नई दिल्ली (शौर्य यादव): कोरोना वायरस (Coronavirus) ने बाजार के तकरीबन सभी समीकरण गड़बड़ा दिए हैं। अब वो औद्योगिक गतिविधियां भी लड़खड़ा रही है, जो लगातार बढ़ाव की ओर रहती थी। मांग में भारी गिरावट आने के कारण कच्चे तेल की कीमतों में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गयी। अमेरिकी क्रूड ऑयल (American crude oil) की कीमत शून्य के स्तर से नीचे जाकर -40 डॉलर प्रति बैरल दर्ज की गयी। ओपेक सहित कई तेल उत्पादक देशों को उत्पादन की तुलना में खरीदार नहीं मिल पा रहे हैं। विश्वव्यापी लॉकडाउन (worldwide lockdown) के चलते तमाम तरह की औद्योगिक गतिविधियां थमने के कारण उत्पादन और उपभोग के बीच का संतुलन अस्थिर हो गया है। बाजार जानकारों के मुताबिक- कच्चे तेल की कीमतों का ये स्तर दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार देखा जा रहा है।
मौजूदा हालातों देखते हुए सऊदी, अमेरिकी और रूसी तेल कंपनियों के निवेशकों के बीच अनिश्चिंतता का माहौल बना हुआ है। फिलहाल ईरान (Iran) से आयात होने वाले क्रूड ऑयल की कीमतें स्थिर है। ओपेक देश और अमेरिकी कंपनियों के बीच नियमित उत्पादन के कारण दोनों के बीच उत्पादन कटौती को लेकर आम सहमति बनने के आसार कम ही है। मामले को लेकर ओपेक देशों और रूस के बीच बढ़िया तालमेल देखने को मिल रहा है। दोनों ने आपसी समझ से 10 फ़ीसदी की कटौती करने का निर्णय लिया।
गौरतलब है कि, तेल कुओं का खनन, क्रूड ऑयल का एकत्रीकरण और प्रोसेसिंग से जुड़े उत्पादन के सभी पक्षों पर भारी रकम खर्च होती है। ऐसे में उत्पादन रोक कर उसे दोबारा चालू करने में ज्यादा निवेश होता है। जिससे तेल कंपनियां आमतौर पर बचना चाहती है। बाजार प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए कंपनियां ऐसा फैसला लेने से बचती है। साथ ही बाजार में हिस्सेदारी कम होने का जोखिम लगातार बना रहता है।
इस समय तेल कंपनियों पर चौतरफा दबाव है। उन्हें उत्पादित तेल के लिए उपभोक्ता देश नहीं मिल रहे हैं। उत्पादन कम करने या बंद करने का फैसला बहुत खर्चीला होता है। तकरीबन सभी देशों की तेल भंडारण क्षमता पूरी है। ऐसे में वे सरप्लस सप्लाई लेने में असमर्थ हैं। अगर माहौल ऐसे ही बना रहा तो तेल कंपनियों को भारी आर्थिक नुकसान होने के साथ निवेशकों की जेब पर भी तगड़ा झटका लगने की पर्याप्त संभावनाएं है।