एक किसान (Farmer) की पीड़ा…
आपने अपने जान-पहचान के सर्किल में कभी आत्महत्याओं वाले केस पढ़े या देखे हैं?. मेरा मानना है कि नब्बे प्रतिशत आत्महत्याओं के पीछे घरेलू कारण होते हैं। जैसे पति/पत्नी, माता/पिता या सन्तान ने कुछ जहर बुझे शब्द कह दिए जो सहन नहीं हुए और झूल गए गले में दुपट्टा डाल कर। असल में यह इन्सान का मनोविज्ञान है कि उसे गैरों के कहे से ज्यादा अपनों का कहा चुभता है।
बेशक मानता हूं कि गालियों वाली पोस्ट आपको बुरी लगती है लेकिन जब अपने ही देशद्रोही, आतंकी और जहर की खेती करने वाले और ना जाने क्या क्या कह रहे हैं तो मुझे क्यों नहीं बुरा लगेगा।
हां मानता हूं कि किसानों की भीड़ में असामाजिक तत्व (Anti-social elements) भी हैं लेकिन क्या उसके लिए आप सबको एक लाइन में खड़े कर देंगे। हर आंदोलन में असामाजिक तत्व होते हैं जो मौका तलाशते हैं लेकिन उन पर कार्यवाही करने की बजाय आप अपनों को ही दूर करेंगे?.
क्या अंतर रह जाएगा आपमें और उनमें?.
आपने पहले आंदोलन का विरोध किया, फिर प्रदेशों का नाम ले लेकर गालियां देनी शुरू कर दीं, फिर आपने जातियों का नाम ले लेकर गालियां दीं और अब आप कह रहे हैं कि किसान कौनसा एहसान करता है यदि वह खेती करता है तो।
एक टिप्पणी कम से कम बीस अपनों की वाल पर पढ़ चुका हूं कि हमें तो मुफ्त में किसी किसान ने आजतक अनाज नहीं दिया फिर वो काहे का अन्नदाता? हमारे अन्नदाता तो वो उद्योगपति हैं जिन्होंने फैक्ट्रियां लगाकर हमें रोजगार दिया है…
मेरे पढ़े लिखे भाईयों, मुझे एक बात बताओ कि आपको मुफ्त में चाहिए ही क्यों। हम तो कर्मप्रधान संस्कृति के मानने वाले लोग हैं। हम तो श्रीमद्भगवद्गीता (Srimad Bhagavad Gita) के मानने वाले लोग हैं। फिर ये मुफ्त में हर चीज प्राप्त करने की भावना आपमें कहां से आती है भाई।
और कौन-से किसान ने आपसे आकर कहा है कि आप उसे अन्नदाता कहें।
आपकी कही बात को ही बड़ी करता हूं कि बाकी लोग जैसे दुकानदार, एक्सपोर्टर, होटल मालिक आदि अपना काम करते हैं वैसे ही किसान खेती करता है ताकि अपनी उपज को बेचकर पैसा कमा सके। लेकिन मुझे एक बात बताओ कि क्या किसान के अलावा कोई और ऐसा है जिसके उत्पाद का मूल्य वह स्वयं निर्धारित ना करता हो। क्या आपमें से कोई मुझे प्रति क्विंटल गेहूं, चावल या गन्ने का उत्पादन मूल्य बता सकता है।
आपसे किसने कहा कि किसान को बिजली मुफ्त मिलती है?
आपसे किसने कहा कि ऋण लेकर वापिस नहीं करना पड़ता?
मतलब कुछ भी लिख दोगे…
ये जो जहर जहर चिल्ला रहे हो पता है कि ये कैसे पहुंचा खेतों में?.
ये जो इतनी बड़ी जनसंख्या होते हुए भी एफसीआई के गोदाम भरे पड़े हैं अनाज से पता है कि ये क्यों भरे पड़े हैं?.
ये जो अपनी मनमर्जी से प्राइवेट व्यापारी जिंसों को खरीदकर तीन से चार गुना मूल्य पर पैक करके आपकी रसोई तक पहुंचा रहे हैं पता है इसके पीछे का खेल क्या है?
किसान के खेत से आपकी रसोई तक चीजों में क्या क्या मिलावट की जाती है पता है आपको?
आपको घंटा नहीं पता…
आप सिर्फ किसी मठाधीश की पोस्ट में लिखे ज्ञान को वेदवाक्य समझकर इधर उधर चिपकाते फिर रहे हो और अपनों को भी दूर कर रहे हो…
आपको दिक्कत है कि किसानों के पास बड़ी बड़ी गाडियां क्यों हैं। बड़ी बड़ी हॉर्सपावर वाले ट्रैक्टर क्यों हैं।
“क्यों हैं” की बजाय कभी इस पर गौर किया कि “कैसे” हैं?.
आंकड़े कहते हैं कि आज भी देश की जनसंख्या का साठ से सत्तर प्रतिशत भाग कृषि क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। कभी सोचा है कि आप जिस कारोबार या नौकरी के घमंड में ये सब जहर भरी बातें लिख रहे हो आपके कारोबार या आपकी आय का स्रोत भी कहीं ना कहीं उन्हीं साठ सत्तर प्रतिशत लोगों से जुड़ा हुआ है।
आज एक छोटे से छोटे जिले में भी लगभग पांच सौ दोपहिया वाहन हर माह बिकते हैं। हर जिले में माचिस से लेकर ट्रक तक हर चीज बिक रही है। क्या इनके खरीददार सिर्फ वही तीस प्रतिशत लोग हैं जो गैर कृषक हैं?.
आपकी आय बढ़ी है, आपकी सैलरी या आपका कारोबार बढ़ा है क्योंकि आपके उत्पाद का साठ सत्तर प्रतिशत खरीददार वही वर्ग है जो आपको देशद्रोही नजर आ रहा है।
कोरोना काल में जहां अच्छे अच्छे देश घुटनों पर आ गये। कितने लोगों की आय प्रभावित हुई। कितने ही काम-धंधे प्रभावित हुए वहां आप टिके रहे क्योंकि आपकी एक बड़ी जनसंख्या गांवों में निवास करती है….
बाकी, वीडियो में देख लो कि कितना जहर डालते हैं हम अपने खेतों में। लगभग पैंतीस से चालीस टन गाय के गोबर वाली खाद प्रति फसल के हिसाब से मेरे गांव का हर किसान अपने खेतों में डालता है। सर्दियों में गायों के नीचे गन्ने की पत्तियों की मोटी परत डालते हैं जिसमें उनका सारा गोबर और मूत्र इकट्ठा हो जाता है, प्रति सप्ताह उसे भी निकालकर खेतों में ही डाल देते हैं। खेतों के चारों तरफ खड़े पेड़ों की पत्तियां भी गलकर एक अच्छा कम्पोस्ट खाद बन जाती हैं। मटर, सरसों, मैंथा, धान, गेहूं और गन्ना इत्यादि की जड़ों को भी खेत में ही जोत देते हैं जो अपने आप में एक बहुत अच्छा खाद हैं। और हां, पराली हमारे यहां नहीं जलाई जाती है क्योंकि हमारी पराली दस बारह हजार रुपए प्रति एकड़ बिक जाती है।
बेहतर है कि ये शाब्दिक जहर फैलाने से पहले खेती को पास से देखें, महसूस करें, आत्मसात करें और फिर उस पर कुछ लिखें…
आपकी नौकरी/कारोबार आपके लिए काम हो सकती है, हमारे लिए हमारी खेती हमारा धर्म है!..
साभार – विकास चौधरी