Katha: जब रामायण का युद्ध समाप्त हुआ तब वापिस लौटते वक्त हनुमानजी का घर रास्ते में पड़ा। माँ अंजना से हनुमान जी मिलना चाहते थे, उन्होंने प्रभु श्री राम से विनती करी की, क्या वे कुछ पल अपनी माँ से मिल सकते है। प्रभु श्री राम ने उन्हें आज्ञा दी और कहा कि वे सिर्फ उनकी ही माँ नहीं बल्कि मेरी भी माँ है।
हम भी उनके दर्शन करना चाहते है। सभी माँ अंजना से मिलने पहुँच गये। माँ के चरण स्पर्श करके हनुमान जी ने माँ की वंदना की और सभी का परिचय माँ अंजना से करवाया। प्रभु श्री राम के बारे में अंजना माँ अच्छे से जानती थी और उनके श्री मुख से माँ शब्द सुनकर माँ अंजना गदगद हो गयी।
फिर हनुमान जी लंका विजय (Lanka Victory) की सम्पूर्ण कथा शुरू से अंत तक सुनायी। कथा सुनने के बाद अंजना माँ हनुमानजी पर अति क्रोधित हो गयी।
उन्होंने कहा धिक्कार है मुझे मेरे दूध पर की मैनें तेरी जैसे संतान को जन्म दिया। तूने इतना बलशाली (Powerful) होकर भी प्रभु को परिश्रम करवाया। अरे मुर्ख तुझमें तो इतनी शक्ति है कि तू रावण सहित लंका को ही समुद्र में डाल दे। फिर तेरे होते क्यों रामसेतु (Ram Setu) बना, क्यों वानर मारे गये?
माँ की ऐसी वाणी सुनकर हनुमानजी ने बताया कि मुझे मेरे प्रभु का आदेश नहीं था, वर्ना मैं आपको कोई शिकायत का मौका नहीं देता पर रावण की मौत मेरे हाथ नहीं वरन् प्रभु श्री राम के हाथों लिखी हुई थी। इस विधि के विधान को मैं टाल नहीं सकता था। रावण की मौत पहले ही लिखी जा चुकी थी उसे वैसे ही मरना था।
माँ अंजना ने कहा बेटा तू सही कह रहा है, तू अपनी जगह बिलकुल सही है और मुझे गर्व है कि तूने मेरी कोख से जन्म लिया।
इस तरह माँ अंजना शांत हुई ।