पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ (Former President of Pakistan Pervez Musharraf) का लंबी बीमारी के बाद रविवार (5 फरवरी) को दुबई में निधन हो गया। दिल्ली (Delhi) में पैदा हुए पूर्व सैन्य शासक का 79 वर्ष की आयु में निधन हो गया था। वो जानलेवा बीमारी एमिलॉयडोसिस से जूझ रहे थे। मरहूम चार सितारा जनरल का भारत के साथ रिश्ता काफी पेचीदी भरा रहा। सत्ता में अपने शासनकाल के दौरान मुशर्रफ ने कश्मीर मुद्दे समेत कई मौकों पर भारत के साथ बातचीत की। फिर भी उन्हें हमेशा कारगिल युद्ध के सूत्रधार और लाहौर घोषणा के दौरान तय की गयी शर्तों को तोड़ने के तौर पर ही देखा जायेगा।
भारत के साथ हुए कारगिल युद्ध (Kargil War) में मुशर्रफ ने अहम रणनीतिकार की भूमिका निभाई थी। मार्च से मई 1999 तक उन्होंने कारगिल जिले में विद्रोहियों की मदद से सेना की घुसपैठ का आदेश दिया। घुसपैठ का पता चलने के बाद मई से जुलाई 1999 तक दोनों देशों के बीच खुले पैमाने पर जंग छिड़ गयी।
कश्मीरी आतंकवादियों के भेष में पाकिस्तानी सैनिकों ने नियंत्रण रेखा के भारतीय हिस्से में रणनीतिक इलाकों में घुसपैठ की थी। अपने शुरुआती चरणों के दौरान पाकिस्तान ने पूरी तरह से कश्मीरी विद्रोहियों पर लड़ाई का आरोप लगाया, लेकिन घायल और मरे पाकिस्तानी सैनिकों के पीछे छोड़े गये दस्तावेजों, साथ ही बाद में पाकिस्तान के प्रधान मंत्री और सेना प्रमुख के बयानों ने पाकिस्तानी अर्धसैनिक बलों की कारगिल जंग में भागीदारी का खुलासा किया।
भारतीय सेना (Indian Army) और भारतीय वायु सेना ने एलओसी के भारतीय हिस्से पर ज्यादा हिस्सों पर कब्जा कर लिया और अंतर्राष्ट्रीय राजनयिक विरोध का सामना करने के बाद पाकिस्तानी सेना को भी बाकी की भारतीय चौकियों से हटना पड़ा।
पाकिस्तानी सैनिकों और विद्रोहियों ने खुद को ज्यादा ऊंचाई पर तैनात किया था, जिससे उन्हें ये फायदा मिला कि वे भारतीय सैनिकों को आगे बढ़ने पर सीधी गोली मार सकते थे। पाकिस्तानी सेना सीधे तौर पर अपने तोपखाने का मुंह राष्ट्रीय राजमार्ग -1 की ओर खोले हुए थी, जिससे कि भारतीय सेना को भारी नुकसान हुआ।
भारतीय सेना की पहली प्राथमिकता राजमार्ग के आसपास के इलाके में चोटियों पर बनी सैन्य चौकियों पर फिर से कब्जा करना था। इसलिये भारतीय सैनिकों ने सबसे पहले द्रास में टाइगर हिल और तोलोलिंग को निशाना बनाया, इन्हीं रणनीतिक इलाकों में बढ़त बनाकर पाकिस्तानी सेना श्रीनगर-लेह (Srinagar-Leh) मार्ग पर हावी थी। इसके तुरंत बाद भारतीय सेना के हाथों में बटालिक-तुर्तोक इलाका आया जिसने सियाचिन ग्लेशियर (Siachen Glacier) सेना को तक पहुंच मुहैया करवायी।
14 जून को भारतीय सैनिकों की ओर से पॉइंट 4590 पर फिर से कब्जा करना काफी अहम रहा, लेकिन इसके नतीज़न भारतीय सेना को संघर्ष के दौरान एक ही लड़ाई में सबसे ज्यादा क्जुअलैटी का सामना करना पड़ा। जून महीने के आते आते श्रीनगर-लेह राजमार्ग के आसपास के ज्यादातर इलाकों को पाकिस्तानी 2 नार्दर्न लाइट इंफैक्ट्री (2 Northern Light Infantry) के कब्जे से छुड़ा लिया गया।
भारतीय सेना ने पूरी तरह से कामयाब ऑपरेशन सफेद सागर (Operation Safed Sagar) में दिन और रात दोनों समय भारतीय वायुसेना के कोर्डिनेशन से जुलाई के आखिरी हफ्ते में अंतिम हमले शुरू किये। जैसे ही द्रास सब-सेक्टर को पाकिस्तानी सेना से छुड़ा लिया गया, 26 जुलाई को जंग बंद हो गयी। उस दिन आज भी कारगिल विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
भारत ने इस जंग में 527 मृतकों और 1,363 घायलों का आंकड़ा पेश किया। पाकिस्तानी सेना ने भी नुकसान के बारे में अलग-अलग रिपोर्टें पेश की। पाकिस्तान ने पुष्टि की कि उसके 453 सैनिक मारे गये। अमेरिकी विदेश विभाग ने करीब 700 मौतों का शुरूआती आंशिक अनुमान लगाया। नवाज शरीफ की ओर से बतायी गयी तादाद के मुताबिक पाकिस्तानी सेना को कारगिल जंग में अपने 4,000 से ज्यादा जवान खोने पड़े।
शरीफ और परवेज़ मुशर्रफ के बीच ये विवाद पैदा हो गया कि कारगिल जंग का असल जिम्मेदार कौन था? मौतों और नुकसान के लिये के लिये किसे ज़वाबदेह माना जाये? मुशर्रफ का गंभीर टकराव हुआ और वो अपने सीनियर अधिकारियों के साथ गंभीर विवाद में शामिल हो गये, जिनमें नौसेना प्रमुख, वायु सेना प्रमुख, एयर चीफ मार्शल और वरिष्ठ लेफ्टिनेंट-जनरल अली कुली खान (Lieutenant-General Ali Quli Khan) खासतौर से शामिल थे।
एडमिरल बोखारी ने आखिरकर जनरल मुशर्रफ के खिलाफ ज्वॉइंट सर्विसेज कोर्ट मार्शल की मांग की, जबकि दूसरी ओर जनरल कुली खान ने कारगिल जंग को ‘पूर्वी-पाकिस्तान त्रासदी से बड़ी आपदा’ कहकर सिरे से खारिज कर दिया, उन्होनें कहा कि परवेज़ मुशर्रफ की प्लानिंग, प्लॉटिंग और ऑप्रेशनल कवायदों मे भारी खामियां थी, जिसका खामियाजा पाकिस्तानी सैनिकों को जान गंवाकर भुगतना पड़ा।
कारगिल जंग के महीनों बाद मुशर्रफ ने अक्टूबर में बगैर खून खराबा किये सैन्य तख्तापलट की अगुवाई की, तत्कालीन प्रधान मंत्री नवाज शरीफ को पाकिस्तानी से सर्वोच्च सियासी तख्त से उखाड़ फेंका गया, जिसके बाद मुशर्रफ ने खुद को स्थापित किया, खास बात ये रही कि ये तब हुआ जब शरीफ को सेना प्रमुख के पद से बर्खास्त कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट की ओर से उनके तख्तापलट को मान्य किये जाने के बाद उनकी पहली कार्रवाई के तहत पाकिस्तान से नवाज़ शरीफ को निर्वासित कर दिया गया, 10 साल के लिये उनके देश लौटने पर प्रतिबंध लगा दिया गया ।
जून 2001 में मोहम्मद रफीक तरार के इस्तीफा देने के बाद मुशर्रफ ने खुद को पाकिस्तान का राष्ट्रपति घोषित कर दिया। जुलाई 2001 में मुशर्रफ और तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) आगरा में दो दिवसीय शिखर सम्मेलन के लिये मिले, लेकिन दो दिनों के बाद शिखर सम्मेलन टूट गया, दोनों पक्ष जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर एक समझौते पर पहुंचने में नाकाम रहे।
बतौर राष्ट्रपति अपने कार्यकाल के दौरान मुशर्रफ हत्या किये जाने के प्रयासों से बच गये। उस दौरान सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को बर्खास्त कर सामाजिक उदारवाद के लिये जोर दिया जाने लगा। हालांकि उनकी अध्यक्षता में पाकिस्तान की जीडीपी में खासा इज़ाफा, आर्थिक असमानता बढ़ी और सार्वजनिक संस्थानों के प्रति उनकी उपेक्षा के कारण उन्हें तानाशाह कहा जाने लगा।
साल 2008 में मुशर्रफ की संसदीय पार्टी राष्ट्रीय चुनाव हार गयी, महाभियोग से बचने के लिये उन्हें इस्तीफा देने के लिये मजबूर होना पड़ा। इसके बाद उन्होंने यूनाइटेड किंगडम की ओर रूख़ करते हुए पाकिस्तान छोड़ दिया। साल 2010 में उन्होंने अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग लॉन्च की। साल 2013 में वो आम चुनाव लड़ने के लिये वापस पाकिस्तान लौट आये लेकिन अदालतों ने उन्हें चुनाव लड़ने की मंजूरी नहीं दी। साल 2014 में आखिरकर उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया।