नई दिल्ली (दिगान्त बरूआ): लद्दाख के पूर्वी सैन्य मोर्चे (Eastern Military Front of Ladakh) पर सैन्य तनाव लगातार बना हुआ है। इस सीमाई इलाके (Border areas) में चीन की ओर से सैन्य बलों (Military forces) में 30 फीसदी का इज़ाफा किया गया है। दोनों देशों के बीच लगातार दो महीनों से आमने-सामने तनातनी के हालात बने हुए है। विपक्षी पार्टियां (Opposition parties) लगातार भारत की चीन नीति पर सवालिया निशान (Question mark) लगा दाग रही है। विपक्षी पार्टियां के तर्ज पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) भी केन्द्र सरकार की कार्य प्रणाली पर नाखुश दिख रहा है। आरएसएस की ओर से इशारों में मिल रही बातों से ये तथ्य स्पष्ट होता दिख रहा है। संघ चीन से सीधे तौर पर युद्ध का पक्षधर नहीं है। आरएसएस काडर (RSS CADRE) अन्दरखाने चाहता है कि, अन्तर्राष्ट्रीय मंचों (International forums) की मदद से चीन को अलग-थलग किया जाये।
खास बात ये भी है कि, संघ ने अभी खुलकर इस मुद्दे पर मोदी सरकार की मुखालफत नहीं की है। स्थापित परम्परा (Established tradition) के तहत संघ के आला अधिकारी चीन मसले पर नपातुला बयान दे रहे है। चीनी सैनिकों (Chinese soldiers) से तनातनी के माहौल के बीच सरसंघसंचालक मोहन भागवत और संघ सहसरकार्यवाह भैयाजी जोशी के आधिकारिक बयानों (Official statements) में चीन के प्रति सीमित विरोध के सुर दिखाई पड़ रहे है।
आरएसएस के वरिष्ठ स्वयंसेवक ने ‘द टेलिग्राफ’ अखबार से हुई बातचीत के दौरान कहा- मौजूदा हालातों के देखते हुए फिलहाल चीन के खिल़ाफ युद्ध का मोर्चा (War front) खोलने की आवश्यकता नहीं है। चीन से सामरिक मोर्चें से नहीं बल्कि दूसरे मोर्चों पर लड़ना होगा। एक साथ कई मोर्चों (Many fronts) को सक्रिय करने की जरूरत है। संघ कई बार मोदी सरकार सहित पूर्ववर्ती सरकारों (Previous governments) को चीन के खिल़ाफ अगाह करता आया है। कई मंचों से संघ ने चीन की खिल़ाफ कारगर और ठोस नीतियां (Effective and sound policies against China) बनाने की अपील पहले की सरकारों से की है। लद्दाख के पूर्वी मोर्चें पर हुई सैन्य भिड़न्त ने साबित कर दिया है कि बीजिंग के हुक्मरानों और नीति-नियन्ताओं (Policy makers of Beijing) पर विश्वास नहीं किया जा सकता है।
दोनों देशों के बीच हुई रणनीतिक गहमागहमी के दौरान संघ ने खुले तौर पर, सरकार की चीन के प्रति विदेशी नीति (Foreign policy) पर प्रश्न चिन्ह लगाये। संघ के अनुषांगिक संगठन (Subsidiary organization) स्वदेशी जागरण मंच ने चीन से हो रहे कारोबार को तुरन्त रोकने की मांग केन्द्र सरकार (Central government) से की। साथ ही देश के अलग-अलग हिस्सों में धरना-प्रदर्शन (Protest) कर रोष ज़ाहिर किया।
हाल ही में संघ के मुखपत्र ‘द ऑर्गनाइजर’ (Mouthpiece of RSS ‘The Organizer’) के संपादक प्रफुल्ल केतकर (Editor Prafulla Ketkar) ने कहा- जिस तेजी के साथ पूरी दुनिया वायरस इंफेक्शन (Virus infection) की चपेट में आ गयी है, उसके मद्देनज़र कई मुल्कों में चीन के खिल़ाफ बगावती आवाज़ें (Rebellious voices) फूट रही है। भारत को इस मौका का फायदा उठाना चाहिए। ताकि चीन को एक खास दायरे में बांधने की मुहिम (Campaign to tie in a particular area) की रहबरी भारत कर सके। लद्दाख में पीएलए ने जो हमारे सैनिकों के साथ किया, वो बेहद गंभीर मसला है। चीन कई बार हमारे इलाकों में घुसपैठ (Infiltration) कर चुका है। इसलिए लड़ाई से ज़्यादा दूसरे तरीकों से चीन पर चौ-तरफा दबाव (All-round pressure) बनाकर रोकना ज़्यादा कारगर साबित होगा। मैं ये राय (Opinion) हिन्दुस्तान का आम बांशिदा (Ordinary Citizens) होने के तौर पर रख रहा हूँ।
अभी केन्द्र सरकार की ओर से चीन को घेरने की कोई स्पष्ट नीति (Clear policy) सामने आती नहीं दिख रही है। सिर्फ कूटनीतिक और सैन्य वार्ताओं (Diplomatic and military negotiations) से ही मामले को सुलझाने की कोशिश की जा रही है। आरएसएस चीन पर जो चौतरफा दबाव बनाने की वकालत कर रहा है। उस रास्ते पर मोदी सरकार ने फिलहाल कोई कदम नहीं रखा है। ऐसे में संघ नेताओं की ओर से आने वाले नपेतुले बयान और सुझाव (Inexplicable statements and suggestions) क्या किसी तरह के संकेत है या उनकी नाफरमानी की खीझ?