नई दिल्ली (यर्थाथ गोस्वामी): हिन्दू सनातन मान्यताओं में आश्विन माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi 2020) के नाम से जाना गया है। इस साल 13 सितंबर इंदिरा एकादशी है। पितृपक्ष में पड़ने वाली इस एकादशी को मोक्षदायिनी पितरों के लिए माना गया है। अपने पितरों के निमित्त इंदिरा एकादशी व्रत का पालन करने से पितृ देवताओं को बैकुण्ठ की प्राप्ति होती है। यदि जातक इस व्रत का पालन पूरी शास्त्रीय विधान से करते तो उनके पितरों को यम की त्रास नहीं सताती है। साथ ही इसका महात्मय इतना विशाल है कि भक्तों की सभी मनोवांछित कामनाएं पूर्ण होने के साथ उन पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं। इस व्रत का महात्मय स्वयं भगवान योगेश्वर श्री कृष्ण (Lord Yogeshwar Shri Krishna) ने धर्मराज युद्धिष्ठिर को बताया था। विशेष बात यह है कि इस व्रत को अगले दिन सूर्योदय के बाद यानी द्वादशी के दिन पारायण मुहूर्त में ही खोला जाता हैं। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गई तो एकादशी व्रत का पारायण सूर्योदय के बाद माना जाता है।
इंदिरा एकादशी पूजन मूहूर्त
एकादशी का प्रारम्भ: 13 सितंबर प्रात:काल 04 बजकर 13 मिनट पर
एकादशी का समापन: 14 सितंबर प्रात:काल 03 बजकर 16 मिनट पर
व्रत का पारायण समय: 14 सितंबर को अपराह्न 12 बजकर 59 मिनट से संध्या 03 बजकर 27 मिनट तक
इंदिरा एकादशी व्रत विधि और नियम
- भोर में जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होकर सूर्य देवता को ताम्र पात्र से अर्घ्य दें। भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप का स्मरण करके (Remember the Shaligram form of Lord Vishnu) इंदिरा एकादशी व्रत एवं पूजा का संकल्प लें। इसके बाद पितरों का श्राद्ध करें। ॐ वासुदेवाय नमः मंत्र का उच्चारण करते हुए माँ तुलसी की 11 बार प्रदक्षिणा करें। भगवान विष्णु को पीले रंग के फूल और पीताबंर अर्पित करें।
- सन्ध्या में तुलसी के सामने गाय के घी की दीये जलाये। खीर बनाकर तुलसी के पत्ते डालकर भगवान विष्णु का भोग लगाये। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें (Recite Vishnu Sahastranam)। भगवान को अर्पित वस्त्र, भोजन, फल और धन गरीबों में वितरित कर दे। पीपल के वृक्ष पर जल अर्पित करें। पितरों द्वारा किए गलत कर्मों के लिए भगवान से क्षमा याचना करे।
- उड़द की दाल, उरद के बड़े और पूड़ियां भोजन में बनायें। ध्यान रखें कि इस दिन चावल का प्रयोग निषिद्ध है। भोजन बनाने के उपरान्त कंडा जलाकर उस पर एक पूड़ी रखकर उसमें उरद की दाल और उरद के बड़े को होम करे। इस दौरान अपने पास स्वच्छ जल से भरा पात्र रखें। दोपहर में श्रीमद् भगवद्गीता का पाठ करें।
- अगर किसी वजह से जातक ये व्रत नहीं कर सकते है तो इस दिन भगवान विष्णु की मानस भक्ति करें। मन को सात्विक रखे मिथ्या वचन, परनिंदा, असत्य वाचन, क्रोध और वाद-विवाद आदि से बचें।
इन मंत्रों का करें जाप
- नमोस्त्वनन्ताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे।
सहस्त्र नाम्ने पुरुषायशाश्वते, सहस्त्रकोटी युग धरिणे नम:।।
- ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
इंदिरा एकादशी की व्रत कथा
इंद्रसेन नामक राजा भगवान विष्णु अनन्य भक्त था। उसके शासन में समस्त प्रजा प्रसन्नता से जीवनयापन कर रही थी। एक बार उनके राज दरबार में देवर्षि नारद नारद का आगमन हुआ। इंद्रसेन ने उनका यथोचित आदर सम्मान करते हुए उनके आगमन का कारण पूछा। नारद ने बताया कि मैनें यमलोक में तुम्हारे पिता को नाना प्रकार की यातनायें सहते देखा है। एकादशी व्रत के खण्डित होने के कारण वे कुंभीपाक सहित कई नर्कों के भागी हो गये है। इसलिए उन्होनें आपके लिए ये संदेश भिजवाया है कि आप उनकी मुक्ति और मोक्ष के लिए इंदिरा एकादशी का व्रत करें। नारद के ये वचन सुनकर उन्होनें उनसे व्रत से जुड़े सभी विधान जानें। राजा ने आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इस व्रत का पूरे मन से पालन किया। जिसके बाद उनके पिता को यमलोक से मुक्ति मिली और उन्हें भगवान विष्णु के पार्षद अपने साथ बैकुंठ लोक ले गये।