देश में मानव विकास और बढ़ती असमानतायें-कैप्टन जी.एस. राठी

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– कैप्टन जी.एस. राठी
सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता

किसी भी मुल्क का वास्ताविक विकास मानव के विकास और उससे जुड़े दूसरे कारकों पर निर्भर करता है। साल 2019 में मानव विकास पर एक रिपोर्ट पेश की गयी। इसे बनाते समय 2018 के मानव विकास सूचकांक का इस्तेमाल किया। जिसमें 189 देशों को जगह दी गयी। साथ ही 150 यूएन मान्यता प्राप्त देशों के मानव विकास सूचकांकों के साथ 166 देशों की जीडीआई, 162 देशों की जीआईआई और 101 देशों की एमपीआई का हवाला लेते हुए इस रिपोर्ट का खाका खींचा गया। मानव विकास से जुड़ी इस रिपोर्ट में समग्रता को आधार बनाते हुए प्रत्येक वर्ष पाँच तत्वों को शामिल किया गया। जिनमें शामिल है। : मानव विकास सूचकांक (एचडीआई), असमानता-समायोजित मानव विकास सूचकांक (IHDI), लिंग विकास सूचकांक (GDI), लिंग असमानता सूचकांक (GII), और बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI)

संक्षिप्त परिचय:

मानव विकास के पक्ष का मुख्य आधार है कि लोगों की स्वतंत्रता का विस्तार करते हुए स्थायी विकास के लिए साधन तैयार करना। मानव विकास में असमानताएँ समाज को चोट पहुँचाती हैं साथ ही और सरकार और संस्थानों के बीच लोगों का सामाजिस सांमजस्य कायम नहीं हो पाता है, जिससे आमजन का विश्वास व्यवस्था के प्रति कमजोर होने लगता है। इससे अर्थव्यवस्था में खोखलापन बढ़ता है। जिससे आम व्यक्ति की उत्पादकता और क्षमताओं के उच्च स्तर को हासिल नहीं कर पाता है। । जिसकी वज़ह से कुछ कड़े सियासी फैसले लेने पड़ते है। इन फैसलों की आड़ में कुछ लोग अपना उल्लू सीधा करते है और अपनी ताकत बढ़ाते है।

मानव विकास में असमानता केवल आय और धन में असमानता तक सीमित नहीं है। 2019 की मानव विकास रिपोर्ट (HDR) आमदनी से परे, आज के औसत और उससे भी आगे जाकर मानव विकास में असमानताओं की पड़ताल करती है। प्रस्तावित दृष्टिकोण इन असमानताओं को एक ढांचे के भीतर हल करने के लिए नीतियां निर्धारित करता है जो क्षमताओं के गठन को व्यापक संदर्भ के साथ जोड़ता है जिसके तहत बाजार और सरकार काम करते हैं।

नीतियों के लिए असमानता और असमानता के लिए नीतियां काफी मायने रखती हैं। मानव विकास के नजरिये से असमानता का काफी बड़ा असर है और सवाल ये है कि यह क्यों मायने रखता है, यह कैसे सामने आ खड़ा होता है और इससे कैसे बेहतर ढ़ंग से निपटा जाये। सामाजिक-आर्थिक शक्तियों में बढ़ता असंतुलन आखिरकर राजनैतिक प्रभुत्व में बदल जाता है, जिसकी वज़ह से कई बड़ी आपदायें सामने आ खड़ी होती है।यह रिपोर्ट विभिन्न वर्गों से संदर्भ लेती है, जिनमें शामिल है मानव विकास सूचकांक (HDI), असमानता-समायोजित मानव विकास सूचकांक (IHDI), लिंग विकास सूचकांक (GDI), लिंग असमानता सूचकांक (GII), और बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI)।

मानव विकास सूचकांक (एचडीआई): मानव विकास के तीन बुनियादी आयामों की दीर्घकालिक प्रगति का आकलन करती है। अगर इसे सीमित शब्दों में कहा जाये तो, लंबा और स्वस्थ जीवन, ज्ञान तक लोगों की सहज़ पहुँच, जीवनयापन करने के सभ्य मानक। एक लंबे और स्वस्थ जीवन को जीवन प्रत्याशा द्वारा मापा जाता है। ज्ञान का स्तर व्यस्क आबादी के बीच स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों से मापा जाता है, जो कि 25 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों द्वारा जीवन-समय में प्राप्त स्कूलिंग की औसत संख्या है; स्कूल-प्रवेश उम्र के बच्चों के लिए स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्षों तक सीखने और ज्ञान तक पहुंच, जो कि स्कूल-प्रवेश की आयु के बच्चे की स्कूलिंग की कुल संख्या है, अगर उम्र-विशिष्ट नामांकन दर के प्रचलित पैटर्न रहने पर प्राप्त करने की उम्मीद कर सकते हैं। जीवन स्तर को सकल राष्ट्रीय आय (GNI) द्वारा प्रति व्यक्ति क्रय शक्ति समानता (PPP) रूपांतरण दरों का उपयोग करके मापा जाता है।

भारत का HDI मूल्य और रैंक: साल 2019 के लिए देश की रैंक HDI 0.647 है, जिसने देश को मध्यम मानव विकास श्रेणी में डाल दिया है – इस तरह हमारी रैंक 189 देशों के बीच 129 पायदान पर है। देश का मानव विकास सूचकांक में 0.413 से बढ़कर 0.647 की बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी है। यानि बढ़ोत्तरी 50 फीसदी की दर्ज की गयी है। साल 1990 से 2018 के बीच जीवन प्रत्याशा में 11.6 वर्षों की वृद्धि देखी गयी है। स्कूली शिक्षा के वर्षों में 3.5 सालों से बढ़कर 4.7 की बढ़ोत्तरी देखी गयी है। 1990 और 2018 के बीच भारत की को सकल राष्ट्रीय आय प्रति व्यक्ति लगभग 262.9 प्रतिशत बढ़ी।

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