‘आनंद’ को कैंसर था लेकिन वो मुस्कुराता रहता था। मुस्कुराते हुए ही उसने दम भी तोड़ा। फिल्म में राजेश खन्ना (Rajesh Khanna) के किरदार की मौत के साथ थिएटर में चारों तरफ से रोने और सिसकने की आवाज़ें आने लगीं। साल 1971 का ये वो दौर था जब राजेश खन्ना चरम पर थे और अमिताभ बच्चन चलने से दौड़ने के बीच की स्थिति में थे। चालीस साल बाद राजेश खन्ना को बताया गया कि उनको कैंसर है। मुंबई के लीलावती अस्पताल (Lilavati Hospital of Mumbai) के डॉ पी जगन्नाथ ने उन्हें जैसे ही ये खबर दी वो खामोश हो गए। कुछ पलों के बाद मुस्कुराकर बोले- मेरी किस्मत में आनंद की ही तरह जीना लिखा है।
अगले डेढ़ साल तक राजेश खन्ना की जंग कैंसर से चलती रही। इस दौरान वो हमेशा अपने डॉक्टर से हंसते-मु्स्कुराते हुए मिलते। शायद राजेश खन्ना ने वाकई आनंद के अपने किरदार को गंभीरता से ले लिया था। दिल्ली में अपने डॉक्टर नरेश जुनेजा से राजेश खन्ना अक्सर पूछते- मेरा वीज़ा कब खत्म हो रहा है?
राजेश खन्ना अपने आखिरी जन्मदिन को पहचान गए। वो समझ गए कि इसके बाद जीना मुश्किल होगा। हर किसी को बुला लिया। गोवा में दामाद अक्षय कुमार (Akshay Kumar) के साथ सारा परिवार इकट्ठा हो गया। आखिरी जन्मदिन पर वो बेहद खुश थे। उनकी कोशिश रही कि किसी को उनकी बीमारी का इल्म ना हो।
राजेश खन्ना अपने सुनहरे दौर के गुज़रने के बाद उसे वापस लौटा लाने की जद्दोजहद में जीते रहे। एक के बाद एक फिल्में कीं… सीरियल किए.. फिर एक सी ग्रेड फिल्म कर ली.. उसके बाद समझ गए कि कुछ भी होना मुमकिन नहीं। इसी दौर में विज्ञापन एजेंसी लिंटास को हैवेल्स पंखों का एड शूट करना था। तय हुआ कि राजेश खन्ना को लेते हैं। फिल्म पा के डायरेक्टर आर बाल्की को इसे शूट करना था। विज्ञापन ऐसे शख्स के बारे में था जो गुज़रे हुए दौर का स्टार था और उसे सुनहरे वक्त को याद करके बोलना था कि मेरे ‘फैन’ मुझे कभी नहीं छोड़ सकते।
राजेश खन्ना विज्ञापन में काम करने के लिए तैयार हो गए। डॉक्टरों ने मना किया तो नहीं माने। पांव में फ्रैक्चर हो गया तो खुद को लीलवती में भर्ती करा लिया ताकि दो दिनों में ठीक होकर शूटिंग कर सकें। शूटिंग भी बंगलौर में होनी थी। राजेश खन्ना ने ज़िद पकड़ ली थी। तीसरे दिन अस्पताल से घर नहीं गए, बंगलौर चल दिए। उनसे खड़ा तक नहीं हुआ जा रहा था। कैंसर से हड्डियों का ढंचा रह गए थे। ऊपर से फ्रैक्चर का दर्द अलग था। जिस स्टेडियम में शूटिंग होनी थी वहां तक व्हील चेयर से लाए गए। तय हुआ कि गाना ‘ये शाम मस्तानी’ बैकग्राउंड में एंथम की तरह बजेगा। फिल्म में फैन के नाम पर जो ह्यूमर था वो भी राजेश खन्ना ने अंत में स्वीकारा। दर्द से लड़खड़ाते सुपरस्टार ने वॉक किया और पुराने दिलकश अंदाज़ में सिर हिलाकर डायलॉग बोला- बाबू मोशाय, मेरे फैन्स मुझसे कोई नहीं छीन सकता। सच ये है कि विज्ञापन में राजेश उस वक्त अपना संवाद भी बोल नहीं सके थे। चेतन शशिताल ने बाद में उनकी आवाज़ निकालकर विज्ञापन मुकम्मल किया।
शूटिंग के आखिर में हर कोई बूढ़े सुपरस्टार के लिए तालियां बजा रहा था। शायद यही वो मृगमरीचिका है जिसके पीछे प्यासा मुसाफिर बेचैन हुआ चलता रहता है।