नई दिल्ली: बीती रात आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) ने टिकट बंटवारे की लिस्ट जारी कर दी। इस बार केजरीवाल (Kejriwal) ने 46 मौजूदा विधायकों पर विश्वास जताते हुए उन्हें फिर से विधानसभा चुनावों के घमासान में उतरने का मौका दिया है साथ ही 15 विधायकों के हिस्से में निराशा आयी है। ऐसे में सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या केजरीवाल का ये फैसला कहीं उन पर ही तो भारी नहीं पड़ जायेगा।
इसी चलन को आधार बनाते हुए पिछले विधानसभा चुनावों का विश्लेषण किया जाये तो, देखने में आता है कि बीजेपी (BJP) इस भारी भूल की शिकार हो चुकी है। जिसका भारी ख़ामियाजा उसे महाराष्ट्र (Maharashtra), झारखंड (Jharkhand), और मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ा था। बागी विधायकों ने भाजपा को इन तीनों सूबों में करारी शिकस्त दी थी। जिस तरह से भाजपा में दूसरे दलों से आये लोगों को शामिल किया गया था, उससे राज्य के कैडर में और कार्यकर्ताओं में भारी नाराज़गी पैदा हुई थी। टिकट बंटवारे में हुए सौतेलेपन की वज़ह से भाजपा के चुनावी रणनीतिक कौशल पर भी गंभीर सवालिया निशाना लगने लगे थे।
अब बात करते है दिल्ली में आम आदमी पार्टी की, जिस तरह से टिकटों का बंटवारा किया गया है। उसे देखकर लगता है कि अरविंद केजरीवाल भाजपा की गलती से सब़क लेने को तैयार नहीं है। दलबदलू प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारना आत्मघाती फैसला हो सकता है।
मौजूदा विधानसभा में विपक्ष के नाम पर गिनती के केवल चार भाजपा विधायक है। दिल्ली में भारी बहुमत हासिल करने वाले अरविंद के चेहरे पर इस बार भी चुनाव लड़ा जायेगा। जिसके चलते उम्मीदवारों के चेहरे की अहमियत दूसरे पायदान पर आ जायेगी। इसके क्या ये मायने निकाले जाये कि अरविंद को अपने विधायकों में विश्वास नहीं रहा? जिसकी वज़ह से उन्हें बाहर से प्रत्याशी इम्पोर्ट करने पड़े। यहीं कवायद आगे चलकर केजरीवाल के लिए परेशानी का सब़ब बन सकती है।