न्यूज डेस्क (अनुज गुप्ता): लद्दाख (Ladakh) की गलवान घाटी (Galwan Valley) भारतीय सैनिकों की शहादत की गवाह बनी। चीनी सैनिकों (Chinese army) से हुई हाथापाई में भारतीय सेना (Indian Army) के 20 ज़वान शहीद हो गये। बड़ी आबादी वाले दोनों देश परमाणु शक्ति सम्पन्न है, ऐसे कोई भी सीधी सैन्य कार्रवाई से बचना चाहेगा। देश कोरोना के संकट से जूझ रहा है। लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था (economy) की रफ्तार निचले पायदान पर आ गयी है। एक ओर जहाँ मौजूदा हालातों में विकासशील अर्थव्यवस्था होने के नाते भारत युद्ध जैसा भारी जोखिम नहीं उठा सकता है वहीँ दूसरी और चीन को मुँहतोड़ ज़वाब देना मुमकिन है। इस लड़ाई में किसी जान नहीं जायेगी, लेकिन चीन की कमर जरूर टूट जायेगी। ये मुहिम कारोबार के मैदान में भारतीय कारोबारियों और आम जनता द्वारा लड़ी जा सकती है।
आंकड़ों के मुताबिक आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था देश की जरूरत
कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (Confederation of All India Traders) के मुताबिक हालिया वक्त में चीन से भारत से तकरीबन 70 बिलियन डॉलर (5.25 लाख करोड़) का कारोबार है। जिनमें खासतौर से पैकेजिंग (packaging), इलैक्ट्रिकल-इलैक्ट्रॉनिक्स (electrical-electronics), ऑटो पार्ट्स (auto-parts), फर्निशिंग फैब्रिक्स (furnishing fabrics), फैशन अपैरल (fashion apparels), स्टेशनरी (stationery), फुटवियर (footwear), किचन आइटम और बिल्डर हार्डवेयर (kitchen hardware and builder hardware) का सामान खासतौर से शामिल है। साल 2018-19 के दौरान भारत ने चीन को 16.7 बिलियन डॉलर का निर्यात किया था। और चीन से 70.3 बिलियन डॉलर का आयात किया गया था। दोना देशों के बीच व्यापार असंतुलन 53.6 बिलियन डॉलर का था।
वित्तवर्ष 2020-21 के दौरान चीन भारत के साथ 100 अरब डॉलर का व्यापार करने की योजना में लगा हुआ है। मई महीने में ब्रुकिंग्स इंडिया (Brookings India) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक चीन ने दक्षिण-एशियाई देशों के साथ अपनी व्यापारिक दर दूसरों एशियाई देशों की तुलना में 546 फीसदी कर रखी है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार 65 अरब डॉलर के साथ चीन भारत का दूसरा बड़ा व्यापारिक साझेदार है। 68 अरब डॉलर के साथ अमेरिका पहले पायदान पर कायम है। दोनों देशों के बीच व्यापारिक संतुलन में गहरी खाई है, अप्रैल 2019 से जनवरी 2020 तक भारत ने चीन से 14.42 अरब डॉलर का कारोबार किया। ठीक इसी समय के दौरान चीन ने भारत से 57.93 अरब डॉलर का कारोबार किया। यानि कि उन्होनें हमसे चार गुना ज़्यादा पैसा कमाया। कुल मिलाकर चीन भारत के साथ एकतरफा मुनाफे का कारोबार कर रहा है।
भारत के कुल आयात में 16 फीसदी हिस्सा चीन से आयतित वस्तुओं का होता है। आम जनता और कारोबारियों को चीन की इसी नस पर वार करना होगा। सामूहिक रूप से चीनी उत्पादों का बहिष्कार और ट्रेड वॉर ही चीन के खिल़ाफ कारगर हथियार साबित होगा। इस बात पर जाने-माने शिक्षाशास्त्री सोनम वांगचुंक का एक वीडियों देश में काफी वायरल हुआ था।
स्वदेशी उत्पादों को प्राथमिकता देना, हमारा इतिहास रहा है
फिलहाल चीन के खिलाफ ट्रेड वॉर का इस्तेमाल अमेरिका खुले तौर पर कर रहा है। भारत को भी इसी नीति पर चलना होगा। सरकार अपने स्तर पर चीन से आने वाली वस्तुओं पर एंटी डॉपिंग शुल्क लगा सकती है, जिससे चीनी सामानों के दाम बढ़ने के कारण लोग इसे खरीदने में हिचकिचायेगें। चीन के साथ आर्थिक बहिष्कार पूरी तरह संभव है। भले ही ये प्रक्रिया दीर्घकालीन ही क्यों ना हो। भारत के दर्ज इतिहास में व्यापारिक बहिष्कार कोई नयी घटना नहीं है। इसकी शुरूआत 22 अगस्त 1921 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने की थी। तारीख में इसे स्वदेशी आंदोलन का नाम दिया। विदेशी कपड़ों की होली जलाई गयी। स्वदेशी उत्पादों को प्राथमिकता दी गयी। अब वक्त आ गया है कि, उस अभूतपूर्व घटना को एक बार चीन के साथ दोहराया जाये। व्यापारिक स्वदेशीकरण और आत्मनिर्भरता इन्हीं दो हथियारों के सामने चीन नतमस्तक हो सकता है। पीएम मोदी भी भारतीय अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर और स्थानीय उत्पादों से लैस करने की वकालत करते रहे है।
व्यापारिक नज़रिये से चीन से बेहतर है, दूसरे दक्षिण-एशियाई देश
खुली और वैश्विक अर्थव्यवस्था में कोई भी देश व्यापारिक तौर पर पूरी तरह से आत्मनिर्भर नहीं हो सकता। लेकिन वैकल्पिक माध्यम तलाशे जा सकते है। फॉर्मास्यूटिकल का कच्चा माल, आईटी हार्डवेयर, ऑटो-स्पेयर पार्ट्स सहित कई उत्पादों के लिए हम चीन पर निर्भर है। ऐसे में कुछ खास उत्पादों और कारोबारी जरूरतों के लिए जापान, दक्षिण कोरिया, वियतनाम और ताइवान बेहतरीन व्यापारिक साझेदार हो सकते है। इन देशों का सामान चीन की तुलना में ज़्यादा टिकाऊ और विश्वसनीय होता है। अगर इनके साथ व्यापारिक गतिविधियां तेज की जाये तो चीन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ेगा।
आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था और स्वदेशी उत्पाद देश के कई फायदे
वैश्विक परिवेश को देखते हुए आत्मनिर्भरता की सोच थोड़ी मुश्किल जरूर है, पर असंभव नहीं। ये आर्थिक उपाय दीर्घकालीन प्रक्रिया और सतत् प्रयासों से ही संभव हो पायेगा। इससे देश में कई स्पेशल इक्नॉमी जोन बनेगें। लघु,मध्यम और कुटीर उद्योगों से ग्रामीण इलाकों में आमदनी का जरिया खुलेगा। रोजगार की असीम संभावनायें देश में पैदा होगी। ज़्यादातर नकदी प्रवाह देश के भीतर सीमित रहने से सुदृढ़ आधारिक संरचना बनेगी। देश में बननी वाली वस्तुओं पर डॉपिंग शुल्क और इम्पोर्ट ड्यूटी नहीं देनी पड़ेगी। जिसकी वज़ह से घरेलू बाज़ार में उपभोक्ता को उत्पाद और सेवायें किफायती कीमतों पर उपलब्ध होगी।
सामरिक मोर्चे पर भारत की स्थिति 1962 से कई गुना अलग
चीन के मौजूदा हुक्मरान इस गफलत में बैठे है कि, ये 1962 वाला भारत है। देश अखंड़ता और संप्रभुता की रक्षा करने के लिए पूरी तरह सक्षम है। रूस (Russia), इस्राइल (Isreal), फ्रांस (France) और अमेरिका (America) से भारत के कई बड़े रक्षा अनुबंध हुए है। S-400, राफेल फाइटर जेट्स जैसे कई हथियार भारत के तरकश में आने वाले है। साथ ही भारत की कई परमाणु पनडुब्बियां भी मेक-इन-इंडिया (Make-in-India) मिशन के तहत बन रही है। चीन की तुलना में भारत की अन्तर्राष्ट्रीय साख पहले के मुकाबले कई गुना बढ़ी है। ऐसे में सैन्य तनाव और सामरिक भिड़न्त के हालातों में कई देश भारत के समर्थन में रहेगें।
चीन को धूल चटाने के लिए आम जनता करना होगा ये काम
चीनी उत्पादों को पूरी तरह ना कहें। किसी भी वस्तु को खरीदने से पहले देखे वो कहां बनी है। देशभर के व्यापारी बंधु को कोई भी चीनी सामान का ऑर्डर ना दे।
चाइनीज उत्पाद और सेवायें- इन ना खरीदें और ना ही इस्तेमाल करे | गैर चीनी उत्पाद और सेवायें- इन खरीदें और इनका ही इस्तेमाल करे |
मोबाइल- Alcatel-one Touch, Coolpad, Gionee, Huawei, Lenovo, One Plus, Oppo, Techno Mobile, Xiaomi, ZTE, Honor, Vivo, Redmi, Realme, Meizu, Zopo, | मोबाइल- CREO, Celkon, I-Ball, Intex, Karbonn, Lava, Jio, Micromax, Xolo, LYF, Spice X, Videocon, YU, |
मोबाइल ऐप- Helo, SHAREit, TikTok, UC Browser, Bigo Live, Vigo Live, Cam Scanner, PUBG, VMATE, Clash of Kings, Club Factory, AppLock, | मोबाइल ऐप- Hike Messenger, News Hunt, Mitro, ShareChat, Jio Browser, Epic Web Browser, Adobe Scan, Indian Selfie Camera, Photo Video Maker |
कई भारतीय कम्पनियों और स्टार्ट-अप्स में चीन की वित्तीय सेंधमारी
इंडियन काउन्सिल ऑफ ग्लोबल रिलेशंस (Indian Council of Global Relations) के मुताबिक चीन ने भारत के तकनीकी स्टार्ट-अप्स में 4 बिलियन डॉलर का भारी वित्तीय निवेश किया है। चीन की सबसे बड़ी रिटेल चेन अलीबाबा (Alibaba) ग्रुप ने रणनीतिक निवेश के तहत बिग बास्केट (Big Basket) में 250 मिलियन डॉलर, पेटीएम.कॉम (Paytm) में 400 मिलियन डॉलर, पेटीएम मॉल में 150 मिलियन डॉलर, जैमेटो (Zomato) में 200 मिलियन डॉलर और स्नैपडील (Snapdeal) में 700 मिलियन डॉलर का निवेश कर रखा है। ठीक इसी तर्ज पर चीनी औद्योगिक समूह टेंसेंट होल्डिंग्स ने भी भारतीय फर्मस में वित्तीय हिस्सेदारी खरीद रखी है। जिसके तहत टेंसेंट होल्डिंग्स ने Byju’s में 50 मिलियन डॉलर, Dream 11 में 150 मिलियन डॉलर, Hike Massenger में 150 मिलियन डॉलर, Filpkart में 300 मिलियन डॉलर, Ola में 500 मिलियन डॉलर और Swiggy में 500 मिलियन डॉलर का निवेश कर रखा है। चीनियों ने हिस्सेदारी और निवेश करके भारतीय कंपनियों का हाल इस कदर कर रखा है कि, अन्तर करना मुश्किल हो रहा कंपनी चीनी है या भारतीय।
कारोबारी कर चुके पहल, सरकारी पहल बाकी
चैंबर ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री (सीटीआई) ने चीनी अर्थव्यवस्था पर वार करने के लिए, चीनी वस्तुओं से व्यापार ना करने का मन बना चुका है। भारतीय उद्योग व्यापार मंडल (बीयूवीएम) ने केन्द्र सरकार से चीनी माल के आयात-निर्यात पर कड़ा प्रतिबंध लगाने की अपील की है। कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने 3000 हज़ार ऐसे समानों की सूची तैयार की है जो भारत में बनते है, और साथ ही जिनका आयात चीन से भी होता है। कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भारतिया के मुताबिक, उनके व्यापारिक संगठन के अन्तर्गत आने वाले कारोबारी भारत में तैयार माल की खरीद फरोख्त को प्राथमिकता देगें। दूसरी ओर दिल्ली-मेरठ आरआरटीएस टनल निर्माण का ठेका चीनी कंपनी शंघाई टनल इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड को मिला है। केन्द्र सरकार की ओर से चीनी कंपनी को मिले, इस ठेके को खारिज नहीं किया गया है। अगर केन्द्र सरकार इस दिशा में वांछित कदम उठाती है तो इस मुहिम को और मजबूती मिलेगी।
मौजूदा हालातों में केंद्र सरकार चीन पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध सीमित दायरे में ही लगा सकती है। वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन के एग्रीमेंट के मुताबिक कोई भी देश किसी भी देश पर तयशुदा सीमा से ज्यादा डंपिंग शुल्क और इंपोर्ट ड्यूटी नहीं लगा सकता है। ऐसे में मोदी सरकार के हाथ अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक संधि से बंधे हुए हैं। जिन का उल्लंघन करना तकरीबन नामुमकिन है। अब देश की अखंडता, एकता और संप्रभुता आम जनता के हाथों में है। जिसका एकमात्र उपाय चीनी वस्तुओं के इस्तेमाल का बहिष्कार है। अगर आम नागरिक व्यवस्थित ढंग से चीनी वस्तुओं की खरीदारी ना करे तो, स्वत: ही चीनी उत्पादों की मांग में कमी आएगी। ऐसे में सभी कारोबारी चीनी सामानों का आयात करने से हिचकिचायेगें। अगर ऐसा होता है तो आर्थिक आधार पर चीन की कमर टूट जाएगी। कुल मिलाकर भारतीय सेना सामरिक मोर्चे पर चीन को संभालेगी और आम जनता घरों रहकर चीनी उत्पादों का बहिष्कार करके आर्थिक मोर्चे पर बीजिंग को नुकसान पहुंचाने का काम करेगी। राष्ट्रहित में भारतीय जनता को ये कदम उठाना ही होगा।