वित्त वर्ष 2020-21 का बजट बेहद व्यापक है, लेकिन बड़े स्तर पर ये नई बोतल में पुरानी शराब की तरह ही है। बजट अपनी शुरूआती झलक से ही विरोधाभासी और फर्जी लग रहा है। दावा किया गया कि भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारिक संरचना मजबूत है और साथ ही मंहगाई दर भी काबू में है। आने वाले वक़्त ये देखना दिलचस्प रहेगा कि माननीय वित्त मंत्री बयान दे सकती है कि, बेरहम इंस्पेक्टर राज को खत्म कर दिया गया है। लेकिन नंगी सच्चाई है कि ये पहले की तरह काफी तरतीब और कानूनी ढ़ंग से चल रहा है। ये बजट भाषण चुनावी घोषणा पत्र की तरह लग रहा है। जहाँ काम करने के वायदे तो बहुत है लेकिन उन कामों और वायदों को पूरा कैसे किया जायेगा, ये विज़न गायब है। हालात ऐसे है कि केन्द्र सरकार के पास सशस्त्र बलों को तनख्वाह देने तक के लिए पैसा नहीं है।
इससे ज़्यादा भयावह तस्वीर और कुछ नहीं हो सकती। हमारे सशस्त्र बलों के जवान सीमा पार अपराधों और तस्करी रोकने का काम करते है साथ ही देश विरोधी कार्रवाइयों पर भी रोक लगाने के लिए जूझते रहते है, इन सब कामों को जव़ान अन्ज़ाम देते है वो भी बिना तनख्वाह और दूसरे भत्तों के। निस्वार्थ भाव से वे विपरीत हालातों में खुद को राष्ट्र के नाम अपना दिन रात समर्पित कर देते है। पिछले साल सशस्त्र बलों को लगभग 6000 करोड़ रूपये (800 मिलियन डॉलर) का बजट स्वीकृत किया गया था। कहां गया वो पैसा ? लगता है वो सारा पैसा व्यवस्था में बैठी जोकों ने चूस लिया है। जिससे सरकारी ख़जाना खाली हो रहा है। हालात तो और भी ज़्यादा बदतर हो जाते है, जब शहीदों और सशस्त्र बलों के नाम पर वोट मांगा जाता है। पिछले चार महीनों में ये दूसरा मौका देखने को मिल रहा है, जब देश में नगदी संकट आया है। उम्मीद करते है कि सशस्त्र बल, एयर इंडिया और बीएसएनएल की राह पर नहीं चल रहे, नहीं तो सरकार एक दिन घोषणा करेगी कि, इंडियन फोर्सेस को एफडीआई योजना के तहत बेचा जा रहा है। ये खतरे की घंटी है। ऐसा लग रहा है कि व्यवस्था के कीचड़ में सनी जोकें, अपनी आदत से मजबूर हो देश तोड़ने में लगी है। ये अपने स्वार्थों को पूरा करने के लिए, देश का सौदा करने में नहीं हिचकते। मानसिक तौर पर अंधी देश की गरीब जनता इसे ही विकास के तौर पर स्वीकार करती है। जागिये मुल्क के लिए, जागिये आने वाली नस्लों के लिए, सभी के लिए एक ही मंत्र होना चाहिए राष्ट्र सर्वप्रथम।