India China Standoff: राजनयिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक, इस हफ़्ते बीजिंग और नई दिल्ली के बीच वार्ता विफल होने के बाद विवादित भारत-चीन सीमा के दोनों ओर सैनिकों के सर्दियों में रहने के लिये बंकर और ट्रैंच बनाने के लिये खुदाई कर सकते है। कमांडर-स्तरीय सैन्य वार्ता का 13 वां दौर बीते रविवार को पूरी तरह विफल रहा। जिसमें दोनों पक्ष एक दूसरे पर आरोप लगा रहा थे – बीजिंग ने नई दिल्ली पर अनुचित मांग रखने करने का आरोप लगाया और दिल्ली ने बीजिंग पर आगे के प्रस्तावित कदम को लागू करने में नाकाम रहने का आरोप लगाया।
फ़ुडन विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन संस्थान के प्रोफेसर लिन मिनवांग के मुताबिक, इस साल की सर्दियों के साथ गतिरोध भी जारी रहेगा। साथ ही इस बार दोनों और के सैनिक काफी विषम हालातों में निगेहबानी करेगें। दोनों पक्ष लगातार अपनी मॉनिटरिंग और ऑर्ब्जवेशन पोस्टों (Monitoring and observation posts) को बढ़ा रहे है। पिछले साल (2020) की सर्दियों में दोनों पक्षों के सैनिक एक दूसरे के सामने डटे हुए है। इसीलिये अब पीएलए और भारतीय सेना आगे के हालातों के लिये पूरी तरह अभ्यस्त है।
माना जा रहा है कि दोनों मुल्कों के नीति नियंताओं को सर्दियों की बर्फ और ठंडे मौसम के बारे में जरा भी चिंता नहीं है। बीजिंग और नई दिल्ली ने गतिरोध जारी रखने की तैयारी कर ली है। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास मोल्डो में वार्ता के लिये स्थितियां काफी तनावपूर्ण थीं, कई रिपोर्टों में दावा किया गया कि चीनी सैनिकों को भारतीय सेना द्वारा हिरासत में लिया गया था।
दोनों पक्षों के बीच पिछले साल अप्रैल में एलएसी के साथ पश्चिमी खंड में अपनी पूरी तैनाती पर लौटने के लिये साझा सहमति बनी थी, लेकिन चीन 1962 के सीमा युद्ध के बाद बनी यथास्थिति और सैन्य तैनाती पर वापस लौटने की मांग पर अड़ा हुआ है। अगर चीन के नजरिये से देखा जाये तो भारत 1962 से चीनी इलाकों का अतिक्रमण कर रहा है। चीन एलएसी के स्पष्टीकरण पर भारत के दावों को कभी नहीं मानेगें ये बात पूरी तरह तय है। इसी तथ्य के इर्द-गिर्द भारत को अपना कूटनीतिक चक्रव्यूह (Diplomatic Maze) तैयार करना होगा।
मौजूदा हालातों और तथ्य के आधार पर कहा जा सकता है कि दोनों पक्षों की ओर से रुख सख्त होने और सार्थक बातचीत की गुंजाइश बेहद कम ही है। इसी के चलते दोनों पक्ष सर्दियों के लिये कमर कस रहे हैं और पूरी संभावना है कि सर्द सर्दियों में भी सीमा सैन्य तनाव से गर्म रहेगी। पिछले साल जून में लद्दाख में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण गलवान घाटी (Galwan Valley) में घातक झड़पों के बाद से तनाव बहुत ज़्यादा कायम है, जब भारतीय और चीनी सेना की 40 सालों से ज़्यादा वक़्त के बाद सबसे भयानक मुठभेड़ हुई थी।
इसके तुरंत बाद सीमा वार्ता हुई और फरवरी में दोनों पक्षों के बीच विवादित इलाके में झील पैंगोंग त्सो के आसपास दोनों के ओर सैनिकों को हटाने के लिये एक समझौता हुआ। जिसके बाद जुलाई में गलवान घाटी और अगस्त में गोगरा में सैनिकों के वापसी हुई, हालांकि कई इलाकों में अभी सैन्य तनाव लगातार कायम है। हाल ही के ताजातरीन घटनाक्रम में अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर (Tawang Sector) में यांग्त्से के पास पीएलए और भारतीय सेना का आमना सामना हुआ। जहां भारतीय सेना ने कुछ चीनी सैनिकों को घंटों हिरासत में रखा और बाद में छोड़ दिया।
चीनी सरकार के मुखपत्र चाइना डेली ने इन खबरों को खारिज करते हुए एक चीनी सैन्य सूत्र के हवाले से कहा कि चीनी सैनिक नियमित गश्त कर रहे थे, लेकिन भारतीय सैनिकों ने उन्हें “बाधित” कर किया। चीनी सैनिकों ने जवाबी कार्रवाई को अंज़ाम दिया और अपना मिशन पूरा करके लौट आये।
चीनी सरकार लगातार दावा कर रही है कि वो सीमा पर तनाव कम करना चाहती है, लेकिन उसका ये रवैया ज़मीनी हकीकत से कोसों दूर दिख रहा है। भारत के साथ अपने तनाव और अमेरिका के साथ भारत के घनिष्ठ द्विपक्षीय संबंधों को लेकर उनमें काफी बैचेनी देखी जा रही है। हाल ही में बीजिंग का ब्लड़ प्रेशर उस वक़्त हाई हो गया, जब क्वाड देशों में मैरीटाइम ज़्वाइंट मिलिट्री एक्सरसाइज़ (Maritime Joint Military Exercise of Quad Nation) को अंज़ाम देकर एक ठोस संदेश चीनी नेतृत्व तक पहुँचा दिया।
चीन अब भूटान के रास्ते भारत को घेरने की कवायद में जुटा हुआ है। हाल ही में चीन और भूटान ने अपने सीमा विवादों को लेकर बातचीत में तेजी लाने के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये। भूटान को भारत के पिछले दरवाज़े के तौर पर देखा जाता है। ऐसे में ये समझौता ज्ञापन बड़े सैन्य और कूटनीतिक मायने खुद में समेटे हुए है। इन्हीं लक्षणों के चलते दोनों देशों को अपनी सीमा पर सशस्त्र गतिरोध के साथ रहना होगा। दूसरी ओर चीन को ये मानने की जरूरत है कि भारत के साथ संबंध सीमा पर शांति पर निर्भर करते हैं।
चीन के बारे में जनता की राय भारत में बहुत नकारात्मक है। द्विपक्षीय संबंधों में कोई भी प्रगति शांतिपूर्ण सीमा से ही गुजरेगी। साथ ही अन्य विकल्प लगभग बंद हैं। नई दिल्ली को सीमा के साथ चीन द्वारा किये जा रहे वित्तीय और तकनीकी घेराव से भी सावधान रहना होगा क्योंकि ये घेराव सीमा पर नहीं बल्कि सीधे देश अंदर वार करते है। फिलहाल इन देखते हुए कारगर कदम उठाने की भी जरूरत है। सीमा की घुसपैठ भारतीय सैनिक रोक लेगें लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था और तकनीकी क्षेत्र में बीजिंग का दखल रोकने के लिये मोदी सरकार को कई कारगर कदम उठाने होगें।