न्यूज डेस्क (यथार्थ गोस्वामी): फागुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हर वर्ष होली का दहन और पूजन (Holika Pujan/Dahan) का विशेष महत्व होता है। जातक स्नान, ध्यान और उपवास कर भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त करने करते हैं। होली से जुड़े पौराणिक आख्यान सभी जानते हैं। होलिका शब्द हुताशनी और हेमाद्रि से बना है। ये त्यौहार भक्त प्रहलाद और भगवान नरसिंह के अनन्य प्रेम से जुड़ा हुआ है। होलिका दहन के कई सांकेतिक अर्थ है। जो कि इस परंपरा और प्रथा के साथ जुड़े हुए हैं। कहीं ना कहीं ये बताता है कि हमें अपनी बुराइयां, तृष्णा, मोह, अहंकार, और लोभ सभी को इसी तरह जलाकर राख करने देना चाहिए और प्रभु के बताये प्रेम, दया, समपर्ण, ज्ञान और भक्ति के मार्ग पर चलना चाहिए। इस साल होली के अवसर पर ध्रुव योग भी बन रहा है। ये ज्योतिषीय घटना 499 साल बाद बनी है। खास बात ये भी है कि इस साल होली के अवसर पर प्रभु चैतन्य की जयंती भी पड़ रही है। चैतन्य महाप्रभु को गौरांग नाम से भी जाना जाता है। जोकि कृष्ण महामंत्र के आदि प्रवर्तक है।
होलिका दहन का पावन मुहूर्त
दिनांक- 28 मार्च
पूर्णिमा तिथि का आरम्भ- 28 मार्च ब्रह्ममुहूर्त 3 बजकर 27 मिनट से
पूर्णिमा तिथि की समाप्ति- 29 मार्च अर्धरात्रि 12 बजकर 17 मिनट पर
दहन का मंगल मुहूर्त– गोधूलि बेला 6 बजकर 37 मिनट से रात्रि 8 बजकर 56 मिनट तक
रंगवाली होली खेलने (धुलेंडी) की तिथि- 29 मार्च