पूर्व IPS ऑफिसर
आज कार्तिक पूर्णिमा (kartik purnima) है। इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि पौराणिक कथा के अनुसार आज के दिन भगवान शिव ने असुर त्रिपुरासुर का अंत किया और त्रिपुरारी के नाम से जाने गए। आज लोग पवित्र नदियों में स्नान कर भगवान शिव को श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं। बिहार में हरिहरक्षेत्र कहे जाने वाले सोनपुर में पवित्र गंडक और गंगा नदियों के संगम में स्नान को सबसे पवित्र स्नान माना जाता है। स्नान के बाद श्रद्धालु स्थानीय हरिहर नाथ मंदिर में पूजा करते हैं। इस पवित्र स्नान की पृष्ठभूमि में पौराणिक कथा है कि प्राचीन काल में यहां गज और ग्राह के बीच लंबी लड़ाई चली थी। हाथी की फ़रियाद पर विष्णु अर्थात हरि और शिव अर्थात हर ने बीच-बचाव कर इस लड़ाई का अंत कराया था। यह कथा प्रतीकात्मक है। प्राचीन भारत वैष्णवों और शैव भक्तों (Vaishnava and Shaiva devotees) के बीच सदियों चलने वाली लड़ाई का साक्षी रहा है। अपने आराध्यों की श्रेष्ठता स्थापित करने के इस संघर्ष ने हजारों लोगों की बलि ली थी। इसकी समाप्ति के लिए गुप्त वंश के शासन काल में कार्तिक पूर्णिमा को वैष्णव और शैव आचार्यों का एक विराट सम्मेलन सोनपुर के गंडक तट पर आयोजित किया गया। यह सम्मेलन दोनों संप्रदायों के बीच समन्वय की विराट कोशिश थी जिसमें विष्णु और शिव दोनों को ईश्वर के ही दो रूप मानकर विवाद का सदा के लिए अंत कर दिया गया। उसी दिन की स्मृति में यहां पहली बार विष्णु और शिव की संयुक्त मूर्तियों के साथ हरिहर नाथ मंदिर की स्थापना हुई थी।
इस ऐतिहासिक स्थल पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन से लगभग एक माह चलने वाले हरिहक्षेत्र मेले की शुरुआत होती है जिसे एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला माना जाता रहा है। कोरोना के मद्देनजर इस साल इस मेले को अनुमति नहीं दी गई है, लेकिन बिहार की ग्रामीण संस्कृति (Rural Culture of Bihar) को नजदीक से देखना, जानना और महसूस करना हो तो मेला उसके लिए सबसे उपयुक्त जगह है।