India-Greece Relations: दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (BRICS Summit) से लौटते वक्त प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 अगस्त को ग्रीस का दौरा किया। किसी भारतीय प्रधान मंत्री की ग्रीस की आखिरी यात्रा साल 1983 में हुई थी, जब प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने उस ग्रीस का दौरा किया था। ग्रीस पश्चिमी सभ्यता की जन्मभूमि माना जाता है। साल 1983 में ग्रीस की अगुवाई तत्कालीन प्रधान मंत्री एंड्रियास पापंड्रेउ (Andreas Papandreou) ने की थी। पापंड्रेउ पूर्व यूनानी प्रधान मंत्री जॉर्जियोस पापंड्रेउ के पुत्र होने के साथ साथ समाजवादी थे। इस तरह इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) और उनके बीच काफी वैचारिक समानतायें थीं लेकिन भारतीय और यूनानी अर्थव्यवस्थाओं की तत्कालीन वास्तविकताओं के चलते दोनों मुल्कों के बीच घनिष्ठ आर्थिक या राजनयिक संबंधों को बढ़ावा नहीं मिला। इसके अलावा ग्रीस नाटो का सदस्य था, जिससे भारत को कोसों दूर रखा गया था।
हालांकि एक मुद्दे पर दोनों देशों की स्थिति समान थी। ये साइप्रस से जुड़ी है जिसमें यूनानियों का बहुमत है लेकिन तुर्कों की भी बड़ी आबादी है। साल 1974 में तुर्की के हमले ने द्वीप को दो टुकड़ों में बांट दिया और संयुक्त राष्ट्र की पीस कीपिंग फोर्सेस की मदद से शांति बनाये रखी गयी। ग्रीस की तरह भारत भी साइप्रस के बंटवारे के ख़िलाफ़ था। पिछले लगभग पाँच दशकों में साइप्रस समस्या (Cyprus Problem) के समाधान के लिये कोई भी शांति की पहल कामयाब नहीं हो पायी है। ये दिलचस्प है कि पीएम मोदी (PM Modi) की अपने यूनानी समकक्ष क्यारीकोस मित्सोटाकिस के साथ बैठक के बाद आये भारत-ग्रीस संयुक्त वक्तव्य में साइप्रस मुद्दे का जिक्र नहीं किया गया। ऐसा शायद इसलिये है क्योंकि किसी एक वैश्विक मुद्दे का खासतौर से उल्लेख नहीं किया गया था।
भारत-ग्रीस संयुक्त वक्तव्य द्विपक्षीय संबंधों के लिये अहम दस्तावेज़ है। ये साफ करता है कि दोनों देशों के नेता संबंधों की गहराई और दायरे को बढ़ाना चाहते हैं क्योंकि उन्होंने ग्रीक-भारत द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक साझेदारी के स्तर पर बढ़ाने का फैसला लिया और राजनीति में द्विपक्षीय सहयोग को और विस्तारित करने पर सहमति ज़ाहिर की है। सुरक्षा और आर्थिक क्षेत्र ये वक्त पर लिया गया फैसला है क्योंकि साल 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद ग्रीक अर्थव्यवस्था जो लंबे समय तक मंदी की स्थिति में चली गयी थी, उसमें अब सुधार के संकेत साफ दिखाई दे रहे हैं। इसलिए वक्त आ गया है, जब दोनों देश ऐसे सहकारी संबंध बनाने की कोशिश कर सकते हैं जहां उनके पास औद्योगिक, सेवाओं और कृषि क्षेत्रों में अपनी-अपनी खास ताकत है।
ग्रीस के आर्थिक प्रशासक ग्रीक उद्यमियों के लिये भारतीय बाजार में मौजूद अवसरों से अच्छी तरह वाक़िफ है। पीएम मोदी की यात्रा से एक दिन बाद लिखे गये एक लेख में ग्रीस के आर्थिक कूटनीति और खुलेपन के विदेश मामलों के उप मंत्री कोस्टास फ्रैगोगिआनिस ने कहा कि भारत-ग्रीक आर्थिक संबंधों को मजबूत करना ग्रीस के लिये भी अहम था। उन्होंने आगे कहा कि, “…भारत ग्रीक उत्पादों और सेवाओं के लिये बड़े बाजार की अगुवाई करता है। असल में ग्रीक कंपनियां भारत की तकनीकी प्रगति, मौजूदा वर्कफोर्स और लोकल बाजार का फायदा उठाते हुए इसमें निवेश कर सकती हैं। जहां तक भारतीय कंपनियों के लिये ग्रीस की ओर देखने के सकारात्मक पहलुओं का सवाल है भारतीय कंपनियां ग्रीस में निवेश कर रही हैं, जिससे वो यूरोप के करीब आ रही हैं और साथ ही ग्रीक अर्थव्यवस्था भी मजबूत हो रही है।”
हालांकि ये इरादे काबिले तारीफ हैं, लेकिन इनका संचालन निजी क्षेत्र की ओर से किया जाना है, जो तब तक समस्याओं में घिरे रहेगें जब तक कि इसे दोनों सरकारों का पूरा समर्थन न मिले। ये देखना बाकी है कि वो 2030 तक कारोबार को दोगुना करने के लक्ष्य तक पहुंचने के लिये संबंधों को बढ़ाने को किस हद तक प्राथमिकता देंगे।
मोदी-एमआईत्सोटाकिस बातचीत में तीन बिंदुओं पर खास रौशनी डालने की दरकार है। पहला: संयुक्त वक्तव्य में कहा गया कि, “दो प्राचीन समुद्री यात्रा करने वाले देशों के नेताओं के तौर पर दीर्घकालिक समुद्री दृष्टिकोण के साथ उन्होंने स्वतंत्र, खुले और नियम आधारित भूमध्य सागर और इंडो-पैसिफिक के अपने नज़रिये को साझा किया।” समुद्री कानून, खासतौर से यूएनसीएलओएस के प्रावधान और अंतरराष्ट्रीय शांति, स्थिरता और सुरक्षा के लिये संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और नेविगेशन की आज़ादी के लिये पूर्ण सम्मान के साथ नियम-आधारित वैश्विक समुद्री व्यवस्था के पालन पर जोर दिया गया है। भारत दक्षिण चीन सागर में चीन के समुद्री नियमों के उल्लंघन को लेकर काफी चिंतित है क्योंकि ये अंतर्राष्ट्रीय खेल के मौजूदा नियमों से पैदा होने वाले उसके हितों पर किसी भी प्रतिबंध को लेकर उसके आक्रामक रुख का प्रतीक है। ग्रीस के लिये तुर्की के साथ उसके समुद्री विवाद लगातार चिंता की वज़ह बने हुए हैं। इसलिए इस मुद्दे पर भारत और ग्रीस के बीच हितों में समानता है। हाल के सालों में ही भारत ने जानबूझकर और लगातार अपनी समुद्री विरासत पर सतत ध्यान केंद्रित करना शुरू किया है। ये अच्छा है क्योंकि सदियों से भारतीय शासक जिनकी ताकत के केंद्र उत्तर में स्थित थे, महाद्वीपीय दृष्टिकोण रखते थे और समुद्र के अहमियत को नजरअंदाज करते थे। ये हजारों किलोमीटर के भारतीय तटीय इलाकों के बावजूद था, जो कि अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से घिरे होने के साथ प्रायद्वीपीय क्षेत्र हिंद महासागर में फैले हुए हैं।
दो: ग्रीस दुनिया के बड़े पर्यटन स्थलों में से एक है। ये खासतौर से यूरोपीय और अमेरिकियों के लिये भी सच है। हालांकि भारतीय पर्यटन उद्योग परिपक्व हो गया है, फिर भी ये इस बात से काफी कुछ सीख सकता है कि यूनानी अपने पर्यटन का मैनेजमेंट कैसे करते हैं।
तीन: ग्रीस यूरोपीय यूनियन का एन्ट्री गेट है। ये भारत समेत पूरे एशिया और अफ्रीका से अवैध प्रवासियों को आकर्षित करता है। इसे रेगुलेट करना होगा और रोकना होगा। साथ ही भारतीय पेशेवरों के आने से ग्रीस को काफी फायदा हो सकता है। इसलिये दोनों देशों को विचाराधीन ‘मोबिलिटी एंड माइग्रेशन पार्टनरशिप’ समझौते को अंतिम रूप देने को प्राथमिकता देनी चाहिये।
पीएम मोदी ने ग्रीस में अपनी बातचीत के दौरान भारत को ‘लोकतंत्र की जननी’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने कहा कि भारत और ग्रीस दोनों ”दुनिया की दो प्राचीन लोकतांत्रिक विचारधारायें” हैं। साफ है कि पीएम मोदी ने ये कहकर काफी विवेकशीलता का परिचय दिया।