Lachit Borphukan: भारत में कई वीर योद्धाओं का जन्म हुआ, जो अपनी मातृभूमि के लिये प्राण न्यौछावर करने से भी नहीं घबराये। ऐसे ही एक महान योद्धा थे लचित बरफूकन। जिनकी कहानी और शौर्य कई सालों तक भारतीय इतिहास के पन्नों से गायब रहा और अभी भी उनके विषय में इक्का-दुक्का किताबों में ही लिखा गया है।
24 नवम्बर 1622 में जन्मे लचित अहोम साम्राज्य के सेनापति (Commander Of The Ahom Kingdom) थे, जिन्होंने इतिहास के सबसे सफल युद्धों में से एक सराई घाटी की लड़ाई का नेतृत्व किया था। लचित अपने युद्ध-कौशल, नेतृत्व और नीति के लिये जाने जाते थे। असम के पूर्व राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल श्रीनिवास कुमार सिन्हा ने अपनी किताब में लचित के शौर्य की तुलना मराठाओं के पराक्रमी राजा एवं योद्धा शिवाजी से कर दी। दोनों योद्धाओं को मध्यकालीन भारत का महान सैन्य नेता बताया गया।
अहोम सेना को मनोबल शायद शिवाजी और राणा प्रताप (Shivaji and Rana Pratap) के साहस को देखकर ही आया होगा, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिये मुगलों से युद्ध किया। अहोम की सेना मुगलों के सामने भले ही संख्या में कम थी लेकिन आत्मविश्वास और शौर्य में लाखों के बराबर था। लचित की रणनीति हर समय अहोम को जीत दिलाने में सफल रहती थी।
अहोम सेना मुग़लों की विशाल सेना से सीधे युद्ध करने की स्थिति में नहीं थी। मगर लचित ने गुरिल्ला युद्ध (Guerrilla Warfare) करने का फैसला किया और वो भी तब जब मुगलों की सेना रात को आराम करती थी। अहोम सैनिक रात में जिस रौद्र रूप के साथ मुगलों पर टूटते थे जैसा लगता था कि अहोम सैनिकों पर कोई साया सवार है और मुगलों ने ये मान भी लिया था अहोम सैनिक राक्षस हैं। राज्य को बचाने के लिये अगर भी राक्षस बनना पड़े तो वो पीछे नहीं हटते थे। इस रात के हमले से थक कर जब मुग़ल सेनापति (Mughal general) ने लचित से रात को हमला न करने के लिये आग्रह किया, तब लचित ने जो जवाब दिया था वो आज याद रखी जाती है। जवाब था कि ‘शेर हमेशा रात में ही हमला करते हैं।’
जब औरंगज़ेब ने 70 हज़ार सैनिकों को असम पर हमला करने के लिये भेजा था तब लचित ने गुरिल्ला युद्धनीति के बलबूते पर उन सभी को कामाख्या मंदिर (Kamakhya Temple) के पास ही रोक दिया था। जिस से तंग आकर मुग़ल सेनापति राम सिंह ने एक चाल चली। उसने राजा को एक पत्र लिखा। जिसमें कहा गया कि ‘लचित ने गुवाहाटी खाली करने के लिये एक लाख रुपये लिये हैं।’ और लचित को न पसंद करने वाले सैन्य अधिकारियों को घूस देकर सेना में फूट डालने को कहा। राजा का लचित पर शक गहरा गया। इधर राम सिंह ने युद्ध का आह्वान कर दिया और इधर शक और जल्दबाज़ी में राजा ने भी युद्ध की घोषणा कर दी। किन्तु लचित सीधी जंग के पक्ष में नहीं थे और इसका परिणाम अहोम सेना को भुगतना पड़ा। युद्ध में 10 हज़ार से ज़्यादा अहोम सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गये।
लेकिन लचित ने हार नहीं मानी और बीमार होने के बावजूद भी मैदान में उतर गये और उनके इसी साहस को देखते हुए जो सैनिक पीछे हट रहे थे, वो भी वापस युद्धभूमि में लौट आये। जिसके बाद लचित और उनकी सेना ने छोटी नावों से मुगलों की विशालकाय नावों पर हमला कर दिया। जिसमे मुग़ल सेना के कप्तान मुन्नावर ख़ान (Mughal army captain Munnavar Khan) अहोम सेना द्वारा मारा गया। इसके बाद मुगलों में भगदड़ मच गयी और आखिर में राम सिंह को अपनी सेना के साथ पीछे हटना पड़ा। सराइघाट के इस ऐतिहासिक युद्ध के बाद मुग़लों ने फिर कभी असम की तरफ नहीं देखा।