खाली बैठने से Marriage भली… कोरोना लॉकडाउन के दौरान शुरू हुआ ये Trend

शादी (Marriage) करानेवाली बैबसाइटों ने बताया है कि कोरोना जनित लाक-डाऊन के बाद विवाहेच्छुक बालक-बालिकाओं का ट्रेफिक वैबसाइटों पर तेजी से बढ़ गया।

बैठे से बेगार भली के बजाय बंदा बैठे से शादी भली टाइप कहावत पर अमल करने में जुट गया है। लोग शादी कराने में बिजी हो रहे हैं। शादी कराने में बहुत समय लगता है औऱ फिर की हुई शादी से निपटने में बहुत वक्त लगता है। पूरी जिंदगी ही निकल जाती है, यूं समझो।

कोरोना-काल में गांवों के लिए लिए कुछ अच्छी खबरें आ रही हैं। शहरी बालिकाओं को अब गांव का महत्व पता चल रहा है। शहरी बालिकाओं के घऱवालों को अब गांववाले लड़के ज्यादा बेहतर दिखायी देने लग गये हैं। खबरें चल रही हैं कि शहरों में लाक-डाऊन के कारण सब्जियां नहीं हैं, दूध नहीं है। गांवों की बहुत याद आ रही है लोगों को। गांव-जड़ों की याद आदमी को संकट के वक्त आती है। अच्छे दिनों में भी आदमी अगर गांव देहात को याद कर ले, तो सबके लिए बेहतर रहेगा।

इधर कुछ सकारात्मक खबरें मिल रही हैं भारतीय गांवों से। महाराष्ट्र के एक गांव के विवाह योग्य नौजवान ने एक अखबार को बताया-अब गांव वाले दूल्हे डिमांड में आ गये हैं।

मुझे विवाह योग्य बालिका के माता-पिता के परस्पर संवाद कुछ यूं सुनायी दिया-

संदीप है अमेरिका में, उसकी तरफ से आफर आया है, अपनी पिंकी के लिए।

छोड़ो अमेरिका (America) बहुत बैकवर्ड देश है मेडिकल के मामले में, देखा नहीं कोरोना का इलाज ढंग से ना हो  पा रहा है अमेरिका में क। अपनी बेटी पिछड़े इलाके में ना ब्याहेंगे।

ओके, प्रदीप सैटल्ड है इटली (Italy) में, उसकी बुआ भी पिंकी के बारे में पूछताछ कर रही थी।

छोड़ो इटली में कोरोना ने जो हाल किया है, उसे देखकर तो टिकऊपाड़े के अस्पताल भी बहुत बेहतर लग रहे हैं। इटली  भी बैकवर्ड है मेडिकल के मामले में। ना हमें ना देनी अपनी बेटी इटली में।

सुनो, फ्रांस (France) में गौरव है, उसकी मां ने भी दिलचस्पी दिखायी है अपनी पिंकी में।

हुंह, फ्रांस का हाल देखा है अब, ना बाबा ना।

ओके तो स्पेन (Spain) के रमेश के रिश्ते पर तो गौर कर  लो, अच्छा भला सैटल्ड है, स्पेन में।

ना बाबा ना, स्पेन की खबरें ना देखीं तुमने। कोरोना का इलाज वहां से बेहतर तो अपने गाजियाबाद में हो रहा है।

अच्छा झुमरीखेड़ा से सोबरनप्रसाद का आफर भी आया है, बाप के खेत हैं, आठ भैंस हैं। बस दिक्कत यह है कि झुमरीखेड़ा शहर से थोड़ा दूर है। मतलब शहर से अस्सी किलोमीटर अंदर जाकर पचास किलोमीटर कच्ची सड़क पर सफर करके गांव झुमरीखेड़ा आता है।

सुनो, झुमरीखेड़ा का आफर सही है। बल्कि शहर से पांच सौ किलोमीटर दूर का कोई गांव हो, तो वह और भी अच्छा रहेगा। कोरोना से वही इलाके सेफ हैं, जहां कोई आसानी से ना पहुंचता। देखो हमारी बिटिया के गेंहूं वगैरह खेत में हो जायेगा, दूध दही भी घर की भैंसें दे देंगी। शहरों का हाल देख लो लाकडाऊन में फंस गये, तो सात दिन दूध ना मिलने का और दस दिनों तक सब्जी ना मिलने की।

ओके, तो फिर मैं सोबरनप्रसादजी को हां कह देती हूं।

हा जी अपनी पिंकी जितनी खुश झुमरीखेड़ा में रहेगी, उतनी न्यूयार्क या रोम में ना रह पायेगी।

झुमरीखेड़ा ने न्यूयार्क को पीट दिया है जी।

साभार – आलोक पुराणिक

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