न्यूज डेस्क (शाश्वत अहीर): गोरखपुर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले भाजपा सांसद रवि किशन (BJP MP Ravi Kishan) ने बीते शुक्रवार (22 जुलाई 2022) को कहा कि वो लोकसभा में जनसंख्या नियंत्रण पर एक निजी सदस्य विधेयक (Population Control Bill) पेश करेंगे। बता दे कि निजी सदस्य का विधेयक एक मंत्री के अलावा अन्य सांसद द्वारा पेश किया जाता है। सरकार के समर्थन के बिना विधेयक के कानून बनने की संभावना बहुत कम है। बता दे कि साल 1970 के बाद से अब तक संसद द्वारा कोई भी निजी सदस्य विधेयक पारित नहीं किया गया है।
जनसंख्या नियंत्रण पर बिल संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के अनुमान के एक दिन बाद आया है, जिसमें संभावना ज़ाहिर की गयी थी कि भारत अगले साल तक दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में चीन (China) को पीछे छोड़ सकता है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह (Union Minister Giriraj Singh) समेत कई भाजपा नेता भारत (India) में बढ़ती जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिये कानून लाने की मांग कर रहे हैं। हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Union Health Ministry) ने इस हफ़्ते की शुरुआत में कहा था कि वो ऐसे किसी प्रस्ताव पर विचार नहीं कर रहा है।
प्रस्तावित विधेयक का मकसद जोड़ों को दो से ज़्यादा बच्चों को जन्म देने से हतोत्साहित करना है। इसमें कहा गया है कि दो से ज़्यादा संतान वाले जोड़ों को सरकारी नौकरी और सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली विभिन्न सुविधाओं और सामानों पर सब्सिडी के लिये अपात्र बनाया दिया जायेगा। हालाँकि दो-बाल नीति (Two-Child Policy) को लगभग तीन दर्जन बार संसद में पेश की गयी है, लेकिन किसी भी सदन से इसे हरी झंडी नहीं मिली है।
जनसंख्या नियंत्रण विधेयक 2019, जिसे 2022 में वापस ले लिया गया था, ने प्रति जोड़े दो बच्चे की नीति पेश करने का प्रस्ताव रखा। विधेयक में शैक्षिक लाभ, गृह ऋण, बेहतर रोजगार के अवसर, मुफ्त स्वास्थ्य सेवा और कर कटौती के माध्यम से नीति को अपनाने को प्रोत्साहित करने का भी प्रस्ताव है।
सामाजिक प्रगति और विकास पर 1969 की घोषणा का अनुच्छेद 22, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा प्रस्ताव में अपनाया गया, ये सुनिश्चित करता है कि जोड़ों को अपने बच्चों की संख्या को स्वतंत्र रूप से और जिम्मेदारी से चुनने का अधिकार है।
खासतौर से बच्चों की संख्या को नियंत्रित और विनियमित करने की नीति अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक रोजगार के मामलों में समान अवसर) और अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा) जैसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।
बता दे कि दो-बाल नीति तलाकशुदा जोड़ों के अधिकारों के साथ-साथ इस्लाम के सिद्धांतों को भी ध्यान में नहीं रखती है। पहले संसद में पेश किये गये बिलों में इन बातों का अभाव था।
पिछले साल उत्तर प्रदेश विधि आयोग (Uttar Pradesh Law Commission) ने अपनी वेबसाइट पर जनसंख्या नियंत्रण पर एक मसौदा विधेयक साझा किया और जनता से सुझाव मांगे। मसौदा विधेयक के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में दो से ज़्यादा बच्चों वाले जोड़ों को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने या सरकारी नौकरियों के लिये आवेदन करने या किसी भी तरह की सब्सिडी हासिल करने की मंजूरी नहीं होगी।
इसी तरह का कदम साल 2017 में असम (Assam) विधानसभा में ‘असम की जनसंख्या और महिला अधिकारिता नीति’ के साथ उठाया गया था। जिसमें कहा गया है कि दो से ज़्यादा बच्चे वाले लोग सरकारी नौकरी के लिये पात्र नहीं होंगे।