ठीक आज के ही दिन 76 साल पहले Japan ने देखा था तबाही और मौत का मंज़र

9 अगस्त 1945 के उस भयानक दिन की वो रोज की तरह आम थी। किसान अपने खेतों की ओर जा रहे थे। हंसता खेलता बचपन बाग बगीचे में खिलखिला रहा था। सभी अपनी रोजाना के कामों में व्यस्त थे। फिर कुछ भयानक हुआ कि मानों नरक धरती पर उतर आया हो। मासूम बपचन आग की लपेट में जल रहा था। फसलों के साथ-साथ इंसानियत राख में तब्दील हो गयी। इस भयानक मंजर ने जापान/निप्पॉन (Japan/Nippon) के इतिहास बदल के रख दिया।

नागासाकी का आसमान बॉम्बर की आवाज़ों से गूंज उठा। अचानक चिडियों के चहाचहाहट चीखों के मातम में तब्दील हो गयी। जापानी समय के मुताबिक भरी दुपहरी 11:02 बजे आसमान में मशरूम के बादल नजर आये। अमेरिकी बमवर्षकों (American Bombers) ने एक फिर से एशियाई ताकत जापान पर हमला कर दिया। इस बार निशाने पर नागासाकी था। ठीक तीन पहले कुछ इसी तरह की तबाही का गवाह हिरोशिमा बना जो कि परमाणु बम की तबाही झेल चुका था। नागासाकी पर गिराये परमाणु बम का  कोड-नाम ‘फैट मैन’ था। इस बम हमले के बाद द्वितीय विश्व युद्ध में जापान ने बिना शर्त आत्मसमर्पण किया। तबाही से निकली तस्वीरें ने इंसानियत के रहनुमाओं को झकझोर कर रखा दिया।

दस्तावेज़ों के मुताबिक नागासाकी में शुरुआती विस्फोट से कम से कम 70,000 लोग मारे गये जबकि बाद में रेडिएशन से जुड़ी बीमारियों से लगभग 65,000 और लोग भी मारे गये। मैनहट्टन परियोजना के ऊर्जा विभाग अनुसार कैंसर और अन्य दीर्घकालिक प्रभावों (long term effects) के चलते इस घटना के बाद पांच सालों के दौरान मरने वालों की कुल तादाद 200,000 तक पहुंची या उससे भी ज़्यादा भी हो सकती है।

जो लोग बम विस्फोटों में बच गये उन्हें 'हिबाकुशा' के नाम से जाना गया। हिबाकुशा का मतलब है बम हमले से प्रभावित शख्स। परमाणु बम धमाके से बचे लोगों को गंभीर सेहत समस्याओं और मनोवैज्ञानिक आघात (Psychological Trauma) का सामना करना पड़ा। 'फैट मैन' को एनोला गे नाम के अमेरिकी बॉम्बर विमान के माध्यम से भेजा गया था। इसे नागासाकी से करीब 1,650 फीट ऊपर से सुबह 11:02 बजे गिराया गया।

उस दौरान निप्पॉन अपने खूबसूरत अपतटीय द्वीपों के अलावा प्रमुख जहाज निर्माण केंद्रों में से एक था। शक्तिशाली परमाणु बम ने लगभग 22,000 टन ट्रिनिट्रोटोल्यूइन (टीएनटी) के बराबर ताकत पैदा की। नागासाकी पर हुए परमाणु हमले के बाद एकाएक दूसरा विश्व युद्ध रूक गया।

जापान ने 14 अगस्त 1945 को मित्र राष्ट्रों के सामने बिना शर्त घुटने टेक दिये। साल 1946 के सर्वेक्षण के मुताबिक नागासाकी के असमान इलाके के कारण नुकसान उस घाटी तक सीमित था जिस पर बम विस्फोट हुआ था। इसलिए लगभग पूरी तबाही का इलाका बहुत छोटा था, जो कि लगभग 1.8 वर्ग मील था।

इस इलाके में सैन्य साज़ो सामान बनते थे, इसी बात को ध्यान में रखते हुए अमेरिकी जंगी सिपहसालारों (American Warlords) ने इस शहर को निशान पर लिया। उन्होंने ये भी सुनिश्चित किया कि क्योटो की तरह टारगेट की गयी जगह का जापान के लिए सांस्कृतिक महत्व नहीं है। ऐसा इसलिए था क्योंकि अमेरिकियों का मकसद जापान की युद्ध लड़ने की क्षमता को नेस्तनाबूत करना था।

नागासाकी उस समय जहाज निर्माण केंद्र था। यहीं कारोबार इस विनाश की अहम वज़ह बना। हिरोशिमा मुख्य रूप से जापान में सबसे महत्वपूर्ण सैन्य कमांड स्टेशनों (Military Command Stations) के साथ अमेरिकी वायुसेना के लिये सैन्य लक्ष्य भी था। उस समय हिरोशिमा दूसरी सेना और चुगोकू क्षेत्रीय सेना का हेडक्वार्टर था। 76 साल पहले दिये अमेरिकियों से जख्म का असर आज भी हिबाकुशा के जिस्मों पर। आने वाली कई जापानी नस्लें इस परमाणु हमले के नतीज़ों के भुगतती रहेगी।

सह संस्थापक संपादक – राम अजोर

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