निस्संदेह भारतीय लोकतन्त्र का ज़्यादातर हिस्सा टूटकर बिखर गया है। संविधान के साथ लोकतन्त्र की मूल आधारिक संरचना कहीं गुम सी हो गयी है और लोकतन्त्र के चारों स्तम्भों से सिर्फ दरारें ही दरारें दिखाई दे रही है। ये चार स्तम्भ है विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता/ प्रेस मीडिया।
शायद इसी वज़ह से भारत की विविधता पूर्ण संरचना पर एक बड़ा सवालिया निशाना लग गया है। नतीज़न असमानताओं में सीधे और बड़े अनुपात में बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है। गौर करने पर हम पाते है कि, ये बेहद भयावह तस्वीर है। 2019 के लोकतान्त्रिक सूचकांक में 165 देशों की सूची में भारत के खाते में 10 पायदान की गिरावट देखी गयी है। अब हमारी रैकिंग 51 वें पायदान पर है। ये मसला देश की आव़ाम और आने वाली नस्लों के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है। ऐसा मालूम देता है, हमसे धीरे-धीरे लोकतन्त्र का दामन छूटता जा रहा है और हमें जानबूझकर फासीवाद की ओर धकेला जा रहा है।