जाम कथा Afro Ghaziabadi नस्ल
विकास का मतलब क्या-धुआं!
स्पेशल विकास (Special Development) का क्या मतलब-जी जब पोल्यूशन मास्क हर महिला पुरुष की ड्रेस का हिस्सा हो जाये। जब महिलाएं लिपस्टिक के शेड के साथ पोल्यूशन मास्क का शेड भी मैच करें, स्पेशल विकास माना जायेगा। जब पुरुष सूट टाई के रंग के साथ पोल्यूशन मास्क का रंग भी मैच करे, तो मानना चाहिए विकास इतना घनघोर हुआ कि हर बंदे की नाक के ऊपर उतर आया है। स्पेशल विकास तब मानना चाहिए जब तमाम किटी पार्टियों में डिबेट यह चल निकले-कि मिसेज गुप्ता में कतई ड्रेस सेंस नहीं है-बताओ मैरुन साड़ी के ऊपर पिंक पोल्यूशन मास्क पहनकर आ गयीं। मिस्टर गुप्ता के ड्रेस सेंस की दाद देनी होगी, पोल्यूशन मास्क ठीक उसी कलर का है, जिस कलर की उनकी टाई है।
परम विकास का मतलब क्या-छोटे बच्चे पोल्यूशन मास्क पहनकर स्कूल जायें।
सुपर परम विकास का मतलब क्या-बच्चा गर्भ से निकलकर मां को डांटे-मां इतनी सिगरेट क्यों पीती हो कि अंदर तक दम घुटता है।
मां क्या करे, सिवाय यह जवाब देने के-बेटा चालीस सिगरेट तो फ्री में हरेक को मुहैया करायी जाती हैं दिल्ली में, हरेक को पीनी पड़ती हैं।
विकास का लेवल यह हो लिया है कि गर्भस्थ शिशु तक को धूम्रपान मुफ्त में उपलब्ध है।
विकास ऐसा मचा हुआ है कि पब्लिक का दम घुट रहा है। पर पब्लिक भी वीर है। चेहरे पर पोल्यूशन मास्क लगाकर पटाखे चलाती है, पोल्यूशन मास्क (Pollution mask) लगाकर पोल्यूशन फैलाने में कतई ना हिचकती। विकास मचा हुआ है, पोल्यूशन मास्क लगा हुआ है। ऐसे मास्कवादी माहौल में कतिपय जाम कथाएं इस प्रकार हैं-
जाम कथा-
एफ्रो-गाजियाबादी नस्ल
एक समय की बात है कि समाजशास्त्री, नृतत्वशास्त्री (Anthropologist) शोध करने को निकले। दिल्ली के पास गाजियाबाद नामक नगर में उन्होने कुछ खास किस्म के चेहरे वाले बंदे दिखे, जो शक्ल-भेष भूषा से अफ्रीकन लग रहे थे, पर गालियां खालिस देसी दे रहे थे। नृतत्वशास्त्रियों ने पूछा-यह कैसे संभव है कि आपके चेहरे से अफ्रीका दिख रहा है पर गालियों से शुद्ध भारतीयता झलक रही है। कैसे, इस शोध पर तो मुझे नोबल पुरस्कार मिल सकता है।
चेहरे से अफ्रीकन और गालियों के हिसाब से गाजियाबादी बंदे ने बताया-बहुत पहले करीब पचास साल पहले मैं दस साल के बच्चे के तौर पर इंडिया टूर पर आया था। एक बार दिल्ली हरिद्वार रूट पर लगे जाम में हमारे परिवार की कार फंस गयी। इतनी देर तक फंसी रही, इतनी देर तक फंसी रही कि मैं दस साल से पचास साल का हो गया। मेरे मां पिता यहीं निपट लिये। सामने शमशान में उन्हे निपटा दिया। फिर मेरा मन यहीं लग गया । यहां गालियां बहुत ही इन्नोवेटिव होती हैं। यहां के खाने और गालियां-दोनों में ज्यादा स्वाद किनमें है, यह मैं तय ना कर पाता। मेरा मन यहीं लग गया है। सो मैं अब यहीं का हूं-गोबाला होंबारा गाजियाबादी।
नृतत्वशास्त्रियों ने एक नयी नस्ल खोज ली है-एफ्रो-गाजियाबादी। खोजक नृतत्वशास्त्री को अपने नोबल पुरस्कार का इंतजार है।
साभार- आलोक पुराणिक
Photo Courtesy: BBC