इतिहास के खून भरे पन्ने को पलटा जाये तो पाकिस्तान में राजनीतिक नेताओं, सैन्य तानाशाहों और निरंकुशों की हत्या कोई नयी बात नहीं है। सौभाग्य से पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान (Imran Khan) जिन्हें अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले प्रधान मंत्री का पद छोड़ना पड़ा था, 3 नवंबर को गुजरांवाला में हत्या से बच गये, जब एक बंदूकधारी ने उनके पैर पर गोली मारकर उन्हें घायल कर।
पाकिस्तान के बावजूद में आने के बाद से सिलसिलेवार तरीके से देखा जाये तो 16 अक्टूबर 1951 पाकिस्तान के इतिहास में बड़ी तारीख के तौर पर सामने आता है, जब देश के पहले प्रधान मंत्री लियाकत अली खान (Liaquat Ali Khan) की रावलपिंडी (Rawalpindi) में सार्वजनिक रैली के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी, जिसने पाकिस्तान की नाजुक लोकतांत्रिक संस्था की बुनियाद को तबाह कर दिया। नयनवेले मुल्क में 1951 में चली गोलियां पहली बड़ी हत्या की वज़ह बनीं, लेकिन बदकिस्मती से ये आखिरी वारदात नहीं थी क्योंकि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान उन राजनेताओं की लंबी लिस्ट में शामिल होते होते बच गये।
ऐसी गोलीबारी और आतंकी हमले जो सात दशकों से ज़्यादा समय से पाकिस्तान में लगातार जारी हैं। इन हमलों ने कई राजनेताओं की जान ले ली, जिनमें पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो (Benazir Bhutto), उनके भाई मुर्तजा भुट्टो, गुजरात चौधरी जहूर इलाही, पंजाब के पूर्व गृह मंत्री शुजा खानजादा (Shuja Khanzada), शाहबाज भट्टी के साथ साथ पूर्व मंत्रियों समेत कई अन्य अल्पसंख्यक नेता शामिल है।
इसी फेहरिस्त में बेनजीर की 27 दिसंबर 2007 को रावलपिंडी (Rawalpindi) में एक चुनावी रैली खत्म करने के बाद आत्मघाती हमलावर के जरिये उनकी हत्या कर दी गयी थी। 20 सितंबर 1996 को कराची में उनके घर के पास हुई पुलिस मुठभेड़ में उनके भाई और छह अन्य लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गयी। 17 अगस्त, 1988 को सैन्य तानाशाह और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक की विमान दुर्घटना में मौत हो गयी।
इस बीच इमरान खान को गोली मारने के तुरंत बाद पंजाब पुलिस (Punjab Police) की गिरफ्त में आये संदिग्ध ने कबूल किया है कि उसने पीटीआई प्रमुख को इसलिये गोली मारी क्योंकि इमरान देश को “गुमराह” कर रहे थे। संदिग्ध ने ये भी खुलासा किया कि वो ऐसा तब से करना चाहता था जब उन्होनें लाहौर छोड़ दिया और अपना लंबा मार्च शुरू किया। उसने इस बात से भी इनकार किया कि उसके पीछे उसके अलावा कोई और भी था।
पीटीआई पार्टी महासचिव असद उमर ने 3 नवंबर को दावा किया कि अध्यक्ष इमरान खान को तीन लोगों पर शक है, उन लोगों में प्रधान मंत्री शहबाज शरीफ, आंतरिक मंत्री राणा सनाउल्लाह और सैन्य अधिकारी मेजर जनरल फैसल शामिल है। उनका दावा है कि इन्हीं तीन लोगों ने मिलकर उनकी हत्या की स्क्रिप्ट लिखी। इमरान खान ने आगे दावा किया कि उनके पास पहले से ही जानकारी थी कि ये लोग हत्या की कोशिश में शामिल हो सकते हैं। उमर ने अपने वीडियो बयान के दौरान इसका खुलासा किया। पीटीआई अध्यक्ष के हवाले से उमर ने मांग की कि इन तीनों लोगों को उनके पद से हटाया जाना चाहिए और अगर ऐसा नहीं होता है तो उनकी पार्टी देशव्यापी विरोध प्रदर्शन करेगी क्योंकि पाकिस्तान को अब इस तरह से नहीं चलाया जा सकता।
गौरतलब है कि पाकिस्तान के 75 साल के इतिहास में पहली बार पेशावर कोर कमांडर मेजर जनरल फैसल (Peshawar Corps Commander Major General Faisal) के खिलाफ इमरान खान की हत्या के प्रयास में हाथ होने को लेकर उनके घर के बाहर भारी विरोध प्रदर्शन हुआ था। ये असल में परेशान करने वाला है और इसे पड़ोसी मुल्क के भविष्य के लिये शुभ संकेत नहीं माना जा सकता है। ये सभी लक्षण तानाशाही और अराजकता की राह की ओर जाते दिखते है।
इस बीच 3 नवंबर को अमेरिका ने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर हमले की निंदा की और कहा कि राजनीति में हिंसा का कोई जगह नहीं है और अमेरिका लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण पाकिस्तान के लिये प्रतिबद्ध है। इसके अलावा अपने आधिकारिक बयान में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन (Antony Blinken) ने हत्या के प्रयास की निंदा की और इमरान खान और अन्य सभी घायलों के जल्द ही ठीक होने की कामना की।
दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना ने गोलीबारी की वारदात की जमकर मजम्मत की और दावा किया कि सेना ने खोयी हुई कीमती जिंदगी और इमरान खान के जल्द ठीक होने के लिये दुआ की है। हालांकि ये बहुत कम संभावना है कि इमरान खान पर हत्या की कोशिश के दाग पाक सेना पर ना पड़े क्योंकि
i) इमरान खान अपने शासनकाल के दौरान लगातार पाक सेना और आईएसआई (ISI) की आंखों की किरकिरी बने रहे। बाद के सालों में आईएसआई प्रमुख की नियुक्ति को लेकर सेना प्रमुख जनरल बाजवा के साथ उनका मतभेद हो गया था।
ii) पाकिस्तान के इतिहास में आईएसआई और सेना हमेशा महत्वाकांक्षी रही हैं और राजनीतिक तंत्र के अंदरूनी मामलों में इन दोनों संस्थानों का काफी दखल रहा है। कई मौकों पर इन दोनों संस्थानों ने तख्तापलट किया या फिर बिना खूनखराबा किये सत्ता हथिया ली।
iii) अन्तर्राष्ट्रीय कूटनीतिक जगत में कहा जाता है कि पाकिस्तान का वजूद अल्लाह, मुल्ला और आर्मी के हाथों में है। जम्हूरियत जैसे लफ़्ज इस्लामाबाद में सिर्फ माखौल के लिये इस्तेमाल किये जाते है। विदेशों में पाकिस्तानी सेना और आईएसआई की विश्वसनीयता निल बट्टे सन्नाटा है, क्योंकि ये दोनों ही स्ट्रैटजिक और इंटेलीजेंस ऑप्रेशंस (Strategic and Intelligence Operations) से ज़्यादा पॉलिटिकल ड्रामेबाज़ी करने में यकीन रखती है। दोनों के पहचान भ्रष्ट, नापाक और घरेलू आतंकियों को शरण देने के लिये भी जानी जाती है। इसके आगे जाकर ये दोनों राजनीतिक विरोधियों की हत्या करवाती है। साथ ही दोनों लंबे समय से भारत और अफगानिस्तान में सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने का काम करती रही है।
हाल ही में कथित गलत पहचान के लिये केन्या में पाकिस्तानी पत्रकार अरशद शरीफ (Arshad Sharif) की रहस्यमयी निर्मम हत्या काफी सुर्खियां बटोरी थी। पत्रकार अरशद शरीफ को पाकिस्तान से भागने और उसकी हत्या करवाने को लेकर जनरल बाज़वा का नाम कथित तौर पर सामने आ रहा है। मृतक पत्रकार को इमरान खान का काफी करीबी माना जाता था।
इसलिए दूसरे शब्दों में सेना और आईएसआई के लिये 3 नवंबर को इमरान की हत्या के प्रयास के मामले में अपनी कथित साजिश से खुद को बाहर निकालना बेहद मुश्किल होगा। इस बीच आगे और भी सनसनीखेज खुलासे हो सकते है, जो कि इस मामले को ज़्यादा गंभीर बना सकते है। पाकिस्तान का सियासी गलियारा निश्चित राजनीतिक उथल-पुथल वाली फिसलन से भरा हुआ है, ये फिसलन और धुंध शायद ही कभी छंटे असलियत से तो पाकिस्तानी आव़ाम हमेशा महरूम रहेगी।