नई दिल्ली (मातंगी निगम): गाजियाबाद के पुजारी यति नरसिंहानंद सरस्वती (Yeti Narasimhananda Saraswati) जो अपने सार्वजनिक बयानों में समुदाय विशेष को निशाना बनाकर खुले तौर पर सांप्रदायिक रहे हैं, को कुछ महीने पहले जूना अखाड़े में ‘महामंडलेश्वर’ के तौर पर शामिल किया गया था। हरिद्वार धर्म संसद (Haridwar Dharma Sansad) के दौरान स्थापित खतरनाक मिसाल इसी खतरनाक सांप्रदायिक सोच का विस्तार था। हरिद्वार धर्म संसद दिलचस्प रूप उस घटना के एक हफ़्ते बाद हुई, जब समुदाय विशेष का 10 वर्षीय लड़के पर इल्ज़ाम लगे कि उसने डासना देवी मंदिर (Dasna Devi Mandir) के परिसर में भटकने की आड़ में वो मंदिर की रेकी कर रहा था। बाद में यूपी पुलिस ने साफ किया कि स्वास्थ्य केंद्र जाते समय लड़का रास्ता भटक गया।
नफरत यहीं खत्म नहीं होती है। डासना देवी मंदिर जिसके मुख्य पुजारी यति नरसिंहानंद हैं, के द्वार पर मुसलमानों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाला एक बैनर है। मार्च 2021 में उसी समुदाय विशेष के एक लड़के को यति नरसिंहानंद के एक शिष्य सेवक श्रृंगी नंदन यादव ने पानी पीने के लिये मंदिर परिसर में प्रवेश करने के लिये बुरी तरह पीटा था।
जानें कौन है, यति नरसिंहानंद सरस्वती?
53 वर्षीय यति नरसिंहानंद सरस्वती साल 2007 से गाजियाबाद के डासना देवी मंदिर में हैं। वो अब मंदिर के मुख्य पुजारी हैं। पिछले साल उन्हें देश में हिंदू संतों के सबसे बड़े मान्यता प्राप्त संप्रदाय जूना अखाड़े (Juna Akhara) से ‘महामंडलेश्वर’ की उपाधि मिली थी। मेरठ में जन्मे पुजारी को ‘संन्यास’ लेने से पहले दीपक त्यागी (Deepak Tyagi) के नाम से जाना जाता था और उन्होंने अपना नाम दीपेंद्र नारायण सिंह (Deependra Narayan Singh) रखा।
लेकिन लंबे समय के बाद उन्होंने अपना नाम यति नरसिंहानंद सरस्वती रख लिया और तब से उन्हें इसी नाम से धार्मिक क्षेत्र में जाना जाता है। यति नरसिंहानंद सरस्वती ने मॉस्को जाने से पहले हापुड़ के चौधरी तारा चंद इंटर कॉलेज में पढ़ाई की, जैसा कि उन्होंने दावा किया था। उनका दावा किया है कि वो मॉस्को इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल मशीन बिल्डिंग (Moscow Institute of Chemical Machine Building) से मास्टर डिग्री पूरी करने के लिये वो रूस गये थे।
उन्होंने नौ सालों से ज्यादा समय तक रूस और यूनाइटेड किंगडम में विभिन्न कंपनियों में इंजीनियर और मार्केटर (Engineer and Marketer) के तौर पर काम किया। यति नरसिंहानंद सरस्वती का दावा है कि वो साल 1997 में भारत लौट आये और उन्होंने 11वीं और 12वीं कक्षा के छात्रों को गणित पढ़ाया था।