

पौराणिक कथाओ और शास्त्रों में बताया गया है कि होलाष्टक के दिन ही कामदेव ने शिव तपस्या को भंग किया था। इस कारण शिव जी अत्यंत क्रोधित हो गये थे, उन्होंने अपने तीसरे नेत्र की अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था। हालांकि कामदेव ने देवताओं की इच्छा और उनके अच्छे के लिये शिव को तपस्या से उठाया था।

कामदेव के भस्म होने से समस्त संसार शोक में डूब गया। उनकी पत्नी रति ने शिव से विनती की वो उन्हें फिर से पुनर्जीवित कर दे। तब भगवान भोलेनाथ (Lord Bholenath) से द्वापर में उन्हें फिर से जीवन देने की बात कही।

होलाष्टक से जुड़ी दूसरी कथा

दूसरी कथा के अनुसार राजा हरिण्यकशिपु (King Harinyakashipu) ने अपने पुत्र भक्त प्रह्लाद (Bhakta Prahlad) को भगवद् भक्ति से हटाने और हरिण्यकशिपु को ही भगवान की तरह पूजने के लिये अनेक यातनायें दी लेकिन जब किसी भी तरकीब से बात नहीं बनी तो होली से ठीक आठ दिन पहले उसने प्रह्लाद को मारने के प्रयास आरंभ कर दिये।

लगातार आठ दिनों तक जब भगवान अपने भक्त की रक्षा करते रहे तो होलिका के अंत से ये सिलसिला थमा।

इसलिये आज भी भक्त इन आठ दिनों को अशुभ मानते हैं। उनका मानना है कि इन दिनों में शुभ कार्य करने से उनमें विघ्न बाधायें आने की संभावनाएं ज़्यादा रहती हैं। ज्योतिष शास्त्र (Astrology) के अनुसार होलाष्टक मे सभी शुभ कार्य करना वर्जित रहते हैं, क्योंकि इन आठ दिनों 8 ग्रह उग्र रहते है।

इन आठ दिवसों मे अष्टमी को चन्द्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल, और पूर्णिमा को राहू उग्र रहते हैं। इसलिये इस अवधि में शुभ कार्य करने वर्जित है।

होलाष्टक में न करें ये काम

1. विवाह: होली से पूर्व के 8 दिनों में भूलकर भी विवाह न करें। ये समय शुभ नहीं माना जाता है, जब तक कि कोई विशेष योग आदि न हो।

2. नामकरण एवं मुंडन संस्कार: होलाष्टक के समय में अपने बच्चे का नामकरण या मुंडन संस्कार कराने से बचें।

3. भवन निर्माण: होलाष्टक के समय में किसी भी भवन का निर्माण कार्य प्रारंभ न कराये। होली के बाद नये भवन के निर्माण का शुभारंभ करायें।

4. हवन-यज्ञ: होलाष्टक में कोई यज्ञ या हवन अनुष्ठान करने की सोच रहे हैं, तो उसे होली बाद कराये। इस समय काल में कराने से आपको उसका पूर्ण फल प्राप्त नहीं होगा।

5. नौकरी: होलाष्टक के समय में नई नौकरी ज्वॉइन करने से बचें। अगर होली के बाद का समय मिल जाये तो अच्छा होगा। अन्यथा किसी ज्योतिषाचार्य (Astrologer) से मुहूर्त दिखा लें।

6. भवन, वाहन आदि की खरीदारी: संभवत हो तो होलाष्टक के समय में भवन, वाहन आदि की खरीदारी से बचें। शगुन के तौर पर भी रुपए आदि न दें।

होलाष्टक में पूजा-अर्चना की के लिये किसी भी प्रकार की मनाही नहीं होती। होलाष्टक के समय में अपशकुन के कारण मांगलिक कार्यों पर रोक होती है। हालांकि होलाष्टक में भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है। इस समय में आप अपने ईष्ट देव की पूजा-अर्चना, भजन, आरती आदि करें, इससे आपको शुभ फल की प्राप्ति होगी।

परंतु सकाम (किसी कामना से किये जाने वाले यज्ञादि कर्म) किसी भी प्रकार का हवन, यज्ञ कर्म भी इन दिनों में नहीं किये जाते। सनातन हिंदू धर्म में 16 प्रकार के संस्कार बताये जाते हैं इनमें से किसी भी संस्कार को संपन्न नहीं करना चाहिये। हालांकि दुर्भाग्यवश इन दिनों किसी की मौत होती है तो उसकी अंत्येष्टि संस्कार के लिये भी शांति पूजन करवाया जा सकता है।

कब है होलाष्टक?

होलाष्टक 10 मार्च को लगेगा और 17 मार्च 2022 तक रहेगा। इन आठ दिनों में कोई भी मांगलिक कार्य, गृह प्रवेश करना वर्जित होगा। जातक को नये रोजगार और नया व्यवसाय भी नहीं शुरू करना चाहिये।

Leave a comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More